मोहम्मद वसीम । Twocircles net
बुधवार को उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के नेतृत्व वाली कैबिनेट की बैठक में सरकार की प्राथमिकता एक नया गौवध अध्यादेश लाने की थी। अध्यादेश लाया गया इसके अनुसार अब उत्तर प्रदेश में गौवध सिद्ध होने पर 10 साल की सज़ा दी सकेगी साथ ही 5 लाख रुपये का जुर्माना भी होगा। कैबिनेट ने यह प्रस्ताव पास किया और थोड़ी-बहुत औपचारिकता के बाद यह क़ानून के तौर पर प्रभावी हो जाएगा।
इस अध्यादेश का मुख्य उद्देश्य गौवध अधिनियम 1955 को मज़ूबत करना है। अब यह गैर जमानती अपराध बन जायेगा। सरकार की और से प्रमुख सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने इसके बाद एक महत्वपूर्ण जानकारी साझा की उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में बीते छह महीने के दौरान गोकशी और गोवंश की तस्करी के ख़िलाफ़ पुलिस की ओर से चलाए गये विशेष अभियान में 3867 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इसके अलावा 2197 मामलों में गैंगस्टर एक्ट लगाया गया है। अवनीश कुमार अवस्थी ने बुधवार को बताया कि एक जनवरी 2020 से आठ जून 2020 तक पुलिस ने विशेष अभियान चलाकर 1324 मुकदमे दर्ज किए। कुल 4326 आरोपियों के नाम सामने आए और उनमें से 3867 को गिरफ्तार किया गया।
इन आंकड़ों के जारी होने के बाद समाजवादी पार्टी के प्रदेश सचिव मनीष जगन अग्रवाल ने सरकार की नीयत पर बड़े सवाल खड़े किए। मनीष ने इन आंकड़ो को बनावटी और सच से दूर बता दिया साथ यह भी कहा कि इससे यह सिद्ध होता है सरकार गौवध रोकने में विफल हुई है। मनीष ने यह भी दावा किया कि सूबे में तीन साल में सरकार ने गौकशी के नाम पर बेगुनाह लोगो को परेशान किया है। उनके ख़िलाफ़ झूठे मुक़दमे दर्ज किए हैं। पिछले महीने उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ साथ कथित मुठभेड़ में दर्जनों गौवध के आरोपियों के पैर में गोली लगी है। इसमे सहारनपुर मे एक गोकशी के आरोपी की पुलिस की गोली से मौत भी हुई है।
आंकड़ो के अनुसार गोवध निवारण कानून के तहत 867 मामलों में पिछले 6 महीने में चार्जशीट दाखिल कर दिए गए हैं। जबकि 44 मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) और 2197 मामलों में गैंगस्टर एक्ट लगाया गया है। 1823 मामलों मे गुंडा एक्ट लगाया गया है इसके 421 मामलों में हिस्ट्रीशीट भी खोली गई है। यह आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने पिछले 6 महीने में ‘और कोई काम’ नही किया है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में पहले से ही गोवध निवारण कानून 1955 एक सख्त कानून है। उत्तर प्रदेश गोवध निवारण कानून, 1955 प्रदेश में छह जनवरी 1956 को लागू हुआ था । वर्ष 1956 में इसकी नियमावली बनी। वर्ष 1958, 1961, 1979 और 2002 में कानून में संशोधन किया गया और नियमावली का 1964 एवं 1979 में संशोधन हुआ लेकिन कानून में कुछ ऐसी शिथिलताएं बनी रहीं। इसमे 1955 (यथा संशोधित) की धारा-8 में गोकशी की घटनाओं के लिए सात साल के अधिकतम कारावास की सजा का प्रावधान है। अब के बदलाव के बाद दोषी की संपत्ति भी जब्त कर ली जाएगी। इससे गौवंश के रखरखाव का ख़र्चा वसूला जाएगा।
मेरठ के अधिवक्ता अबरार अहमद के मुताबिक पिछले कुछ सालों में अदालतों ने गौवध के मामलों में स्थानीय स्तर पर ज़मानत देनी पहले ही बंद कर दी थी और इन्हें हाईकोर्ट भेजा जा रहा था।प्रेक्टीकली कई इंसानी क़त्ल के मामलों में गौवध से पहले भी ज़मानत मिल गयी। प्रेक्टिकल और कागज़ अब दो अलग अलग बिंदु है।
कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे दीपक कुमार इसे अल्पसंख्यको का उत्पीड़न करने वाला क़ानून बता रहे हैं। वो कहते हैं सरकार के मुताबिक़ उन्होंने पिछले 6 महीने में यह भारी भरकम कार्रवाई की है। अब यह भी सरकार बताए कि पिछले ढाई साल से वो यह दावा क्यों कर रहे थे कि प्रदेश में गो माता के वध पर पूरी तरह रोक है और दूसरी सरकारों की तरह उन्होंने गौवंश के तस्करों से साठ-गांठ नही है।
ये आंकड़े अपने आप मे सवाल हैंं। जैसे अगर यह सच्चे है तो सरकार गोवंश की रक्षा करने में नाकामयाब हुई है और अगर यह झूठे है तो एक बार फिर बहाना तलाश कर एक समुदाय का उत्पीड़न किया गया है क्योंकि इसमें ज्यादात्तर एक ही समुदाय के लोगो के विरुद्ध कार्रवाई हुई है।