सियासत और लालच की भेंट चढ़ गुमनामी के कगार पर पहुंच गया है बाँदा का ‘गुलाबी गैंग ‘

आकिल हुसैन । Twocircles.net 

2006 को तीन महिलाएं संपत पाल,हेमलता पटेल,सुमन सिंह चौहान दबी कुचली पीड़ित महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए उठी और गुलाबी गैंग नामक संगठन का निर्माण किया। गुलाबी गैंग का गठन महिलाओं की आवाज़ के रूप में उत्तर प्रदेश के बांदा हुआ था। बुंदेलखंड की रूढ़िवादी परंपराओं और महिला शिक्षा की न्यूनता के कारण इस क्षेत्र की महिलाएं विकास की मुख्यधारा से बहुत दूर रहीं और इन्हीं सब  परिस्थितियों को देखते हुए  विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को जागरूक करने हेतु गुलाब गैंग बना जो कई महिलाओं का समूह या दल था। इस संगठन का नाम गुलाबी इसलिए पड़ा क्योंकि इस संगठन के अंतर्गत आने वाली महिलाएं यूनिफार्म की भांति गुलाबी रंग की साड़ी ही पहनती हैं। गुलाबी रंग की साड़ी ने इन्हे एक अलग और अनूठी पहचान दी। गुलाबी रंग की साड़ी के साथ साथ हाथ में एक लाठी भी इनकी पहचान हैं।


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गुलाबी गैंग की औरतें निपट ग्रामीण परिवेश की हैं। वे सीधे पल्ले की साड़ी पहनती हैं, सिर और माथा पल्ले से ढंका रहता है किंतु उनके भीतर  साहस रहता है। गुलाबी गैंग के शुरूआत में 50 महिलाएं जुड़ी,जो कुछ ही दिनों में 500 हो गई और उसके बाद लगातार जुड़ने वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि होती गई। जैसे जैसे संगठन मजबूत होता गया गुलाबी गैंग महिला शिक्षा, घरेलू हिंसा, महिला प्रताड़ना, महिला सशक्तिकरण पर आवाज़ उठाता गया और वंचित महिलाओं को उनके अधिकार दिलवाता गया। 18 वर्ष की उम्र से लेकर 55 वर्ष तक की महिलाएं इस संगठन से जुड़ सकती थी। इन महिलाओं का संगठन में जुड़ने का मकसद होता था कि कैसे पुरुष प्रधान समाज में आत्म सम्मान से जिए और कैसे आत्मनिर्भर बनें और महिलाओं के ऊपर हो रहे अत्याचार से कैसे निपटे। गुलाबी गैंग की इन महिलाओं ने गांव में गरीबों, औरतों, पिछड़ों, पीड़ितों, बेरोज़गारों के लिए लड़ाई लड़नी शुरु करी।

गुलाबी गैंग में आने वाली महिलाओं को महिला सशक्तिकरण के साथ साथ आत्मरक्षा के गुण भी सिखाया जाता था जिसको गुलाबी आत्म सुरक्षा पहल कहा गया। महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा को देखते हुए उन्हें लट्ठ चलाना सिखाया जाता था, जिससे ज़रुरत पड़ने पर वो अपनी आत्म रक्षा में प्रयोग कर सके। गुलाबी गैंग के अंतर्गत गुलाबी पंचायत बुलाई जाती थी जिसमें महिलाएं अपनी अपनी व्यथा को लेकर आती थी और उस व्यथा का हल भी निकाला जाता था , महिलाओं की समस्यायों का निदान होता था।

गुलाबी गैंग की कमांडर संपत पाल रही और उनकी सहयोगी हेमलता पटेल और सुमन सिंह चौहान रही। धीरे धीरे गैंग का व्यापक प्रसार हुआ आस पास जिलों की महिलाएं भी जुड़ने लगी। सन् 2008 से लेकर 2013 तक गुलाबी गैंग महिलाओं से लेकर दलितों, पिछड़ों, गरीबों, पीड़ितों के मुद्दों को उठाती रही।इसी बीच कई ऐसे प्रकरण हुए जिसमें गुलाबी गैंग का नाम देश-प्रदेश में हुआ। 2011 में बांदा में शीलू बलात्कार केस हुआ जिसमें आरोपी तत्तकालीन बसपा सरकार के विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी थे, उक्त प्रकरण पर गुलाबी गैंग ने बांदा से लेकर लखनऊ तक हल्ला बोला और सरकार को उनके खिलाफ कार्रवाई करने पर मजबूर किया। इस प्रकरण के बाद से गुलाबी गैंग की ख्याति देश विदेश में होने लगीं, लोग इनके द्वारा किये कामों को जानने लगे और जनमानस में एक अलग पहचान बनती गई।

गुलाबी गैंग के इस कारनामे की चर्चा देश प्रदेश के अखबारों में हुई,देश के बड़े बड़े मीडिया हाउस में गुलाबी गैंग की चर्चा होने लगी। गुलाबी गैंग ने इसके बाद उस क्षेत्र में काम किया जहां डकैतों का राज था,आम आदमी डकैतों से डरता था परंतु गुलाबी गैंग के प्रति उनके मन में हमदर्दी बना ली थी।अब लोग छोटी बड़ी हर परेशान को लेकर गुलाबी गैंग के पास आने लगे और देखते ही देखते गुलाबी गैंग और संपत पाल पूरी दुनिया में मशहूर हो गए।

संपत पाल को अब महिला सशक्तिकरण पर वक्तव्य के लिए दूसरे देश बुलाने लगें। संपत पाल शोहरत की बढ़ती चकाचौंध में खोती चली गई। संपत पाल अपने बढ़ते नाम से आम आदमी से दूर होने लगीं। संपत पाल गुलाबी गैंग से मिली ख्याति से निजी फायदा उठाने लगीं।जो संपत पाल कल तक गरीबों और बेसहारा महिलाओं की हमदर्दी के लिए कार्य करतीं थी,अब वो राजनीति से प्रेरित कार्य करने लगीं।

कुछ आरोप भी है जैसे गुलाबी गैंग द्वारा आयोजित कोई भी प्रदर्शन में मेहनत हेमलता पटेल और सुमन चौहान करती थी किंतु सारा श्रेय संपत ले जाती थी। जब मीडिया से बात करने की बारी आती थी तो संपत अपनी सहयोगियों को पीछे कर देती और स्वयं आगे हो जाती, संपत पाल धीरे-धीरे गुलाबी गैंग की आड़ में अपने निजी फायदे को लेकर कार्य करने लगीं। संपत पाल ने यह दिखाना चाहा कि गुलाबी गैंग का वजूद उनके उससे हैं।

लोग कहते रहे और संपत पाल पर गुलाबी गैंग द्वारा भ्रष्टाचार का आरोप भी लगाया गया। कथित तौर पर संपत पर पैसे लेकर कार्य करने का आरोप लगा जो उनके संगठन की महिलाओं द्वारा ही लगाया गया था। संपत पाल वंचित महिलाओं के लिए कार्य करती थी,अब वो इसकी आड़ में अपनी शोहरत के लिए कार्य करने लगीं। इन सबसे गुलाबी गैंग का नाम ख़राब होने लगा, आखिर में संपत पाल को गुलाबी गैंग से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और सुमन सिंह को कार्यवाहक अध्यक्ष बना दिया गया।

बाद में गुलाबी गैंग गैर राजनैतिक से राजनैतिक संगठन बन गया था । जो संगठन वंचित महिलाओं को उनके अधिकार दिलवाने के लिए बनाया गया था वो अब कहीं ना कहीं राजनीतिकरण का शिकार होने लगा । महिलाएं अब संगठन से मिली ख्याति का इस्तेमाल राजनीति में जाने में करने लगीं। धीरे धीरे गुलाबी गैंग संगठन खत्म होने लगा, उससे जुड़ी महिलाएं संगठन से हटने लगी।आज संगठन गुमनामी की कगार पर है।

जो संगठन महिलाओं के उत्थान और वंचित महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए बना था , राजनीतिकरण का शिकार हो गया था,जिस संगठन से महिलाओं की उम्मीद जुड़ी थी वो अब धीरे धीरे खत्म की कगार पर हैं। गुलाबी गैंग से जुड़ी कुछ सदस्य जो अब गैंग से अलग हो चुकी है बतातीं है ” गुलाबी गैंग का इस्तेमाल अब राजनीति के लिए होने लगा, गैंग से जुड़े लोग अपने निजी हितों के लिए कार्य करने लगे जो पहले जनहित में कार्य करतें थे। गैंग से जुड़े सदस्य अपने स्वार्थ के लिए कार्य करने लग गए जो पहले निस्वार्थ भाव से आम जनता के लिए कार्य करतें थे। संगठन से जुड़े लोग पीड़ितो से पैसा लेने लग गए, जिससे संगठन के साथ साथ उनकी भी बदनामी होने लगीं , जहां जाती वहां लोग उनपर अलग अलग आरोप लगाते तो अलग हो गए ” ।

राजनीति और शोहरत की आंधी ने एक झटके ने गुलाबी गैंग का  सबकुछ छीन लिया. जब से संपत ने खामोशी का दामन थामा है, तब से गुलाबी गैंग की चर्चा भी कम हो गई है. संपत और उनकी गैंग पर अब भी दर्जन भर केस चल रहे हैं।

गुलाबी गैंग के आखिरी दौर को याद न करते हुए यदि केवल उसके काम पर ध्यान दिया जाए तो यह मानने में आज भी किसी को हर्ज नहीं है कि गैंग शोषित और पीड़ित वर्ग की बुलंद आवाज था।

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