दिल्ली के उत्तर-पूर्वी ज़िले के ज़ाफ़राबाद, मौजपुर ब्रह्मपुरी, मुस्तफ़ाबाद, कर्दमपुरी, खजूरी ख़ास और शिव विहार इलाक़ों में हुई हिंसा में 45 लोगों की मौत हुई है। क़रीब पांच हज़ार परिवारों को अपना घर छोड़ना पड़ा है। लोग अस्थाई रूप से बने शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं। शिव विहार पूरी तरह मुस्लिम मुक्त हो चुका है। यहां रह रहे मुसलमानों पर पर हमला हुआ तो सभी जान बचाकर भागे। इनके घर और मस्जिदें जला दी गईं। twocircles.net से जुड़े पत्रकार आस मोहम्मद कैफ़ की पिछली स्टोरी में आपने शिव विहार में मुसलमानों के लुटे और जेल हुए मकानों और मस्जिद का हाल जाना था। इसरार अहमद की इस रिपोर्ट में जानिए शिव विहार से जान बचाकर भागे लोगों का हाल और उनकी आप बीती। -यूसुफ़ अंसारी, कार्यकारी संपादक
शिव विहार से जान बचाकर भागने में सफल रहे कुछ लोग मुस्तफ़ाबाद के इंदिरा विहार इलाक़ें में नौमान सैफ़ी के यहां शरण लिए हुए हैं। कुछ लोग कहीं और है। कुछ दूर दराज़ अपने रिशतेदारों के पास चल गए हैं। बेघर हो चुके ये लोग अब शिव विहार में अपने घर नहीं लौटना चाहते। दिल्ली पुलिस भले ही हालात सामन्य होने और इन्हें सुरक्षा देने का दावा कर रही है। लेकिन इन पर जो गुज़री है उस देखते हुए ये दिल्ली पुलिस पर से इनका भरोसा पूरी तरह से उठ चुका है। कई पड़ोसियों के चेहरे भी बेनक़ाब हो गए। लिहाज़ा अब उन पर भी भरोसा नहीं रहा।
मुस्तफ़ाबाद के एक मकान में शरणार्थी बन पीछे छूट गए अपने घर की यादों में गुमसुम बैठी एक महिला बताती है, “मेरा बच्चा कहता है कि अब वापस हिंदुओं के बीच नहीं जाना। हमें अब उनके बीच नहीं रहना।” मां को बोलते देख पास ही खड़ा बच्चा थोड़ा शर्माता हुआ बोला, “वो जय श्री राम’ का नारा लगाते हुए आए थे। उन्होंने तिलक लगा रखा था। वो हम सबको मारना चाहते थे।” इस बच्चे के दिलो दिमाग़ पर हिंसा का मंज़र तारी था। उसने सबकुछ अपनी आंखों से देखा था। भगवा गमछा डाले दंगइयों की भीड़ देखी थी। दंगाई गालियां देते हुए दरवाजों पर डंडे बजा रहे थे। पीड़ित जान बचाने के लिए अपनी छतों पर थे। ये दंगाई मुसलमानों को ख़त्म कर देने की धमकी दे रहे थे। यह सब देख कर बच्चे तो बच्चे बड़े बड़ों की रूह कांप जाती है।
ये लोग इतना डरे हुए हैं कि मीडिया से बात करते हुए अपने नाम नहीं बताना चाहते। अपनी पहचान गुप्त रखना चाहते है। एक शख़्स ने बताया, “हम 100 नंबर पर फ़ोन करते रहे। पुलिस नहीं आई। काफ़ी देर बाद किसी जानकार की मदद से दो पुलिसवाले पहुँचे। तब जाकर हम किसी तरह बचते-बचाते वहां से निकले।” कई लोगों से बात करने पर पता चला कि कुछ महिलाएं अँधेरे में छतों से कूदीं। कुछ छिपते-छिपाते निकलीं। शिव विहार से जान बचाने को भागे हज़ारों मुसलमानों में यहां सिर्फ 20-22 थीं। बाक़ी कहीं और हैं। मुस्तफ़ाबाद में अलग-अलग परिवारों ने इन्हें शरण दी।
एक और महिला बताता हैं, “दंगाई कह रहे थे ‘हम तुम्हें आज़ादी देंगे’, ‘इसको तुम्हारा क़ब्रिस्तान बना देंगे। ये लो, आज़ादी लो।” इन बेबस लोगों की मदद को न पड़ोसी आगे आए और न हीं दिल्ली सरकार ने इनकी सुध ली। जब इने पूछा गया कि जब दंगाई हमाला कर रहे थे तो हिंदू पड़ोसी क्या कर रहे थे? उन्होंने कहा, ‘‘पहले तो वे साथ-साथ बाहर खड़े रहे।’’ उन्होंने पड़ेसियों ने कहा, ‘‘हम नहीं बचा सकते। तुम बच नहीं सकते।’’ एक शख़्स ने बताया, “जब हम लोग ख़ुद डंडे लेकर बचाव के लिए अपने घरों और दुकानों के पास खड़े हुए तो वे (पड़ोसी) नाराज़ हो गए। कहने लगे, ‘‘डंडे लेकर क्यों खड़े हो? दुकानें तो तुम्हारी बचने वाली नहीं हैं।’’
बताया जा रहा है कि हमला करने वाले बाहरी थे। लोकिन ये लोग सवाल उठाते हैं कि बाहरी लोगों को कैसे पता कि कौन सा घर किसका है? कौन सी दुकान किसकी है? हो सकता है हमला करने वाले वे बाहरी हों लेकिन जिन्होंने मकान और दुकानों की पहचान करवाई वो तो स्थानीय ही रहे होंगे। अब शिव विहार मुसलमानों से पूरी तरह ख़ाली हो चुका है। एक बुज़ुर्ग बताते हैं, “यहां 6500 वोटर हैं हमारे। इसका मतलब तक़रीबन 15-16 हज़ार मुसलमान होंगे। सारे मुसलमानों ने आम आदमी पार्टी को ही वोट दिया है। इसी की सज़ा इन्हें की दी गई। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि इनके वोट से सत्ता में आने वाली पार्टी ने ने भी बुरे वक़्त में साथ नहीं दिया।
इन लोगों का आरोप है कि उनके फ़ोन सरकारी पार्टी के मंत्रियों और विधायकों ने उठाया और न ही पुलिस ने। अगर किसी पुलिसवाले ने ग़लती से फ़ोन उठा लिया तो सीधा बोला, ‘‘किया है तो भुगतो। आज़ादी लो।’’ कई लोगों ने फ़ोन का रिकॉर्ड दिखाया। एक शख्स ने बताया कि वो आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य है। पार्टी के सभी बड़े नेताओं तक उसकी पहुंच है। लेकिन संकट के समय सभी ने मुंह मोड़ लिया। पार्टी के काम के लिए आदेश देने वाला कोई नेता फ़ोन पर नहीं आया।
मुस्तफ़ाबाद की तंग गलियों में काफ़ी भीड़ है। हमे एक और घर दिखा जहां कुछ महिलाएं और बच्चे शरण लिए हुए हैं। आज सोमवार को भी ये उन्हीं कपड़ों में हैं जो मंगलवार की रात पहनकर आए थे। हमने यहां भी एक महिला से बात की। साथ ही उस बच्चे से भी जिसने हमलावरों को देखा था। सबकी कहानी एक जैसी है। महिला बोली, “हम सिर्फ अपनी जान बचा कर भागे थे। ऐसे हालात में कपड़े लत्ते और सामान लाने का होश कहां था।” डरा सहमा बच्चा वोला, “उन्होंने हमारे घर जला दिए। अगर हम वहां होते तो हम भी जल जाते।”
मुस्तफ़ाबाद के कई घरों में शिव विहार से जान बचाकर आए लोगों ने शरण ली हुई है। आज यानि सोमवार शोम को ही ये लोग ईदगाह में बने शरणार्थी शिविर में चले जाएगें। वहां कई मुस्लिम संगठनों ने कैंप लगाए है। राहत और बचाव का काम वहीं चल रहे हैं। लोग राहत सामाग्री लेकर पहुंच रहे है। राहत सामाग्री से भरे टेंपो लगातार आ रहे हैं। कोई अमरोहा से है। कोई बुलंदशहर से आया है। कोई निज़ामुद्दीन से आया है। नौजवान लड़के-लड़कियाँ भी यहां घूमते दिखे। वे स्थानीय नहीं हैं। कुछ जामिया के छात्र हैं, कुछ जेएनयू के। कुछ आईआईटी के भी है। मुसलमान भी हैं और ग़ैर मुस्लिम भी। ये इंसानियत के रिश्ते से यहां आए है। कुछ डॉक्टर आए हैं और वकील भी। ये सब इंसानियत के नाते ज़रूरत मंदों की मदद को पहुंच रहे हैं।
स्थानीय लोगों ने बताया। किस किस गली में, कसके यहां कितने शरणार्थी है। एक महिला ने झिझकते हुए बताय कि उनके साथ तो नहीं लेकिन कई महिलाओं के सथ बदसुलूक़ी भी की गई। जब उनसे पूछा गया कि क्या वो वापस जाना चाहेंगे या चाहेंगी? जवाब मिला, “कैसे जाएँगे किसके भरोसे जाएं? सुरक्षा हो तब तो जाने के बारे में सोचें। सुरक्षा भी कब तक? कौन देगा सुरक्षा? वही पुलिस जिसने 100 नंबर पर फ़ोन का जवाब तक नहीं दिया था? क्या वह पुलिस सुरक्षा देगी जिसने अपने किए को भुगतने को कहा था? अगर वह बदल भी गई हो तो वह कितने दिन चौकसी करेगी? जब तक पड़ोसी सुरक्षा न दें तब तक सुरक्षा कैसे होगी?”
ये सवाल सबको साल रहे हैं। वक़्त के साथ हिंसा के जख़्म भर जाएगें। शायद टूटे-जले हुए मकान और मस्जिदों की मरम्मत भी हो जाएगी। लेकिन टूटा हुआ भरोसा कैसे क़ायम होगा? यह सबस बड़ा सवाल है। पुलिस की साख़ पर लगा बट्टा कैसे हटेगा। पुलिस वर्दी पर जो दाग़ लगा है उसे साफ़ करने के लिए न साख़ कोई मशीन है न ही डिटरजेंट। ये दाग़ कैसे छूटेंगे। इसका जवाब न पुलिस के पास है और न ही पुलिस के बॉस गृह मंत्रालय के पास है।