असद शेख़ Twocircles.net के लिए
बिहार देश की तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य है,और यहां मुस्लिम आबादी की स्थिति भी देश मे तीसरी सबसे ज़्यादा है। तकरीबन 16 फीसदी मुस्लिम आबादी वाला बिहार मुस्लिम और उससे जुड़ी राजनीति का एक केंद्र रहा है। लालू प्रसाद यादव के दौर में एम वाई समीकरण ने मुस्लिम और उनसे जुड़े मुद्दों को हमेशा खुद का मुद्दा समझा था लेकिन 2005 के बाद स्थिति पूरी तरह बदल गयी। जब लालू के किले पर नीतीश ने फतह हासिल कर ली और उनका 15 साल पुराना अभेद किला ढा दिया,जब लालू सत्ता से बाहर हो गए तो सवाल ये उठने लगा कि मुस्लिम वोट कहा जायेगा? किसे जायगा? क्योंकि नीतीश कुमार ने सरकार भाजपा के साथ मिल कर बनाई थी !
मगर नीतीश कुमार ने भारतीय इतिहास में इस मिथक को तोड़ने का काम किया है,नीतीश कुमार देश के एक मात्र ऐसे नेता हैं जो भाजपा के साथ गठबंधन में भी हैं और बिहार मे पिछले 15 सालों से मुस्लिम वोट अच्छी खासी तादाद में पा भी रहे हैं, यही वजह है कि अपनी राजनीति की बुनियाद मुस्लिम – यादव(एम वाई) पर रखने वाले लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव खुद की पार्टी को अब “ए टू जेड” की पार्टी बोल रहे हैं,अब बात करते हैं मौजूदा राजनीति की यानी बिहार में चल रहे चुनावों की और उसमें मुस्लिम प्रतिनिधित्व की,पिछली बार “महागठबंधन” के होते हुए बिहार में 2015 में 23 मुस्लिम विधायक जीत कर विधानसभा पहुंचें थे,जो अपने आप में एक रिकॉर्ड भी था,क्यूंकि 2000 के बाद ये पहली बार था जब इतने मुस्लिम विधायक जीत कर विधानसभा पहुंचें थें।
जहां एक तरफ राजद ने फिलहाल 41 में से 3 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है वहीं 2 सीटिंग विधायकों के उन्होंने टिकट भी काट लिए हैं,और दूसरी तरफ जदयू अपने 115 में से 11 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतार चुकी हैं वहीं कांग्रेस ने अपने 70 में से 21 सीटों की घोषणा के बाद सिर्फ 1 मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया है,और लोजपा ने भी एक मुस्लिम प्रत्याशी दिया है,बिहार में तकरीबन 11 सीट ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोट 40 फीसदी हैं,और 27 सीटें ऐसी हैं जहां उनकी आबादी 21 से 40 फीसदी तक है,इसके अलावा और बाकी सीटों पर भी अच्छी खासी आबादी में मुस्लिम वोटर्स हैं,जो चुनाव को सिर्फ अपने दम पर पलटने की ताकत रखते हैं और सत्ता तक पहुंचने में महत्वपूर्ण भी हैं।
अब जब दोनों बड़े गठबंधन में सीटों के बंटवारे की बात आई तो नीतीश कुमार ने अपने 115 मे से 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर सभी को चौंका दिया ,अगर उनके उम्मीदवारों के मुताबिक गिनती करें तो उन्होने दस फीसदी टिकट मुस्लिमों को दिए हैं,नीतीश कुमार पर भाजपा के साथ गठबंधन में होने की वजह से अलग अलग तरह के इल्ज़ाम लगते रहे हैं,लेकिन नीतीश कुमार ने टिकट बंटवारे में ये दिखा दिया है कि बिहार में मुस्लिम सियासी धुरी अब दो तरफ घूम रही है जो हो सकता है चुनावों के बाद एक ही तरफ भी घूम जाए।
वहीं दूसरी तरफ तेजस्वी यादव की अपनी पहली प्रत्याशियों की जारी की गई लिस्ट में 41 में से सिर्फ 2 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है,हालांकि अभी काफी ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम उम्मीदवारों का आना बाकी भी है,लेकिन गठबंधन के ऐलान के समय स्टेज पर एक भी बड़े मुस्लिम नेता को नही बैठाया गया जिससे कई बड़े सवाल भी खड़े हुए हैं,एक समय था जब बिहार में मुस्लिम राजनीति सिर्फ लालू प्रसाद यादव की तरफ घूमा करती थी,और मुस्लिम वोट उन्हें जाया ही जाया करता था,लेकिन
नीतीश कुमार ने इस धारणा को बदला है,इस स्थिति पर राजनीतिक विश्लेषक तारिक़ अनवर “चम्पारणी” से जब हमने बात की तो उन्होनें कहा “देखिये बिहार ही नही देश के मुस्लिम मतदाताओं को ये सोचना चाहिए कि उन्हें सत्ता के साथ रहना है,फिर चाहे वो किसी के साथ रह के भी वहां रहा जाए,अब मान लीजिए आने वाले परिणामों में जदयू के सत्ता में लौट कर आने के सबसे ज़्यादा चांसेस हैं,और वो सत्ता में आ भी जाती है और मुस्लिम वोट राजद को देगा तो मुसलमान तो सत्ता से बाहर ही हो गया न? आज जब कम्युनिस्ट राजनेताओं और कथित सेक्युलर नेताओं ने मुसलमानों के लिए भाजपा को अछूत बना दिया है,तो मुसलमान सत्ता में कैसे आएगा? जबकि लोकतंत्र में कभी भी कोई राजनीतिक दल अछूत नही हो सकता है इसी का नुकसान मुसलमान सबसे ज़्यादा उठा रहा है” तारिक़ कहते हैं कि ” आज बिहार में मुसलमान लालू जी की राजनीति को और तेजस्वी की राजनीति को अलग अलग करके देख रहा है,तो वो क्यों नही जदयू को वोट देगा ? क्यूँ नही ओवैसी के गठबंधन को वोट देगा ,क्यों नही पप्पू यादव को वोट देगा ये बड़ा सवाल है,बाकी राजनीति है कौन हारता है ये अलग है आपका अपना क्या नजरिया है ये अलग बात है “
बिहार में लालू यादव सबसे बड़ा नाम रहे हैं,उनकी हैसियत आज भी ये है की भले ही कोई भी मुस्लिम उन्हें वोट न दे लेकिन उन्हें भला बुरा कहने से बचता नज़र आता है,क्यूंकि उनसे एक अलग तरह का मुस्लिमों को लगाव रहा है,लेकिन जब लालू यादव जेल में हैं तो तेजस्वी उनके पीछे कितने मजबूत हैं ये सवाल है |
इस विषय पर जब हमने जामिया के छात्र उमर अशरफ से बात की, उमर कहते हैं “बिहार का मुस्लिम वोट इस बार तीन तरफ बंटने जा रहा है,और ये बंट जाने का मतलब पोज़िटिव में है,यानी मुसलमान राजद को वोट करेगा,जदयू को करेगा लेकिन इसके साथ साथ तीसरे मोर्चे यानी असदुद्दीन ओवैसी के तीसरे मोर्चे को भी वोट देगा क्यूंकि वो बिहार में अब एक मुस्लिम परस्त पार्टी की तरह नही देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बसपा,केन्द्रीय मंत्रालय तक में हिस्सेदार रही रालोसपा समेत पांच पार्टियों के गठबंधन के साथ चुनाव लड़ रहे है,और हार जीत अपनी जगह लेकिन उन्हें नजरअंदाज़ किया जाना आसान नही है”
सवाल यह है कि राजद जो की दिल्ली दंगों में अपने छात्र नेता और दिल्ली युवा प्रदेश के अध्यक्ष मीरान हैदर तक के समर्थन में नही बोलती है,आवाज़ नही उठाती है और सिम्बोलिक राजनीति को दर्शाते हुए एक भी मुस्लिम नेता को गठबंधन के ऐलान के समय स्टेज पर नही बुलाती है तो क्या हम जैसे पढ़े लिखे युवा उनसे ये नही पूछें की आपमें और भाजपा में क्या फर्क है “
अब सवाल ये है कि मुसलमान किधर झुकेगा ?दरअसल बिहार की राजनीति में जब 2014 में नीतीश कुमार की पार्टी को माईनस करके देखा जाता है और राजद का मुकाबला भाजपा से होता है भाजपा मज़बूत नज़र आती है जिसकी मिसाल है 2014 का लोकसभा चुनाव है,जहाँ भाजपा एक तरफा जीत कर सत्ता में आई थी,लेकिन जैसे ही जदयू भाजपा की तरफ जाती है तो भाजपा को थोड़ा सोचना और समझना पड़ जाता है कि क्या बोले और क्या करें? लेकिन क्या मुसलमान वोटर इस तरफ देख पा रहा है? वो वक़्त की नब्ज़ समझ पा रहा है? क्या वो फिर से जदयू को वोट देगा? या पुराने हमदर्द राजद को वोट देगा ?
जदयू मुस्लिम उम्मीदवार – ( 115 में से 11 मुस्लिम उम्मीदवार )