जानसठ। गुड्डी(56) अपने बेटे विनीत के साथ मीरापुर के मौहल्ले नमक मंडी में रहती है। पिछले साल कैंसर के चलते उनके पति की मौत हो गई थी। तब से बीमार हो गई है और अधिकांश समया चारपाई पर रहती है। बीए कर चुका विनीत एक मिठाई की दुकान में मावा बनाता है।
गुड्डी कहती है, ‘सरकार ने कहा है कि दुकानदारों को अपने नौकरों को इस मुसीबत में भी तनख्वाह देनी है। मगर इसे मानता कोई नही दिख रहा है। पता नहीं यह परेशानी कब खत्म होगी। अब हम तंग हो चुके हैं। आटा और चावल तो राशन डीलर से मिल गया। मगर सिर्फ़ रूखी रोटी और नमक के चावल नही खा सकते। अब परेशानी होने लगी है। सब्ज़ी ख़रीदने के पैसे नही है। फिलहाल हमने यह तय किया है कि एक वक्त आलू बना लेते हैं तो एक वक़्त नमक की रोटी खा लेते हैं।
इससे भी ज़्यादा परेशानी बीमारी की है। मुझे दवाई खानी पड़ती है। शुगर की बीमारी है। मगर अब बिना दवाई के काम चल रहा है। पैसे वालों को अब भी कोई परेशानी दिखाई नहीं देती है। मरना तो बस हम जैसे गरीब का है। पिछले साल मेरे पति का देहांत हो गया था। तब से ही मैं चल फ़िर नही सकती हूँ। एक ही बेटा है पढ़ लिखकर मिठाई की दुकान में हलवाई का काम करता है। पता नही अब क्या होगा! अपने बेटे की बहू का मुहं देख भी पाऊंगी या नही!’
हालत सेसपरेशान गुड्डी नाउम्मीदी जताते हुए कहती हैं, ‘लोग कह रहे हैं कि यह लॉकडाऊन लंबा चलेगा। मुझे यह सब नही पता मगर यह तो मुझे ‘डायन’ लगता है। अब जब बदन को लगने वाला खाना(हेल्दी फ़ूड) नही मिलेगा तो मेरी उम्र के लोगो के लिए जिंदा रहना मुश्किल हो जाएगा। सरकार को जल्दी से जल्दी कुछ करना चाहिए।’
एक जानमोहम्मद का फोन नही उठा रहा उसका मालिक!!
दिल्ली-पौड़ी राजमार्ग पर बिजनोर-मुुुजफ्फरनगर बाईपास पर सबसे भव्य रेस्टोरेंट के 18 वेटर और कर्मचारी अपने मालिक को एक महीने से फ़ोन लगा रहे हैं। मालिक कॉल नही उठा रहा है। 25 मार्च से बंद है। यहां पकौड़े तलने वाले तैयब गुर्दे में इंफेक्शन की वज़ह जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। ‘मोटा'(रेस्टोरेंट में उसका असली नाम कोई नही जानता) के घर मे सब्ज़ी पकाने वाला तेल नही है। जानमोहम्मद अपनी गर्भवती पत्नी की दवाई नही ला पा रहा है।
जानमोहम्मद बताते हैं, ‘मोदी जी ने दरख्वास्त की थी। इन हालात में कोई भी मालिक अपने नौकरों की तनख़्वाह न काटे। हमारे मालिक ने यह नही सुनी है। वो पिछले एक महीने से किसी से बात नही कर रहा है। बहुत से वेटर पहाड़ी इलाके के है। वो भी यहीं फंस गए है। हमारी पिछले महीने की भी तनख़्वाह नही मिली है। जबसे रेस्टोरेंट बंद है। उसकी तो वो पक्का देंगे। इसके बाद नौकरी रहेगी। इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। राशन कार्ड भी नही बना था। बीवी की उम्मीद से है। उसको पहले अंदरूनी दिक्कत हुई थी। इस बार संभलकर दवाई दे रहे थे। मगर हालात रोटी के भी मुश्किल दिखाई दें रहे हैं। आगे का कुछ सूझ नही रहा।’
जानमोहम्मद आगे बताते हैं कि मालिक पैसे से बहुत मजबूत है मगर उनके अंदर की मानवता नहीं जाग रही। इस मौक़े पर भी ऐसे लोग हैं जो गरीब की मदद नही कर रहे हैं। फिर हमारे तो मेहनत के पैसे हैं।भीख़ नही मांग रहे हैं।