कोरोना का केंद्र नहीं है हज़रत निजामुद्दीन, मुसलमानों को ज़लील करना बंद कीजिए

Image used for representational purposes. source: wikipedia
डाॅ. तारिक़ अज़ीम 
तुम्ही ने दर्द दिया तुम्ही  दवा देना,
मेरे कुछ फाज़िल दोस्त अब एक आईटी सेल मेंं तबदील हो चुके है !
उनको एक एजेन्डा दिया जाता है जो उनकी अपनी सारी नाकामी को ढक देता है। कल से एक नया एजेन्डा तय हुआ है लाखोंं मज़दूरो की तकलीफ , उनका भूखे हफ़्तोंं दर बदर होना, बच्चोंं का भूख से तड़पना, मज़दूरों को सड़क पर बैठा कर ज़हरीले पानी से नहला देना। इस सब को निज़ामुद्दीन प्रकरण को सनसनी बनाकर ढकने की भरपूर कोशिश हो रही है।
ऐसा माहौल बनाया जा रहा है की आस पास के लोग मुसलमान दाढ़ी टोपी को देखकर नफरत करने लगेंं। कोरोना का ठीकरा सारा मुसलमानों के सर फोड़ दिया जाए।
मरकज़ निज़ामुद्दीन ऐतिहासिक ग़ैर राजनीतिक संस्था है
ऐसे समझ लीजिए एक वर्क शाप है। जहाँ बादशाह से लेकर फ़क़ीर तक आते हैंं। अपने बर्तन ख़ुद धोते हैंं।  ख़ुद कपड़े धोते हैंं। ख़ुद झाड़ू लगाते हैंं। वहांं जीने का सलीक़ा सिखाया जाता है। सुबह से शाम तक इतना बड़ा लंगर चलता है जिसका अंदाज़ा नही लगाया जा सकता। सब एक साथ ज़मीन पर बैठ कर खाते हैंं। अमीर ग़रीब का कोई फ़र्क़ नहींं।
आप का जब दिल चाहे वहा चले जाएंं। रुके देखेंं महसूस करेंं। वहांं क्या होता है !
बड़े से बड़ा बिगड़ा मुस्लिम नौजवान जो समाज के लिए अभिशाप बन चुका था अब उसका इतिहास उठा कर देख लीजिए। उसको जमात मेंं भेज कर उसको भारत के संविधान और ईश्वर के क़ानून के मुताबिक़ जीने की कला सिखाई है। उसे बुराईयों से बचा कर अच्छाईयों की तरफ़  लाया गया है। उसे परिवार और समाज का सम्मान करना सिखाया गया है। मनमानी से रोका गया है।
हर सरकार ने हर स्तर पर मरकज़ निज़ामुद्दीन की जांच  करायी है। एक बार इंदिरा गांधी ने भी ख़ुफिया जांच करवाई थी। ख़ुफिया विभाग के लोग मुसलमान बन मुसलमानोंं के साथ रहे थे। काफ़ी दिनों तक। उन्होंने इंदिरा गांधी को यही जवाब दिया था की वहांं जुने की कला सिखाई जाती है। ज़मीन की तो कोई बात ही नही होती। ये लोग या तो ज़मीन के नीचे की बात करते हैंं या आसमान के ऊपर की। दुनिया की कोई बात यह लोग नहींं करते।
कोरोना के मरीज़ का इलाज करना है, ज़लील नहीं करना
रही बात कोरोना की। तो भाई कोरोना के मरीज़ का इलाज करना है। उसको ज़लील नही करना। उसके धर्म को निशाना नही बनाना। जो लोग विदेश से आते हैंं उनका सरकार के पास पूरा ब्योरा होता है। प्रधानमंत्री ने फ़ौरन लाक डाउन कर दिया। जो लोग आए हैंं या तो आप उनको उसी दिन अपने साथ ले जाते या उनके देश भेज देते।
कोरोना का मरकज़ हज़रत निज़ामुद्दीन नहींं है
मरकज़ वाले कोई बायोलोजिकल एक्सपेरीमेंट नहींं कर रहे थे। आप सारा ठीकरा उनके सिर पर फोड़े दे रहे हैंं। दरअसल आप लोग मौत से बहुत डरते हैंं। गांवों से खबरेंं आ रही हैंं। जो मज़दूर मीलों भूखे प्यासे अपने-अपने घर पहुंचे है उनको ज़लील किया जा रहा है। परेशान किया जा रहा है। निकाला जा रहा है। कोरोना का इलाज तो हो जाएगा पर आपकी उस बीमार मानसिकता का इलाज मुझे तो दिखाई नहींं देता।
मरकज़ का पीछा छोड़िये काम पर लगिए
कोरोना से लड़िये किसी धर्म विशेष के लोगोंं से नही। मरकज़ वालोंं का हर क़ागज पत्तर अप टूडेट रहता है। वह हर ख़बर सरकार को दे चुके हैंं। सरकार अपना काम कर रही है। ये सारी ख़बरें भी वह सरकार से शेयर कर चुके थे। कोई ध्यान नही दिया तब डब्ल्यूएचओ को रिपोर्ट की और यह सब कार्यवाही हुई है। आप लोग सनसनी फैला कर इस वक्त किसी धर्म विशेष को निशाने पर ना लीजिए।
किसी का दिल मत दुखाइए। यह दिल दुखाने का ही नतीजा है जो पूरी दुनिया भुगत रही है। वक़्त है अब भी जाग जाइए। इंसान बन जाइए।
(लेखक टीवी पत्रकार हैंं)

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