‘दाढ़ी में चोटी उलझा दी देखों बात कहां पहुंचा दी’ लिखने वाले शायर ‘सरदार अनवर ‘की कोरोना से मौत

आस मोहम्मद कैफ़ ।Twocircles.net 

सहारनपुर-


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कोरोना काल की त्रासदी के बीच एक और जब हर तरफ़ अमिताभ बच्चन की चर्चा है,तो सहारनपुर के ‘अमिताभ बच्चन ‘कहलाएं जाने वाले सरदार अनवर सरकारी लापरवाही की भेंट चढ़ गए। 70 साल के सरदार अनवर कोरोना पॉजिटिव पाएं जाने के बाद यहां मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराएं गए थे। तबियत बिगड़ने के बाद वेंटिलेटर सुविधा का सहारनपुर में न होना और रैफर करने में हुई अनावश्यक देरी उनकी मौत की वज़ह बनी।

सहारनपुर के सरदार अनवर मशहूर शायर,लेखक, इप्टा के पूर्व अध्यक्ष,मजदूरों के नेता कामरेड  के तौर पर जाने जाते थे। उनके सैकड़ों शिष्य इस समय फ़िल्मी जगत में अभिनय ,निर्देशन और लेखन से जुड़े है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी  सरदार अनवर की कोरोना से मौत ने सरकारी तंत्र की पोल खोल कर रख दी है। उन्होंने जनजागरण के विषयों पर हजारों नाटक किए वो कई बार इप्टा के अध्यक्ष रहे। हृदय विदारक इस घटना से सहारनपुर के कलाकारों,साहित्य प्रेमियों में दुःख का माहौल है। उनके चार बेटियां है। जिनकी उन्होंने बेहद अच्छी परवरिश की। सरदार अनवर को सहारनपुर के दानिशवरों में बहुत ऊंचा मुक़ाम हासिल था। रंगमंच की दुनिया मे भी उनका डंका बजता था। उनके दर्जनों शिष्य बॉलीवुड में अभिनय,लेखन और निर्देशन का काम देख रहे हैं। उनके दामाद इनामुल हक़ बॉलीवुड के एक प्रतिभाशाली अभिनेता है। सरदार अनवर उनके भी गुरु थे।

सादगी की जिंदगी जीने वाले सरदार अनवर को आख़री वक़्त में एक पॉलीबैग में पैक कर सीधे कब्रिस्तान भेजा गया जहां उनके साथ सिर्फ पीपीई किट पहने 6 लोग ही थे। उनके परिवार के लोगों को उनकी एक झलक भी मय्यसर नही हुई। बॉलीवुड अभिनेता उनके दामाद इनामुल हक़ ने बताया कि वो जिंदगी भर इस अफ़सोस से बाहर नही निकल पाएंगे कि वो पापा को छू नही सके। इनामुलहक के मुताबिक उनके ससुर उनके उस्ताद भी थे और वो उनके लिए कुछ नही कर पाएं।

उनकी अध्यापक बेटी रूमी अनवर ने बताया कि उनकी मौत सिस्टम की लापरवाही से हुई है। कोरोना पॉजिटिव आने के बाद उन्हें शहर के बाहर पिलखनी स्थित मैडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। उसके बाद उनकी तबियत बिगड़ने लगी। अस्पताल प्रशासन ने कोई रुचि नही ली। हमें सूचना दी गई।पास-पड़ोस के दूसरे मरीजों के अनुरोध पर हमें एक फ़ोन कॉल आई। स्थानीय सांसद और विद्यायक के हस्तक्षेप से उनकी देखभाल हुई। इसके बाद अस्पताल प्रशासन ने यह कहकर रैफर कर दिया कि इन्हें वेंटिलेटर की जरूरत है।

जबकि सहारनपुर में वेंटिलेटर नही है। रूमी बताती है कि इसके बाद वो कागज़ी कार्रवाई और एम्बुलेंस को दिल्ली से बुलाने की सरकारी जिद के बीच घण्टों की नां नुकर के बाद  तड़पते रहे। बाद में एम्बुलेंस मिली तो कागज़ी कार्रवाई में देरी के चलते वो जिंदगी से हार गए।

ज़ाहिर है पूरी जिंदगी कला अभिनय साहित्य और शायरी को समर्पित कर देने वाले सरदार अहमद को उनके अमिताभ बच्चन जैसे बड़ा नाम नही होने की वजह से सही ट्रीटमेंट नही मिला। उनके साथ अस्पताल प्रशासन की लापरवाही सामने आई।

उनकी बेटी रूमी बताती है कि यह निश्चित तौर पर सिस्टम की नाकामी है। कागज़ की अदला बदली का काम 6 घण्टे तक हुआ। फ़िर सहारनपुर स्वास्थ्य विभाग दिल्ली से एम्बुलेंस मंगवाने की जिद पर अड़ गया क्योंकि यहां वेंटिलेटर उपलब्ध नही था। अब दिल्ली से एम्बुलेंस आती तो 6 घण्टे और मरीज़ को पहुंचने के लग जाते। डेढ़ घंटे तक मेरे पापा एम्बुलेंस में रहे और उनकी वहीं मौत हो गई।

सिस्टम ने मेरे पापा को मार डाला है।

अपनी तक़लीफ़ को साझा करते हुए रूमी कहती है कि मैंने एक बार एक मजदूर के पेड़ के नीचे दब जाने वाली कहानी पढ़ी थी जिसमे सब जिम्मेदारी एक दूसरे पर डाल देते हैं, फाइलों में वक़्त बीत जाता है और मज़दूर मर जाता है।ऐसा ही कुछ मेरे अब्बू के साथ हुआ। हमारे 11 घण्टे ख़राब हो गए। जब उन्हें भर्ती कराया गया था परिवार के लोगो को उनसे दूर रखा गया उनके पास फ़ोन भी नही था। घण्टों उनकी देखभाल करने कोई नही आया। एक क़रीब वाले मरीज़ ने बताया और हमने स्थानीय नेताओं से अनुरोध किया तब जाकर हलचल हुई मगर तब तक बहुत देर हो गई थी। मुझे बताया जाएं कि इतने बड़े जनपद में वेंटिलेटर की सुविधा क्यों नही है।

इनामुल हक़ के अनुसार मैंने अपने पहचान के लोगों से भरसक प्रयास कराने की कोशिश की मगर सब असहाय से दिखाई दिए। समझ नही आ रहा है कि अब क्या होगा ! हमारा सहारनपुर अस्पताल से भरोसा टूट गया है। इन्होंने लापरवाही की हदें पार की।

सरदार अनवर भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के संरक्षक थे और वो 1992 में सहारनपुर में साम्प्रदायिक दंगे के दौरान नुक्कड़ नाटकों के जरिये माहौल को सामान्य बनाने के लिए अपने किए गए प्रयासों पर नायक की तरह उभरे थे। सरदार अनवर ट्रेड यूनियन के नेता पर भी चर्चित रहे और उनके प्रयासों से हजारों लोगों को रोज़गार मिला। उनकी शायरी ग़रीब आदमी को अपने केंद्र में रखती थी। खुद सरदार अनवर ने अपनी जिंदगी बेहद सादगी में गुजार दी। उनकी कोठरी (छोटा कमरा) किताबों से भरा रहता था। पिछले 10 सालों से इप्टा के संरक्षक के तौर पर सामाजिक चेतना के सैकड़ों नाटकों का निर्माण किया और अभिनय की दुनिया में सहारनपुर को एक बड़ी पहचान दिलवाई।

सरदार अनवर सहारनपुर के डोलिखाल नाम वाले मौहल्ले में रहते थे। उनकी शायरी में अद्भुत संदेश थे।जैसे उनका एक कलाम “हाकिम -ए-शहर की हर बात पे राज़ी निकला, कितना होशियार मेरे घर का क़ाज़ी निकला, मैं समझता था मेरी तरह मुसलमान है वो, वो मेरा यार तो पंजवक्ता नमाज़ी निकला” उनकी शायरी का स्तर बता रहा है।

सरदार अनवर की मौत के बाद सहारनपुर में दुःख और नाराजग़ी दोनों है। इप्टा से जुड़े तमाम कलाकार सरदार अनवर की मौत से गहरे आहत है। फ़िल्म निर्देशक शाहिद कबीर, कासिफ नून,अविनाश दास,जावेद सरोहा जैसे बड़े नाम सरदार अनवर से सीख पाते रहे हैं। उनके साथी लेखक रियाज़ हाशमी के मुताबिक सरदार अनवर एक ऐसी शख्शियत के मालिक थे,जिन्होंने एक कमरे की जिंदगी में किताबों से दोस्ती करके सहारनपुर को मिनी बॉलीवुड में तब्दील कर दिया। उन्होंने कला और अभिनय का मुम्बई के बाद दूसरा उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा केंद्र सहारनपुर को बना दिया। यहां की सैकड़ों प्रतिभाएं आज उन्होंने निखार दी। बेहद फक्कड़,ईमानदार सादगी पसंद और समाज को समर्पित सरदार अनवर का चला जाना सहारनपुर को तक़लीफ़ दे रहा है। उन्होंने नाटको में संदेश होता था उन्होंने आमजन मानस को आवाज़ दी ख़ासकर मजदूर तबका उनका हमेशा शुक्रगुजार रहेगा। उनका काम बड़ा था ,सादगी के चलते वो लाइमलाइट से दूर रहे शायद इसलिए उनका  खास ध्यान नही रखा गया क्योंकि उसके लिए तो  अमिताभ बच्चन जैसे बड़े लोग है। काश यहां वेंटिलेटर होता !

सहारनपुर रंगमंच से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र आज़म के अनुसार सरदार अनवर का निधन बहुत दुखद खबर है। वो कहते हैं वो यूं चले जायेंगे, किसी ने सोचा भी नहीं था। उनका निधन रंगमंच ही नहीं समाज की भी बड़ी क्षति है। वे जितने बेहतरीन कलाकार थे उतने ही बेहतरीन इंसान भी थे। उन्होंने नये कलाकारों को तराशने का काम किया। वे कौमी एकता के प्रतीक थे। वे अपने विचारों और शायरी के साथ हमेशा हमारे बीच जिन्दा रहेंगे।

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