किसान आंदोलन के दौरान सबसे ज्यादा टिकरी,सिंघु और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर चर्चा में है, जबकि एक और बॉर्डर पर हजारों किसान 30 दिन से जमा हुए हैं। यह देश की लाइफलाइन कहे जाना वाला एनएच-48 है। इसे हरियाणा और राजस्थान की सीमा भी कहा जा सकता है और यहां पर देशभर से पहुंचे किसानों का क्रमिक अनशन भी जारी है।
Twocircles.net के लिए इसी शाहजहांपुर खेड़ा बॉर्डर से रियाज़ हाशमी की यह ग्राऊंड रिपोर्ट पढिये –
30 सर्द रातें सड़क पर कट चुकी हैं, कई बार मौसम ने भी सितम ढाए और एक दिन रोज गुजर जाता है उस सुबह के इंतजार में जिसे किसान देखना चाहते हैं। देश की राजधानी से 135 किमी दूर दिल्ली-जयपुर-मुंबई हाईवे (एनएच-48) के अलवर (राजस्थान) और रेवाड़ी (हरियाणा) बॉर्डर पर करीब 3 किमी में किसान आंदोलन के चलते एक पूरा गांव बस गया है। इसमें एक ग्रामीण भारत अंगड़ाई लेता नजर आता है। देश के अलग अलग हिस्सों से यहां किसानों के साथ उनकी संस्कृति और सभ्यता भी दर्शन दे रही है। महिलाएं, बुजुर्ग, नौजवान और किशोर 30 दिनों से हाईवे पर डेरा डाले हुए हैं। दिल्ली के सिंघु और टिकरी बॉर्डर जैसी सुविधाएं यहां नहीं हैं, लेकिन कृषि कानूनों के खिलाफ जोश की कमी नहीं है। अलाव, जोशीले भाषण और नारे हाड़ कंपकंपाती हवाओं को मात दे रहे हैं। आंदोलनकारी दिल्ली कूच करने को तैयार हैं और स्थानीय जीवन पर आंदोलन का प्रभाव दिखने लगा है। करीब 800 से अधिक उद्योग कच्चे माल की आपूर्ति, कर्मचारियों की आमद और उत्पादों की सप्लाई से लाचार हो चुके हैं। प्रशासन ने किसानों का दिल्ली कूच रोकने के लिए फोर्स की थ्री लेयर सुरक्षा, आरसीसी बोल्डर्स की बैरिकेडिंग और लोहे के बड़े कंटेनर्स के अवरोध खड़े कर रखे हैं।
हाईवे के डिवाइडर पर बीचोंबीच बना मंदिर और उस पर लहराता तिरंगा राजस्थान के अलवर और हरियाणा के रेवाड़ी की सीमा है। यहीं से अलवर की ओर पहले किसानों का धरनास्थल है और फिर दूर तक आंदोलनकारियों की झोपड़ियां नजर आती हैं। शाम के 4 बजते ही सूरज मंद पड़ चुका है, दिन की गर्माहट को 10 डिग्री तापमान के बीच सर्द हवाएं उड़ा ले गई हैं। किसान और पुलिसकर्मी मिलजुलकर लकड़ी और गोबर के कंडों की ढेरियां बनाकर अलाव जला रहे हैं। राजस्थान के 11 किसान क्रमिक अनशन पर हैं, इनमें 3 महिलाएं भी हैं। तीन दिनों में यहां सिर्फ महिलाएं ही अनशन पर थीं, जिनमें महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके की वे महिलाएं भी आई थीं जिनके किसान पति बीते सालों में आत्महत्या कर चुके हैं। एक दिन पहले गुजरात और महाराष्ट्र के सीमावर्ती गांवों से किसान और खेतिहर मजदूर यहां पहुंचे थे। आने जाने का यह क्रम 30 दिनों से अनवरत जारी है। आने वालों में कुछ आंदोलन में ही बस जाते हैं और हर दिन 8-10 नई झोपड़ियों का हाईवे पर इजाफा हो रहा है।
आंदोलन स्थल की कमान संभालने वाले जाट महासभा राजस्थान के अध्यक्ष राजाराम मील आंदोलनकारियों के बीच घूम रहे हैं। पीछे चल रही नौजवानों की एक टीम दो दिन पहले हुई बारिश में भीगे किसानों के गद्दे, कंबलों में जो सूख चुके हैं, उन्हें झोपड़ियों में भिजवा रही है। झोपड़ियों में कुछ के ऊपर लाल झंडे लगे हैं। इनमें ट्रेड यूनियनों से जुड़े किसान मजदूरों का डेरा है। कई राज्यों की जनवादी महिलाओं के टेंट भी हैं। सभी झोपड़ियों के ऊपर तिरंगा और किसान संगठनों के अपने झंडे भी लहरा रहे हैं। बाहर प्रख्यात कवियों और शायरों की क्रांतिकारी रचनाओं वाले फ्लेक्स लटके हुए हैं।
सांझ ढलते ही बर्फीली हवाएं तीव्र हो चली हैं। अनशन पर बैठे दो बुजुर्ग किसानों की जोड़ी आंदोलनकारियों को उत्साहित कर रही है। ये जयपुर की फुलेरा तहसील से आए नारायण लाल (68) और गोपाल जी मीणा (72) हैं। सवाल किया तो पता चला कि गोपाल गूंगे हैं, लेकिन इशारों में जवाब देते रहे और नारायण उनके इशारों की व्याख्या करने लगे, ‘गांव में 10 बीघा का काश्तकार हूं और बच्चों को कहकर आया हूं कि या तो कानून वापस कराकर या फिर मरकर लौटूंगा।’ जोधपुर की लवेरा बावड़ी के जोइतरा गांव से आई 45 साल की संगीता भी अनशन पर हैं। इनके साथ दो बेटियां छाया (15) और शीतल (17) भी हैं। संगीता बता रही हैं कि खेती में लगातार घाटे की वजह से उन्होंने अपनी 8 बीघा जमीन 40 हजार रुपये सालाना पर ठेके पर दे रखी है। पति मजदूरी करते हैं और वह बेटियों के साथ 24 दिसंबर से किसान आंदोलन में शामिल हैं। दुर्गापुर के नीलेश रौट (26) 40 लोगों के जत्थे के साथ 3 जनवरी से आंदोलन का हिस्सा हैं। ये सभी 7-8 बीघा के काश्तकार हैं। चावल, गेहूं, चना, बाजरा, ग्वार और मूंगफली की फसल से लगातार घाटे की कहानियां सुनाने लगते हैं।
शाम के 6 बजते ही आरएएफ के कंपनी कमांडर जवानों को नियमित ब्रीफिंग कर रहे हैं। राजाराम मील इस पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं, ‘ये सब हमारे बच्चे हैं। जब दिल्ली की तरफ हम कूच करेंगे, ये कुछ नहीं कहेंगे।’ हाईवे पर भारी भरकम अवरोधों को कैसे पार करेंगे? इस सवाल पर मील कहते हैं, ‘हमने जेसीबी मशीनें और क्रेनें मंगवा ली हैं। सबको उठाकर फिंकवा देंगे।’ वे बताने लगते हैं कि 30 दिसंबर को सैकड़ों उत्साही किसान तमाम अवरोधों को पार करके दिल्ली की ओर गए थे, लेकिन 35 किमी दूर पुलिस फोर्स ने इन पर आंसूगैस और वाटर कैनन चलाकर धारुहेड़ा में रोक लिया।
अब रात गहराने लगी है और दूर तक अलाव जलते हुए दिख रहे हैं। एक खेमे के बाहर किसानों की लंबी लाइन लगी है, यह मेवाती खेमा है। मुफ्ती सलीम कासमी साकरस के इस खेमे में 24 घंटे चाय नाश्ता आंदोलनकारियों को परोसा जा रहा है। 15 वॉलींटियर्स इस काम में जुटे हैं। राजस्थान और हरियाणा के मेवात इलाके में आने वाले हर गांव से यहां रोजाना 500 लीटर दूध मुफ्त दिया जा रहा है। अलाव के इर्दगिर्द किसान चाय की चुस्कियों के साथ हुक्का भी गुड़गुड़ा रहे हैं। जाट महासभा के जिलाध्यक्ष बलबीर सिंह छिल्लर कह रहे हैं, ‘आंदोलन जितना लंबा चलेगा, भाजपा को उतना ही महंगा पड़ेगा। हरियाणा में किसानों ने सीएम मनोहर लाल खट्टर का हेलीकॉप्टर लैंड नहीं होने दिया और उनके कार्यक्रम में भयंकर विरोध करके जता दिया है कि किसान बनाना जानते हैं तो बिगाड़ना भी जानते हैं।’ पंजाब के बठिंडा से कुछ नौजवान एक ट्रक में रजाईयां और गद्दे लेकर पहुंचे हैं और स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव हाथ जोड़कर न सिर्फ उनका आभार जता रहे हैं, बल्कि अपने फेसबुक पेज पर लाइव होकर उनके बारे में बता भी रहे हैं। मील के साथ ही यादव भी इस आंदोलन के अहम जिम्मेदारों में शामिल हैं।
बॉर्डर के दोनों ओर हाईवे पर कंटेनर लदे ट्रक 15-20 दिनों से फंसे खड़े हैं। पुलिस फोर्स ने कुछ ट्रकों के कंटेनर क्रेनों से उठवाकर हाईवे पर अवरोध के लिए रखवा दिए हैं। कुछ ट्रकों को इस तरह फंसा दिया गया है, ताकि पैदल निकलने का भी रास्ता न बचे। इस हाईवे पर हीरो मोटोकॉर्प समेत अनेक 800 बड़ी इंडस्ट्रीज और मल्टीनेशनल कंपनियों के मुख्यालय हैं, जो आंदोलन के कारण बुरी तरह से प्रभावित हैं। यहीं पर घूम रहे यूट्यूब वीलॉगर शिवलाल चौधरी बता रहे हैं कि कोविड काल में अब पूरी तरह संभले उद्योग इस आंदोलन के चलते 20 फीसदी उत्पादन तक सिमट गए हैं। नीमराणा क्षेत्र के भारतीय जोन में 379, जापानी जोन में 54, घिलोठ में 24, शाहजहांपुर में 46, बहरोड़ में 105, सोतानाला में 45 व केसवाना में 25 उद्योगों में सीधा असर पड़ा है। उद्योगों के कर्मचारियों की बसें गुरुग्राम, भिवाड़ी या हरियाणा बॉर्डर से होकर आती जाती थी, जिनका आवागमन नहीं हो पा रहा है। जिस हाईवे पर किसानों का डेरा है, इसे देश की लाइफलाइन कहा जाता है।
यहां से 10 दिन पहले दिल्ली की ओर कूच करते करीब 4 हजार किसान धारुहेड़ा में इसी हाईवे पर सुखदेव ढावे के सामने पुल के नीचे पड़े हैं। इनके आगे भी ऐसे ही अवरोध हैं और पुल के ऊपर अर्द्धसैनिक बल तैनात हैं। ग्रामीण किसान मजदूर समिति के प्रवक्ता संतवीर सिंह 30 दिसंबर को यहां फोर्स के एक्शन में किसानों के घायल होने की जानकारी सिंघु बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं को फोन से दे रहे हैं। बता रहे हैं कि फोर्स ने टियर गैस और वाटर कैनन के अलावा ऐसे स्मॉक बम चलाए जिससे किसानों के पैर जख्मी हुए। कुछ ही घंटे में संयुक्त किसान मोर्चा का एक दल जतेंद्र सिंह छीना के नेतृत्व में यहां पहुंचकर घायल किसानों का हालचाल ले रहा है। छीना कह रहे हैं कि सरकार इस जनांदोलन को आतंकवाद और नक्सलवाद से जोड़ने की साजिश इसलिए कर रही है कि देशवासियों और पुलिस फोर्स का किसानों के प्रति रवैया बदल जाए। वे धारुहेड़ा में किसानों पर फोर्स के एक्शन को इसी से जोड़ते हैं। यहां अब रात आधी बीत चुकी है, लेकिन किसानों और फोर्स की गहमागहमी दिन जैसी ही है।
ढाबे के बाहर कुछ नौजवान लंगर लगाए हुए हैं और ‘प्रसादा, प्रसादा’ की आवाजें लगाकर चाय, नाश्ते और खाने के लिए किसानों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। सड़क पर ट्रैक्टर ट्रालियों और खेमों को वाटरप्रूफ कर लिया गया है, लेकिन शीतलहर के असर को रोक पाने में ये सक्षम नहीं हैं, लिहाजा किसान अलाव के सहारे अर्द्धनिद्रा की मुद्रा में सुबह होने का पिछली रातों का तरह इस रात भी इंतजार कर रहे हैं। आंदोलन स्थल पर साहिर लुधियानवी की नज्म वाला फ्लैक्स लहरा रहा है, जिस पर लिखा है, ‘वो सुबह कभी तो आएगी, इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा, जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा, जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नग़्मे गाएगी, वो सुबह कभी तो आएगी…।’