बेरोजगारी के सबसे बड़े मुद्दे के साथ नीतीश से नाराज है नोजवान !

आम भारतीय के मन मे हमेशा बिहार के मतदाता के राजनीतिक ज्ञान को लेकर उत्सुकता रहती है। कहते हैं बिहार में रिक्शेवाले से लेकर बस कडंक्टर तक स्थानीय सियासी मुद्दों पर जोरदार जानकारी रखते हैं। बिहार के बारे में एक कहावत है कि यहां हर घर में एक नेता होता है। ऐसे बिहार के चुनाव में मतदाता का मन पढ़ना और ज़मीनी चुनावी रिपोर्टिंग करना किसी बहुत बड़ी चुनौती से कम नही है । टीसीएन के पाठकों के लिए मगर हम ऐसा करने का प्रयास करेंगे। बिहार में नामांकन शुरू हो चुका है। बिहार के मिज़ाज को समझना मुश्किल है क्योंकि यहां मतदाता कहता कुछ है और करता कुछ है ! खैर लब्बोलुआब यह है कि इस बात नीतीश कुमार संकट में है और वापसी कठिन है । – संपादक

पटना से Twocircles.net के लिए हुमा अजमल की रिपोर्ट


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जैसे जैसे बिहार चुनाव (2020) नजदीक आता है, मुस्लिमों और यादवों के युवाओं में उच्च स्तर की नाराजगी दिखाई देती है, यहां एक फैक्टर काम करता है जिसे एम-वाई के नाम से जाना जाता है। सांख्यिकीय रूप से, बिहार उन राज्यों में से एक है, जो सबसे अधिक वोट-आधारित मतदान दर्ज करता है, जिससे सभी राजनीतिक दलों के लिए यह हरे-भरे चरागाह बन जाते हैं। जब बिहार के युवा बोलने लगे  तो समझ लीजिएगा उस बात में दम होगा। आजकल देखने मे आ रहा है कि  उच्च जाति  अधिकतर झुकाव जदयू-भाजपा गठबंधन की और है जबकि एमवाई राजद नेतृत्व वाले गठबंधन का समर्थन करता है।

लेकिन इस बार हालात थोड़े जुदा है जैसे सभी जातियों के युवाओं के बीच राज्य की बेरोजगारी और विकास एक प्रभावशाली चिंता बनी हुई है। सभी दलों के बीच, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पास विशाल एम-वाई समर्थक हैं और अब जब ऐसा लगता है कि पार्टी विलुप्त होने के कगार पर है, तो पतवार के लोग सत्ता में वापस आने और अपने पुराने गौरव को फिर से स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंते।

एक स्थानीय युवक सुनील यादव (20 ) के साथ मेरी पहली बातचीत होती है जिसमे पहली बार मतदान करने जा रहे इस युवा से मैं पूछती हूँ !  “आप किसे और क्यों वोट देने जा रहे हैं?” तो वो जवाब टाल जाते है, मगर सुनील यादव (20) इसके उलट सरकार में बने रहने के लिए बिहार के 2015 के चुनाव के बाद नीतीश कुमार की विभाजन की योजना के बारे में बताकर नाराजग़ी जताते  हैं। वो कहते हैं कि नीतीश कुमार ने को MLC होने के बजाय सिर्फ चुनाव लड़ना चाहिए। शायद उन्हें हैसियत का अंदाजा हो। सुनील बेहद नाराज है और  हैरान भी कि  उन्होंने चुनाव के बाद नीतीश ने चुनाव के बाद लालू को धोखा दिया। वो इसपर अत्यंत नाराजगी जताते हैं । वो कहते हैं कि  बाद में, एक-एक करके उन्होंने हर पार्टी का सफाया कर दिया, मुख्य रूप से जाति के आधार पर। उसी जाति के एक अन्य युवक बबलू यादव थोड़ा और तल्ख़ है वो कहते हैं ” जिन्हें यहां  बिहार में ‘सुशासन बाबू’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने सिर्फ अपने विकास और सुशासन को तार-तार कर दिया। वो कुशासन लाये हैं। यहां बेरोजगारी, शून्य उद्योग की स्थापना, नवनिर्मित पुलों के टूटने सहित खराब शासन बन चुका है । बबलू बताते हैं कि  प्रशासन की पूरी तरह से विफलता हो गई है और शराब के आवरण में पुलिस विभाग मे जबरदस्त भ्रस्टाचार है।

बिहार की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले और जागरुक लगने वाले अहबाब जलील को नीतीश के प्रति बहुत नाराजगी थी। उन्होंने कहा कि उन्हें वोट देने के लिए कोई चेहरा नहीं मिला तो मजबूरी थी। नीतीश पहले से ही ऐसे है अब मैंने  उसके लिए वोट नहीं देने का दृढ़ निश्चय किया है क्योंकि वह पूरे समाज और राष्ट्र के लिए जदयू-भाजपा गठबंधन जहरीला  है। उन्होंने कहा कि वह या तो राजद या एआईएमआईएम के लिए वोट करेंगे (यदि यह उनके निर्वाचन क्षेत्र में है)।

जेडीयू-भाजपा गठबंधन के खिलाफ एक और मुस्लिम युवक अब्दुल्ला (21) बेहद  खुलकर आलोचना करता है ! उन्होंने कुमार को एक धोखेबाज नेता का नाम दिया। वो कहते हैं कि एक तरफ  मुख्यमंत्री कहते हैं कि बिहार में कोई एनआरसी नहीं है और दूसरी तरफ वह बीजेपी के साथ गठबंधन में है, जिसके नेता एनआरसी और सीएए के एजेंडे के अपराधी हैं। अब्दुल्लाह को लगता है उन्होंने यह भी अनुमान लगाया कि अगर एनडीए जीतता है तो बिहार सांप्रदायिक कलह बन सकती है। बिहार में सभी दलों के बीच उन्होंने आरजेडी को वोट देने के लिए सबसे उपयुक्त पाया, कम से कम उनके लिए सांप्रदायिक नहीं है।

यहां एक  चर्चा में एक समूह के साथ बातचीत में जो जेडीयू-बीजेपी गठबंधन के बारे में काफ़ी गुस्सा दिखता है मगर यह नीतीश कुमार की प्रशंसा कर रहे थे। लेकिन जल्दी ही दूसरे युवा बेरोजगारी पर इन्हें घेर लेते है।  दूसरा पक्ष  हर लंबे दावे का खंडन करता है। उन्होंने इस बारे में बात की कि कैसे नीतीश कुमार युवाओं को रोजगार देने में असफल रहे और बेरोजगारी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बना रहा। कैसे जदयू-भाजपा ने सामूहिक रोजगार देने की बात की, लेकिन वे वादा पूरा करने में नाकाम रहे।  महामारी के लिए बुनियादी तैयारी के खिलाफ नीतीश कुमार की विफलता और प्रवासी मजदूरों के लिए उनका कुछ ना करना भी नकारात्मक है। उन्होंने यहां तक ​​कहा कि भारत के 29 राज्यों में से बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसके पास दूसरे राज्य से आने  की बाध्यता नहीं है। उन्होंने बिना किसी चर्चा के किसानों और मुसलमानों के खिलाफ बिलों को पारित करने के बाद केंद्र सरकार कैसे बिल पारित कर रही है, इसका उल्लेख किया । हर कोई अपनी सरकार के खिलाफ किसानों, मुसलमानों, बेरोजगार युवाओं का विरोध कर रहा है। बलात्कार के मामले अधिक हैं, लेकिन सरकार अपराधियों को पकड़ने और उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचाने के बजाय इस मुद्दे को निपटाने की जल्दबाजी कर रही है।

युवाओं के बीच में मुद्दा ईवीएम हैकिंग का भी है। वो समूह में उल्लेख करते हैं कि पिछले चुनाव में ईवीएम के कारण वे या उनके रिश्तेदार या परिचित कैसे मतदान नहीं कर पाए थे !  उन्हें लग रहा था कि हर मत की गणना और उनके प्रत्याशी को जीत हासिल हो सकती है। लोगों ने न केवल ईवीएम निरीक्षण की मांग की, बल्कि आगे के चुनावों के लिए इसके उपयोग से पूरी तरह इनकार कर दिया । एक खंड वास्तव में ईवीएम धांधली के बारे में चिंतित था, लेकिन अन्य अप्रभावित रहते हैं। इसने स्वाभाविक रूप से इस ईवीएम और उससे घिरे षड्यंत्रों को दूर करने के लिए बैलट बॉक्स वोटिंग का आह्वान करते हैं।  बिहार के युवा सांप्रदायिक लाइन के खिलाफ मतदान नहीं कर रहे हैं। उनसे बातचीत में लगता है कि उनके लिए बेरोजगारी ही सबसे बड़ा मुद्दा है ऐसा भी है कि 15 साल की गैर-प्रदर्शनकारी सरकार से अब वो मुक्ति चाहते हैं  मगर परेशानी यह है अन्य दलों के पास नीतीश कुमार जैसा नेता वाला चेहरा नहीं हैं। इसे मतदाताओं और उनके नेताओं के बीच एक बहुत कसकर मुद्दा बनाना कठिन है ! अब्दुल्लाह कहते हैं कि चुनाव को सम्प्रदायिक होने से रोकना है बस !!

 
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