यूसुफ़ अंसारी
पिछले कुछ साल से मीडिया सके ज़रिए मुसलमानों की नकारात्कुमक छवि गढ़ी जा रही है। इस छवि को बदल कर सुसलमानों का सही तस्दिवीर पेश करने के मक़सद से हाल ही में 200 से ज़्यादा बुद्धिजीवियों के एक ‘थिंक टैंक’ बनाया है। twocircles.net ने इस बारे में 29 अप्रैल को एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस ‘थिंक टैंक’ को लेकर मुस्लिम समाज के भीतर से अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया आ रही है। देश के जाने माने हिंदी साहित्यकार असग़र वजाहत ने एर फैसबुक पोस्ट लिखकर इस ‘थिंक टैंक’ को नसीहत दी है कि वो मुिसलमानों के ग़रीब, कम पढ़े लिखे, अनपढ़ और कट्टरपंथी तबक़े तक पहुंचकर मुस्लिम समाज में अंदरूनी सुराधाों पर विशेष ध्यान दे। उन्होंने और भी बहुत कई सुझाव दिए है।
नए बने मुस्लिम ‘थिंक टैंक’ के लिए प्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार असग़र वजाहत की नसीहत
समाचार मिला है कि देश के 200 से ज्यादा जाने-माने मुसलमानों ने इंडियन मुस्लिम फॉर प्रोग्रेस एंड रिफार्म (IMPAR) नाम की एक संस्था बनाई है जो एक ‘थिंक टैंक’ के तौर पर काम करेंगे। संस्था के मुताबिक़ वह सभी समुदाय के बुद्धिजीवियों और विचारकों के साथ काम करते हुए देश की गंगा जमुना तहजीब (मिली-जुली संस्कृति) और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को जोड़ने की कोशिश करेंगी। संस्था देश के मुस्लिम समाज की आवाज को एकजुटता के साथ व्यक्त करने और उनका पक्ष समाज के सामने रखने का काम भी करेगी। नाम से ही स्पष्ट है कि यह प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और सुधारवादी मुसलमानों की एक संस्था है।
यह बहुत स्वागत योग्य कदम है। वे सब बधाई के पात्र हैं जिन्होंने यह संस्था बनाई है। मुस्लिम समुदाय में शिक्षा और नई चेतना का संचार करना बहुत आवश्यक है।
इस संस्था को मुस्लिम समुदाय के साथ काम करने के संबंध में कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।
- कम पढ़े लिखे, धर्मांध और ग़रीब मुस्लिम समाज में काम करने की अधिक आवश्यकता है। इन लोगों की भाषा उर्दू के साथ-साथ हिंदी भी है। बल्कि यह कहना चाहिए की हिंदी अधिक है। क्योंकि मुसलमानों की नई पीढ़ी हिंदी से अधिक परिचित है। इसलिए उन्हें संबोधित करने का काम उर्दू/हिंदी में होना चाहिए और ऐसी जगह होना चाहिए जहां वे हों और इस तरह होना चाहिए कि बात उनकी समझ में आए। उनकी भागीदारी बहुत जरूरी है।
- आमतौर पर मुस्लिम समाज के उत्थान के लिए संस्थाएं बहुत पढ़े-लिखे, बुद्धिजीवी, उच्च वर्ग के मुसलमान बनाते हैं जिनकी पहुंच उन ग़रीब मुसलमानों तक नहीं होती जिन्हें सामाजिक विकास की आवश्यकता है। पढ़े लिख मुस्लिम समुदाय के लोग प्राय: मुस्लिम बस्तियों में रहते भी नहीं और उनका उन बस्तियों से कोई गहरा संबंध भी नहीं होता। लेकिन आवश्यकता है कि यह काम मुस्लिम बस्तियों और इलाकों में किया जाए। आशा है कि यह संस्था इस पर ध्यान देगी।
- देश के कुछ शरारती तत्व मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने और इस्लाम धर्म को कलंकित करने का षड्यंत्र करते रहते हैं। ऐसी स्थिति में यह बहुत आवश्यक है कि भारतीय समाज में मुस्लिम समुदाय के योगदान, उसकी भूमिका और महत्व को अच्छी तरह रेखांकित किया जाए। सही तस्वीर पेश की जाए। इस्लाम धर्म की सही व्याख्या की जाए।
- भारत के इतिहास और विशेष रूप से मध्य काल के इतिहास को लेकर बहुत भ्रांतियां फैलाई जाती है तथा उसे हिंदू विरोधी सिद्ध किया जाता है। इस संबंध में भी संस्था अपनी जम्मेदारी निभा सकती है।
- संस्था मिली-जुली संस्कृति के आयोजन पक्ष पर भी जोर दे सकती है। यह बहुत ज़रूरी है। जैसे कवि सम्मेलन मुशायरा, संगीत, नाटक, कला संबंधी कार्यक्रम किए जा सकते हैं। लेकिन जरूरी है की ‘टारगेट ऑडियंस’ के लिए ही हों। इन आयोजनों को ‘पांच सितारा’ जैसी जगहों में करने से अधिक लाभ नहीं होता।
- संस्था को अपने विचार लोगों तक पहुंचाने के लिए कलात्मक ढंग से संचार के आधुनिक साधनों का इस्तेमाल भी करना चाहिए।
- मुस्लिम समुदाय में शिक्षा और मदरसों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए
- स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता भी बढ़ानी चाहिए ।
- हिंसा और आतंक के रुझानों के बरख़िलाफ़ शांति और सहयोग की भावना पर बल दिया जाना चाहिए।
- बहुसंख्यक समाज के साथ एक विश्वास और सहयोग का रिश्ता जोड़ने के लिए कई प्रकार से कार्यक्रम किए जाने चाहिए।
- मुस्लिम समाज को यह अवगत कराना चाहिए किस देश की बहुसंख्यक जनता सांप्रदायिक नहीं है और शांति सहयोग के साथ रहना चाहती है।