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दिल्ली हिंसा का असरः सिखों के क़रीब आए मुसलमन, सहारनपुर में गुरुद्वारे के लिए छोड़ी मस्जिद की ज़मीन  

आस मोहम्मद कैफ़, twocircles.net
सहारनपुर। दिल्ली में हुई हिंसा के बाद सिख और मुस्लिम समुदाय एक दूसरे के बेहद क़रीब आ रहे हैंं। दिल्ली में हिंसा के बाद मुसलमानों को इस बात का एहसास हो हो रहा है कि 1984 में सिख विरोधी हिंसा के बाद उन्हें जिस तरह सिख समुदाय के साथ खड़े खड़ा होना चाहिए था उस तरह से वह खड़ा नहीं हो पाया था। इसके लिए अब मुस्लिम समाज के लोग अपने सिख दोस्तों से माफी मांग रहे हैं। दिल्ली में नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिससे इन दोनों समुदायों के बीच दोस्ती की नई शुरुआत होती दिख रही है। सहारनपुर में बरसों से चला रहा मस्जिद और गुरुद्वारे की ज़मीन का विवाद इस तरह निपटा कि मुसलमानों ने मस्जिद की ज़मीन गुरुद्वारे के लिए गुरुद्वारे के लिए छोड़ दी।
गुरप्रीत सिंह समरा(45) रामराज (मेरठ) में रहते हैं। पिछले कई दिनों से उन्हें अपने मुस्लिम दोस्तों से वाटसअप पर सन्देश मिल रहे हैं। इन संदेश में उनके लिए माफ़ीनामा लिखा है। गुरप्रीत हमें बताते हैं, “मुझे कुछ मुस्लिम दोस्तों ने संदेश भेजा है जिसमें लिखा है। हमे माफ़ कर दीजिए, क्योंकि 1984 के दंगों मेंं आपकी तक़लीफ़ में उतनी मजबूती से खड़े नही हो पाएं जैसा होना चाहिए था। जब सिख समुदाय अदालत में इंसाफ के लिए जूझ रहा था तो हमें आपके साथ खड़े रहना था। हमसे भूल हुई हमें माफ़ करना। आज दिल्ली दंगे में जिन लड़कों ने मुस्लिमों पर हमला किया और उनकी जान ली। 1884 में इन्ही के बाप आप पर किए गए हमलों में शामिल थे। हमें आपको इंसाफ दिलाने की पूरी लड़ाई लड़नी चाहिए थी। हमनें ऐसा नही किया इसलिए हमें यह सब देखना पड़ा।”
गुरप्रीत कहते हैं, “यह पढ़कर मेरा कलेजा रो पड़ा। मुझे  मुसलमानों से बेहद सहानभूति है। उनके साथ ज़ुल्म हो रहा है। कल यह हमारे साथ हुआ था आने वाले कल में भी यह हो सकता है। आज मुसलमान डरे हुए हैं और वो सुरक्षित महसूस नही कर रहे हैं। एक लोकतांत्रिक देश के लिए ऐसे हालात शर्मनाक हैंं। मेरे मुस्लिम दोस्त तक़लीफ़ में है। सिखों ने तय किया है कि हम इनकी मदद करेंगे। सिख कौम हमेशा मज़लूम के साथ खड़ी रहती है, वर्तमान में देश को इस क़ानून की ज़रूरत नही थी। देश में बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार समेत बहुत सी समस्याएं हैं। पूरे देश मे मुद्दों से ध्यान हट गया है हर तरफ बस यही बात है। बहुत ग़लत हो रहा है। यह देश की तरक़्क़ी के लिए सही नही है।”
दिल्ली दंगो के बाद आप जगह-जगह सिखों को मुसलमानों के साथ खड़ा देख रहे हैं। दिल्ली के शाहीन बाग में  नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ चल रहे धरना धरना स्थल पर पर जब कुछ उग्रवादी हिंदू संगठनों ने गड़बड़ी करने की कोशिश की थी तो अगले दिन ही पंजाब के कई शहरों से सिखों का जत्था वहां पहुंच गया था। और उन्होंने ऐलान किया था वो मुस्लिम बहनों की हिफाजत के लिए यहां आए हैं। नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ मुस्लिम  समुदाय के साथ सिख समुदाय मजबूती से खड़ा हुआ है। गुरप्रीत कहते हैं कि यह हमारे भी अस्तित्व का सवाल है। यह सब दर्द हमनें भी झेला है।
मुसलमान भी सिखों के नज़दीक आ रहे हैं। उनके साथ अपने विवाद निपटा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में भी सिख और मुस्लिम नज़दीक आ गए हैं। सहारनपुर वही जगह है जहां 2014 में गुरद्वारा और मस्जिद की ज़मीन के विवाद को लेकर दोनों समुदायों में दंगा हुआ था। इसमें 3 लोगो की मौत हो गई थी। दर्जनों घायल हुए थे और सैकड़ो दुकानें जला दी गई थी। इस दंगे की जड़ बने विवाद को अब दोनों समुदाय के बुजुर्गों ने मिल बैठकर बड़ी सूझबूझ कज साथ शानदार तरीके से निपटा लिया है।
दरअसल सहारनपुर के क़ुतुबशेर इलाक़े में गुरद्वारा गुरु सिंह सभा और उसी के क़रीब मस्जिद की ज़मीन को लेकर विवाद था। जिसमें निर्माण के दौरान दोनों समुदाय भिड़ गए थे। पिछले दिनों हुए समझौते में सिख समुदाय ने मुस्लिम समाज को अलग ज़मीन ख़रीदने के लिए चार लाख रुपये देने का फैसला किया। आपसी सहमति से उन्हें चार लाख रुपये का चेक दे दिया गया। पहले मुस्लिम पक्ष इसके लिए कोई भी क़ीमत नहींं ले रहा था। मुस्लिम पक्ष ने यह पैसा ले लिया और दूसरी जगह ज़मीन की तलाश शुरू कर दी। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था।
हाल ही में हुए दिल्ली दंगो के दौरान सिख समुदाय की मुस्लिमों की मदद को देखते हुए मुस्लिम समुदाय के पक्ष के लोगो ने गुरद्वारा पहुंचकर यह चेक कमेटी के प्रधान जसवीर सिंह बग्गी को लौटा दिया। साथ ही यह भी कहा कि इस पैसे को गुरद्वारा के भव्य निर्माण में खर्च किया जाए और मुसलमान ख़ुद सर पर तसला रखकर कारसेवा करेंगे। मुस्लिम समाज की इस पहल से अभिभूत हुए गुरद्वारा गुरु सिंह सभा कमेटी ने ऐलान किया कि गुरद्वारे में बनने वाली डिस्पेंसरी का नाम मुस्लिम समाज के बाबा फ़रीद के नाम पर रखा जाएगा।
गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा के जसवीर सिंह बग्गा इस पर बहुत खुश हैंं। वो कहते हैं, “पुरानी बातें भुलाकर आगे बढ़ना ही जिंदगी है।हम मुस्लिम समुदाय के शुक्रगुजार है। हमारे दिल में उनके लिए सम्मान बढ़ गया है।” ग़ौरतलब है कि जून 2014 में हुए इस दंगे के बाद सहारनपुर के तीन थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा दिया था और ईद भी संगीनों के साये में गुजरी थी। हालांकि दंगो के तुरंत बाद सिख और मुस्लिम समुदाय के लोगो ने सड़क पर उतर कर शांति की अपील भी की थी। तेज़ी से माहौल सामान्य हुआ था। दंगे में एक नेता मोहर्रम अली पप्पू के भाषण को भीड़ के भड़कने की वजह माना गया था। इसके बाद पप्पू को रासुका के तहत एक साल से भी ज्यादा जेल में रहना पड़ा। वो मुस्लिम पक्ष के अदालत में भी पक्षकार है।
अब मोहर्रम अली पप्पू खुद चेक वापस करने गुरुद्वारा पहुंच गए और कारसेवा की इच्छा जताई। मोहर्रम पप्पू कहते हैं, “दंगा दुर्भाग्यपूर्ण था,हमें उसका पछतावा है। सिख बहादुर कौम है। हम उनका सम्मान करते हैं।दिल्ली में उनकी इन्साफ़पसंदगी ने हमारी आंखे खोल दी है अब खुद गुरुद्वारे में कारसेवा करेंगे। मैं खुद अपने सर पर तसला रखकर जाऊंगा।”
मुज़फ़्फ़रनगर के क़स्बे पुरकाज़ी में इससे पहले सुखपाल सिंह बेदी ने 900 फ़ीट जमीन मस्जिद बनाने के लिए स्थानीय चेयरमैन ज़हीर फ़ारूक़ी को सौंप दी थी। 70 साल के सुखपाल सिंह के मुताबिक ऐसा उन्होंने गुरु नानक साहब के प्रकाश पर्व पर खुशी से किया था ताकि दोनों समुदाय में नज़दीकी आए। बता दें कि शाहीन बाग़ में चल रहे प्रदर्शन में भी सिख समाज लंगर की व्यवस्था संभाल रहा है। मुस्तफ़ाबाद के नाज़िम अंसारी के मुताबिक यहां सिखों की ख़िदमत देखकर मुसलमानों में भी उनके लिए इज़्ज़त बढ़ गई है।
22 साल से पंजाब के जालंधर में रहकर व्यवसाय करने वाले अफ़ज़ल अहमद बताते हैं कि पिछले कुछ वक्त से सिखों ने यहां बहुत सी मस्जिदों को आबाद करने में रुचि दिखाई है। कुछ मस्जिदें आज़ादी के बाद से वीरान थी और अब वहां नमाज़ हो रही है। अफ़ज़ल कहते हैं, “वो खुद ऐसी कम से कम पांच मस्जिदों से जुड़े है जिन्हें जालंधर में सिखों ने आबाद करने मदद की है। हाल फ़िलहाल में सिखों ने मुसलमानों के प्रति काफी नज़दीकी क़ायम की है।” पिछले दिनों 1947 से बंद गोहिर की एक मस्जिद में नमाज़ पढ़ी गई है।