नफ़रत को मात हमेशा मुहब्बत ने दी है। नफ़रत का जवाब नफ़रत कभी हो नही सकती। नागपुर का अनिरुद्ध और मुजफ्फरनगर का ग़य्यूर जोधपुर के एक क्वारन्टीन सेंटर में मिले। 14 दिन साथ मे रहे और उसके बाद दिव्यांग ग़य्यूर (45)को वहां से 780 किमी दूरी तय कराकर अनिरुद्ध(29), ग़य्यूर को उसके घर मुजफ्फरनगर लेकर आया। यही नहीं इसमे आधा रास्ता अनिरुद्ध ने दिव्यांग ग़य्यूर की ट्राई साइकिल को धकेल कर पूरा किया।
इस पुण्य के कारण अनिरुद्ध अपने घर नागपुर जा नहींं पाया जबकि जोधपुर से नागपुर 1074 किमी दूर है और मुजफ्फरनगर से नागपुर की दूरी 1159 किमी है। ज़ाहिर है अनिरुद्ध ने सिर्फ ग़य्यूर को उसके घर पहुंचाने की वज़ह से अपने घर की दूरी बड़ी कर ली। अब बारी ग़य्यूर की थी जिसने अनिरुद्ध को अपने घर बतौर मेहमान 14 दिन के लिए रोक लिया और अनिरुद्ध को नागपुर अपने ख़र्चे पर भेजने की जिम्मेदारी ली।
अब दोनों साथ-साथ खाना खाते हैं। एक दूसरे आत्मीयता बढ़ा चुके हैं। इंसानियत के इस गठजोड़ की शुरुआत 21 दिन पहले हुई थी। जोधपुर में ग़य्यूर लकड़ी के बेहतरीन कारीगर हैंं और फ़र्नीचर बनाते हैं। अनिरुद्ध भी जोधपुर में रहकर नौकरी करता है। 23 मई को इन्हें जोधपुर में ही एक स्थान पर एहतियातन क्वारन्टीन किया गया था। ग़य्यूर ने बताया कि उनका वहीं अनिरुद्ध से परिचय हुआ। 14 दिन तक साथ रहने के बाद दोनों ने अपनी सुख दुःख की बात एक दूसरे से साझा की और फिर नजदीकी हो गई।अनिरुद्ध को नागपुर जाना था। वो जोधपुर से 1074 किमी दूर है, जबकि मुझे मुजफ्फरनगर आना था। जोधपुर से भरतपुर तक बस से आया जा सकता था।
बस भरतपुर से पहले 40 किमी मजदूरों को छोड़ कर आ रही थी। मैं दिव्यांग हूँ। ट्राई साईकिल से चलता हूँ।मैं बस मे नही चढ़ सकता था। अनिरुद्ध यह सब समझ रहा था मगर मैं उससे यह नही कह सकता था क्योंकि उसे महाराष्ट्र के नागपुर जाना था। जो बिल्कुल ही अलग रास्ता है। मैं उससे कह नही सकता था। 8 मई को हमारा क्वारन्टीन पूरा हुआ। मैंने अनिरुद्ध से कहा जिंदगी रही तो फिर मिलेंगे। अनिरुद्ध ने कहा मैं आपके साथ चल रहा हूँ, पहले आपको घर छोड़ दूंगा फिर मैं वहां से चला जाऊँगा। आप अकेले नहींं जा पाओगे।
ग़य्यूर बताते हैं कि वो अनिरूद्ध को देखते रह और कुछ नही कह पाएं। जोधपुर से भरतपुर तक बस मिल गई। इस बस ने हमें 40 किमी पहले उतार दिया। अब सबसे बड़ी समस्या बेरिकेडिंग पार करने की थी। राजस्थान से बाहर आना मुश्किल था। मेरे पास ट्राई साईकिल थी। वो हाइवे पर बहुत तेज़ चलती थी और नियंत्रित नही होती थी। अनिरुद्ध उसे पकड़ कर चलता था।
भरतपुर बॉर्डर पर पुलिस ने हमें वापस भेज दिया। मगर अब हम वापस नही जा सकते थे। हमनें तय किया कि गांव की गलियां और जंगल का रास्ता बॉर्डर पार करने के लिए चुनना होगा। राजस्थान के लोग काफी मददगार होते है। उन्होंने सही रास्ता चुनने में मदद की।मगर इन कच्चे पक्के रास्ते पर ट्राई साईकिल नही चल सकती थी। इसके लिए अनिरुद्ध को मेरी ट्राई साईकिल को धकेलना पड़ा।
पूरे पांच दिन रात इसके बाद हम चलते रहे। थक जाते थे तो कहीं भी पेड़ की नीचे जगह देखकर आराम कर लेते थे। मंगलवार को हम यहां पहुंच गए। ग़य्यूर का घर मुजफ्फरनगर के किद्ववईनगर में है। अनिरुद्ध भी यहीं है। अगले 14 दिन तक उसको भी स्थानीय प्रशासन ने होम क्वारन्टीन कर दिया है। अनिरुद्ध बताता है कि “नागपुर में उसका परिवार है।मां बाप परेशान है।वो जोधपुर में काम करता था,जोधपुर पर्यटक स्थल है।
वहां बाहर के हजारों लोग अपने परिवार को चलाने के लिए काम करते हैं। नागपुर के ही कुछ परिचितों के ज़रिए वो यहां आया था वो निकल गए और मुझे छोड़ गए। मेरी ग़य्यूर से मुलाकात क्वारन्टीन सेंटर जोधपुर में ही हुई। ये अच्छे आदमी है। इनका परिवार है। इन्होंने बताया था कि इनकी बीवी भी दिव्यांग है। इनकी हिम्मत टूट चुकी थी। एक दिव्यांग इतना मुश्किल सफ़र नही कर सकता था। मुझे भी अपने घर जाना था। मुझे समझ नही आ रहा था मुझे क्या करना चाहिए! मेरी अंतरात्मा ने कहा कि मुझे इनकी मदद करनी चाहिए। मैं पहले इनको इनके घर पहुंचाता हूँ उसके बाद मैं चला जाऊँगा। मुझे यहां आकर बहुत प्यार और इज्ज़त मिली है। अभी मुझे ग़य्यूर भाई के घर मे ही क्वारन्टीन किया गया है।
यहां की पार्षद सरिता उर्फ़ सादिया ने इस परिवार को राशन भिजवाने की बात कही है। उनके पति मोहम्मद उमर एडवोकेट के मुताबिक यह निहायत ही सुखद और प्रेरक बात है। मजबूर और मज़दूर की एक ही जाति और धर्म होता है और वो है ‘भूख’। ग़य्यूर और अनिरुद्ध दोनों कमाने के लिए घर से इतनी दूर गए थे। अब वो वापस लौट आए हैं। अनिरुद्ध को उसके घर नागपुर भिजवाने की जिम्मेदारी हमारी है। यह हालत बेहद ही तक़लीफ़देह है।
ग़य्यूर और अनिरुद्ध अब दोनों ही लौटकर जोधपुर नहींं जाना चाहते। दो बच्चों के पिता ग़य्यूर कहते हैं कि इस बार ईद के चांद के तौर पर अनिरुद्ध उनके घर आया है।