आसमोहम्मद कैफ। Twocircles.net
2002 गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार ठहराये जाने गोधरा से आई एक बेहद सुखद ख़बर ने पूरे गुजरात को तसल्ली दी है। गोधरा की दूसरी सबसे बड़ी मस्जिद ने खुद को क्वारन्टीन सेंटर में बदल लिया है। इस मस्जिद का नाम आज़म मस्जिद हैं। मस्जिद नमाज़ न पढ़ने के कारण पिछले 3 महीने से बंद है। कोरोना के मरीजों की बढ़ती तादाद के बाद इस मस्जिद को एक टेम्परेरी अस्पताल जैसा बना दिया गया है। मस्जिद में 50 मरीज़ो के लिए बेड डाल दिया है।खास बात यह है कि 16 बेड आइसोलेशन के लिए तमाम सुविधा वाले हैं जबकि शेष कोरोना पॉजिटिव मरीजों के लिए है। आज़म मस्जिद के ग्राऊंड फ्लोर का नज़ारा अब बिल्कुल अस्पताल जैसा हैं। गुजरात मे मरीज़ो की संख्या 50 हज़ार पार कर चुकी है।
बात सिर्फ गुजरात की नही है। भारत मे कई जगह पुनः लॉकडाउन लगा दिया है। इस समय मरीज़ो की संख्या 13 लाख पार हो चुकी है। बुधवार को एक दिन में मरने वाले मरीज़ो की संख्या 1129 थी। हालात बेइंतहा गंभीर है। सरकारी तंत्र थक चुका है। अस्पतालों का दम फूलने लगा है। जगह की कमी पड़ रही हैं। घण्टों बुलाने पर एम्बुलेंस नही आती। बेहद तक़लीफ़ पैदा करने वाली वाली तस्वीरें आ रही है। हालात की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बुधवार को उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में सैकड़ों कोरोना मरीज़ एक साथ पहुंच गए तो अस्पताल में हड़कंप मच गया। अस्पताल कर्मचारी खुद जान बचाकर छिपने लगे।घण्टों कोई इनकी सुध लेने नही आया। ये लोग घण्टों लाइन में लगे रहे और थककर ज़मीन पर बैठ गए। मेरठ में जमील मलिक बताते हैं कि वो अपने बहनोई के लिए 4 घण्टे तक एम्बुलेंस बुलाते रहे मगर वो नही आई तो वो खुद अपनी कार में बैठाकर उन्हें भर्ती करा आयें।
मगर इस सबके लिए सिर्फ सरकार की आलोचना नही की जा सकती, अब समय है कि समाजसेवा करने का दावा करने वाली तमाम संस्थाएं लोगों की मदद करने के लिए आगे आएं। खासकर मुसलमानों में सरकारी उदासीनता के चलते तमाम अल्पसंख्यक संस्थाओं को अत्यधिक प्रयास करने चहिये। जमीयत उलेमा ए हिंद (महमूद मदनी ) का दावा है कि उन्होने इस गंभीरता को समझा है और वो पहले दिन से कोरोना से लड़ रहे हैं। जमीयत के प्रवक्ता मौलाना अलीमुल्ला कहते हैं ” हमनें कोरोना के विरुद्ध लोगों जागरूक किया है। लाखों की संख्या में मास्क और सैनिटाइजर बंटवाए है। हम कर्नाटक राज्य में 10 एम्बुलेंस चलवा रहे हैं सरकार को इस महामारी में हमसे जो भी मदद चाहिए हम करने के लिए तैयार है”।
इमारत ए शरिया बिहार के प्रवक्ता मौलाना शिबली नोमानी Twocircles.net से यही कहते हैं जैसे ” हमने लोगों को लगातार जागरूक करने की कोशिश की है। शुरुआत में लोगो मे गलतफहमी भरी हुई थी मगर अब सब के सामने तस्वीर साफ हो चुकी है। हमनें सरकारी गाइडलाइंस को लोगों के सामने रखा है और उनसे कहा है कि वो इस महामारी से बचने के लिए सभी जरूरी सावधानियों का ख़्याल रखे,हमनें मास्क और सैनिटाइजर बंटवाए है और सरकार को जरूरत पड़ती है तो हम मदद के तौर पर मदरसों को भी कवारींटीन सेंटर बना देंगे।”
मेरठ के मैडिकल समाजसेवी अब्दुल गफ्फार बताते हैं कि अब सिर्फ इतने से काम चलने वाला नही है। सरकारी अस्पतालों में जगह कम पड़ती जा रही हैं और निजी अस्पताल बहुत अधिक पैसा डिमांड कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी बिना लक्षण वाले मरीज़ो को घर पर ही आइसोलेट करने की बात कह दी है मगर ऐसा वो ही कर पायेगा जिसके घर मे कई कमरे है। जहां एक कमरे में चार लोग हो वहां होम आइसोलेशन क़ामयाब नही पायेगा।
मस्जिदों और मदरसों को आइसोलेशन सेंटर में तब्दील करना अच्छा विकल्प है साथ ही इसमे हिंदू मुसलमान सभी मरीज़ो को भेजा जाना चाहिए।जमीयत उलेमा ए हिंद,जमात ए इस्लामी और इमारतें शरिया जैसी संस्थाओं को मास्क,सैनिटाइजर और तक़रीर वाले मॉड से बाहर आना होगा।
कोरोना के लगातार बढ़ते मामले यह शक पैदा कर रहे हैं कि कहीं ये सामुदायिक संक्रमण तो नही है ! मुसलमानों की घनी आबादी वाले मोहल्लों में हालात गंभीर होते देर नही लगेगी। देवबंद के इख़लाक़ अहमद कहते हैं “हैरतअंगेज यह है ऐसे समय पर भी कुछ धार्मिक नेताओं ने चिट्ठी लिखी है कि ईद उल अज़हा की नमाज़ सामूहिक रूप से ईदगाह पर पढ़ने की अनुमति दी जाएं,वो यह नही देख रहे हैं कि सहारनपुर जैसे शहर में वेंटिलेटर सुविधा ही नही है। इसकी बजाय ये लोग अस्पतालों को वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सिलेंडर ख़ैरात में क्यों नही देते! अल्लाह तो इससे भी खुश होगा!”
जमीयत उलेमा हिन्द भारत में मुसलमानों की सबसे सक्रिय और बड़ी तंजीम है। इसमे लाखों कार्यकर्ता हैं लगभग हर मुश्किल वक़्त में मुसलमान इस संस्था की तरफ उम्मीद से देखता है। मुसलमानों का बड़ा वर्ग सरकार के कामकाज से संतुष्ट नही है और लॉकडाऊन में वो पड़ोसियों से मदद ले रहे थे। सरकार पर उनका भरोसा कमज़ोर हुआ है। ऐसे समय मे उनके मन मे कई तरह की गलतफहमी है। अब जब बेहद मुश्किल वक़्त आता दिख रहा है तो मुसलमान खासकर उत्तरी भारत में जमीयत उलेमा ए हिंद की और देख रहा है।
मुस्लिम मामलों के जानकार सुप्रीम कोर्ट के वकील फ़िरोज आफ़ताब कहते हैं “इसमे कोई दो राय नही बची हुई है कि कोरोना भयावह होता जा रहा है और अब सभी देश के जिम्मेदार नागरिको को चाहिए वो राजनीतिक पैंतरेबाजी से ऊपर उठकर इस महामारी के ख़िलाफ़ खड़े हो जाएं। सरकार की खामियों पर फ़िर चर्चा हो,यह सही समय नही है। कोरोना से निपटने के मुसलमानों की संस्थाओं की बडी भूमिका हो सकती है उन्हें निश्चित तौर पर अपना योगदान देना चाहिए “।
देवबंद के मौलाना सुएब आलम क़ासमी एक अलग बात कहते हैं वो कहते है बीमारी किसी जात धर्म को देखकर नही आती। तबलीग़ जमात वाले प्रकरण में मीडिया एक बड़े वर्ग द्वारा तमाम मुसलमानों को निशाने बनाने की साज़िश के बीच बहुत से मुसलमानों को तक़लीफ़ पहुंची।
उसके बाद से अब तक मुसलमानों में रोष है।वरना सबसे पहले दारुल उलूम ने अपना मदरसा ही आइसोलेशन सेंटर बनाने की पेशकश की थीं। यह सही है कि मुस्लिम संस्थाओं ने अब तक कारोंना से लड़ने में उदासीनता दिखाई है। मगर आरएसएस जैसी बड़ी संस्थाओं के भी बहुत प्रयास दिखाई नहीं दे रहे हैं। बेहतर है कि सभी देशवासी मिलकर इस महामारी का मुक़ाबला करें।