सवर्ण छात्रों को दलित भोजन माता से हुई नाराजग़ी, नौकरी खत्म !

जिब्रानउद्दीन।Twocircles.net

देवों की भूमि कही जाने वाले उत्तराखंड में एक दलित समाज से आने वाली एक भोजन माता को सिर्फ इसलिए हटा दिया गया क्योंकि स्कूल के सवर्ण समाज के छात्र दलित महिला के हाथ से खाना नही खाना चाहते थे। यह घटना बताती है कि आज़ादी के सात दशक से भी अधिक समय हो जाने के बावजूद हम जाति प्रथा से मुक्त नहीं हो सके हैं। आए दिन हम जाति के आधार पर हो रही कई तरह की नाइंसाफी की घटनाएं सुनते और देखते हैं। घटना उत्तराखंड के चंपावत जिले के सुखीढांग इंटर कॉलेज की है। छात्रों ने अपने अभिभावकों के साथ मिलकर स्कूल में खूब हंगामा किया।इसके बाद दलित महिला को नौकरी से निकाल दिया गया।


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पूरे मामले की शुरुआत 25 नवंबर से शुरू हुई। जब सुनीता नाम की एक दलित महिला को चंपावत जिले के सुखीढांग गांव में एक स्थानीय सरकारी स्कूल में “भोजन माता”, एक रसोइया के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके कुछ दिनों के बाद 14 दिसंबर को ही सुनीता के दलित होने का पता चला। सुनीता के कहे मुताबिक इसके बाद उनके द्वारा बनाए गए खाने को “उच्च जातियों” के कुछ छात्रों ने खाने से साफ इंकार कर दिया।

मामला सिर्फ यहीं नहीं रुका बल्कि इसके बाद उन छात्रों के अभिभावकों ने, किसी दलित महिला का भोजन माता बनाएं जाने को लेकर खुब हंगामा मचाया। जिससे दवाब में आकर शिक्षा विभाग ने अनुसूचित जाति वर्ग के महिला की नियुक्ति रद्द कर दी। हालांकि वहां के अधिकारी इस हंगामे की वजह, गलत ढंग से की गई नियुक्ति को बता रहे हैं, लेकिन इस दावे पर कई तरह के दूसरे सवाल उठते दिख रहे हैं।

उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों में मिड डे मील योजना के लिए, जिन महिलाओं को खाना पकाने के लिए नियुक्त किया जाता है, उन्हे “भोजन माता” कहा जाता है। उनका एक ही काम होता है कि वो छात्रों के लिए स्कूल के किचन में खाना बनाएं।

जानकारी के अनुसार राजकीय इंटर कॉलेज सूखीढांग में कुल 230 छात्र पढ़ते हैं। जिनमें क्लास 6 से 8वीं तक के 66 बच्चे मिड-डे मील ग्रहण करने के दायरे में आते हैं। जिनमें से मात्र, 16 छात्रों ने ही मिड-डे मील खाया, जोकि एससी वर्ग से आते हैं। वहीं उच्च वर्ग का कोई भी छात्र खाने के लिए नहीं आया, कई बच्चे घर से टिफिन लेकर आए थे। वहीं कइयों ने खाना ही नहीं खाया। इस घटना के बाद विवाद शुरू हुआ।

सुनीता ने एक मीडिया को बताया, “मुझे बच्चों के लिए खाना बनाने से मना किया गया क्योंकि मैं एक दलित हूं। यह अपमानजनक था। लेकिन वे (अभिभावक) बहुत अडिग थे।” सुनीता आगे कहती हैं कि उनके पास कोई जगह नही है जहां वो नौकरी और अपनी गरिमा के लिए न्याय मांगने जा सकें। “13 दिसंबर को जब मैंने स्कूल में पहली बार भोजन बनाया था तब सभी छात्रों ने बिना किसी समस्या के भोजन खा लिया था। लेकिन, अगले दिन, उन्होंने मेरे द्वारा तैयार किया हुआ खाना खाने से मना कर दिया”।

सुनीता अपने घर में अकेले कमाने वाली हैं। उनके पति बीमारी के चलते बेरोजगार हैं। उनके ऊपर, पति के इलावा, दो बच्चों के भी पालन पोषण की जिम्मेदारियां है। इस नौकरी का वेतन तो मात्र 3000 रुपए था, जो पहले ही काफी मुश्किल से उनके परिवार को चला पाता लेकिन कम से कम एक स्थिर आय का माध्यम बना हुआ था। अब जातिवाद ने उनके इस उम्मीद को भी खत्म कर दिया है।

हालांकि कुछ ग्रामीणों द्वारा एक दावा ये भी किया जा रहा है अभिभावक, मात्र गलत ढंग से की गई नियुक्ति के खिलाफ थें। उनका मानना था कि रसोइए के चयन के दौरान स्कूल द्वारा अधिक जरूरतमंद महिलाओं को अनदेखा किया गया था। मीडिया से बात करते हुए एक ग्रामीण बताते हैं, “पुष्पा भट्ट जोकि एक विधवा है, उसे इस पद के लिए चुना गया था, लेकिन अंतिम समय में सुनीता को नियुक्त कर लिया गया। हम सिर्फ इस नियुक्ति के जांच की मांग कर रहे हैं और ये भी जानना चाहते हैं कि पुष्पा भट्ट को नौकरी क्यों नहीं दी गई।”

सुनीता का गलत ढंग से चुने जाने पर, उनका कहना है कि उन्होंने नौकरी के लिए आवेदन दिया था जिस पर स्कूल के प्रिंसिपल ने उनका चयन किया था। “मैंने एक हफ्ते तक काम किया, लेकिन उच्च जाति के माता-पिता ने मुझे इतना अपमानित किया कि मैं वापस शामिल होने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।

दूसरी ओर स्कूल के प्रिंसिपल प्रेम आर्य ने भी घटना के ऊपर अपनी प्रतिक्रिया दी है, जिसमें उन्होंने इस घटना की पुष्टि की और कहा कि मामले की विभागीय जांच चल रही है। आर्या कहते हैं, “सुनीता की नियुक्ति नियम के अनुसार ही की गई थी, लेकिन कई अभिभावकों ने इसका विरोध किया और अपने बच्चों को उनके द्वारा पका हुआ खाना खाने से मना कर दिया।” सुनीता के अलावा, स्कूल में एक और भोजन माता है, जो उच्च जाति की महिला है, अभी छात्रों के लिए खाना वही बना रही हैं।

मामले की गंभीरता को भांपते हुए चंपावत के जिला मजिस्ट्रेट विनीत तोमर ने जिला शिक्षा विभाग को निर्देश दिया है कि वह नियुक्ति की अनियमितताओं का पता लगाए और साथ ही दलित भोजन माता द्वारा स्कूल में भोजन परोसने पर अभिभावकों द्वारा आपत्ति जताए जाने की भी जांच करें।

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