अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या दिवस पर विशेष :संघ के बड़े एजंडे का छोटा सा हिस्सा है यूपी का जनसंख्या नियंत्रण कानून

यूसुफ़ अंसारी

साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद बीजेपी देश भर में अपने व्यापक एजेंडे को लागू करने की दिशा में एक-एक क़दम आगे बढ़ा रही है। 2019 में दूसरी बार बनी मोदी सरकार के बाद इस काम में तेजी आई है। 5 अगस्त 2019 को जम्मू- कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना और 9 नवंबर 2019 को अयोध्या मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ़ हुआ। उसके बाद तीसरा अहम मुद्दा समान नागरिक संहिता का है। देश के कई हाई कोर्ट देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत बता चुके हैं। लेकिन इन सबसे ज्यादा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर पूरे देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के मंसूबे बना रहा है। उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून संघ के इसी व्यापक एजेंडे का छोटा सा हिस्सा है। उत्तर प्रदेश के साथ ही असम में भी दो साल पहले किए गए फैसले को अमलीजामा पहनाने का काम शुरू हो चुका है।


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उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर योगी सरकार ने फॉर्मूला तैयार कर लिया है। इसके तहत दो से ज़्यादा बच्चे वालों को न तो सरकारी नौकरी मिलेगी और न ही वो स्थानीय निकायों, ग्राम पंचायत और ज़िला पंचायत का कोई चुनाव लड़ पाएंगे। उत्तर प्रदेश की राज्य विधि आयोग ने सिफ़ारिश की है कि एक बच्चे की नीति अपनाने वाले माता पिता को कई तरह की सुविधाएं दी जाएं, वहीं दो से अधिक बच्चों के माता-पिता को सरकारी नौकरियों से वंचित रखा जाए। साथ ही स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से रोकने समेत कई तरह की पबंदी लगाने की सिफारिश भी की गई है।

जनता से राय मांगने का नाटक

उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण क़ानून का मसौदा तैयार करके आम लोगों से इस पर सुझाव मांगे हैं। आयोग ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर इस मसौदे को अपलोड़ कर दिया है। लोगों 19 जुलाई तक आपत्तियां व सुझाव देने को कहा है। लोगों की राय सामने आने पर योगी सरकार इसे लागू करने या नहीं लागू करने पर आख़िरी फैसला करेगी। अगर योगी सरकार इस फॉर्मूले को हरी झंडी दे देती है तो फिर यूपी में जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में बड़ा क़दम माना जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मूड इसे विधानसभा चुनाव से पहले लागू करने का लगता है। लोगों से राय मांगना महज़ नाटक है

दूसरे राज्यों से है प्रेरित

राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एएन मित्तल के मार्ग-दर्शन में यह मसौदा तैयार किया गया है। आपत्तियों एवं सुझावों का अध्ययन करने के बाद संशोधित मसौदा राज्य सरकार को सौंपा जाएगा। देश के अन्य राज्यों में लागू क़ानूनों का अध्ययन करने के बाद यह मसौदा तैयार किया गया है। इसे उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण) एक्ट 2021 के नाम से जाना जाएगा। यह 21 वर्ष से अधिक उम्र के युवकों और 18 वर्ष से अधिक उम्र की युवतियों पर लागू होगा।

एक बच्चे पर राहत ही राहत

योगी सरकार का यह प्रस्तावित कानून पहले से ही कई राज्यों में लागू कानूनों से प्रेरित है। इसमें वन चाइल्ड पॉलिसी स्वीकार करने वाले बीपीएल श्रेणी के माता-पिता को विशेष तौर पर प्रोत्साहित करने का प्रस्ताव रखा है। इसके तहत जो माता-पिता पहला बच्चा पैदा होने के बाद आपरेशन करा लेंगे, उन्हें कई तरह की सुविधाएं दी जाएंगी। पहला बच्चा लड़का होने पर 80 हजार रुपये और लड़की होने पर एक लाख रुपये की विशेष प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। ऐसे माता-पिता की बेटी उच्च शिक्षा तक नि:शुल्क पढ़ाई कर सकेगी। जबकि पुत्र को 20 वर्ष तक नि:शुल्क शिक्षा मिलेगी। इसके अलावा उन्हें नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा और सरकारी नौकरी होने की स्थिति में सेवाकाल में दो इंक्रीमेंट भी दिए जाएंगे।

दो से ज्यादा बच्चों पर आफत ही आफत

आयोग ने दो से ज्यादा बच्चों के माता-पिता को कई तरह की सुविधाओं से वंचित करने का प्रस्ताव रखा है। इसमें उन्हें स्थानीय निकायों का चुनाव लड़ने से रोकने, सरकार से मिलने वाली सब्सिडी बंद किए जाने, सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने पर रोक लगाने तथा सरकारी नौकरी कर रहे लोगों को प्रोन्नति से वंचित करने का प्रस्ताव रखा गया है। ये सभी प्रस्ताव जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करके नागरिकों को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण से संबंधित पाठ्यक्रम स्कूलों में पढ़ाए जाने का सुझाव भी दिया है।

ध्रुवीकरण का कोशिश

जनसखंया नियंत्रण पर क़ानून बनाने का दिशा में क़दम उठाने वाला उत्तर प्रदेश देश का दसवां राज्य हैं। नौ राज्यों में पहले से ही ऐसा क़ानून लागू है। सभी राज्यों के जनसंख्या नियंत्रण क़ानून में लगभग एक जैसे प्रावधान हैं। राज्यों में ऐसे क़ानून लागू करने का मक़सद जनसंख्या नियंत्रण को लिए आम लोगों को प्रोत्साहित करना है। यूपी से पहले जिन राज्यों में ऐसे क़ानून लागू किए गए वहीं ज़्याजा शोर नहीं मचा। लेकिन यूपी में कुछ महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने है लिहाजा चुनावी फायदे के लिए योगी सरकार इस क़ानून के ज़रिए अपने कट्टर वोटबैंक को संदेश दे रह ही है। इससे ध्रुवीकरण होने का वजह से बीजेपी को बड़ा फायदा मिल सकता है।

मई 2019 में केंद्र में नरेंद्र मोदी क्या दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद संघ में जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर देशभर में व्यापक चर्चा करने और इस इस पर एक केंद्रीय क़ानून बनाने को लेकर दूरगामी योजना तैयार की गई थी। जुलाई के पहले हफ्ते में इस मुद्दे पर आरएसएस और बीजेपी के बड़े नेताओं के बीच एक खुफिया बैठक हुई थी। इसमें पूरी योजना को अमलीजामा पहनाने पर गहन विचार विमर्श किया गया था। इस बैठक के बाद पहले ही संसद सत्र के दौरान संघ विचारक के रूप में मशहूर बीजेपी के राज्यसभा सदस्य प्रोफेसर आरके सिन्हा ने राज्यसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया। उसके बाद बीजेपी के तीन और राज्यसभा सदस्य इसी तरह का बिल पेश कर चुके हैं। संघ की योजना 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जनसंख्या नियंत्रण को एक बड़ा मुद्दा बनाने की है।

पीएम मोदी की सहमति

संघ के इस पूरे मंडे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूरी सहमति है। इसीलिए 2019 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से दिए अपने भाषण में उन्होंने जनसंख्या विस्फोट को आने वाली पीढ़ी के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक मुद्दा बताया था तब उन्होंने छोटे परिवार को देश भक्ति की निशानी करार दिया था साथ ही उन्होंने यह भी संकेत दिया था कि राज्य सरकार है इस प्रकार ओम बना सकती हैं और केंद्र सरकार को भी इस पर भविष्य में पहल करनी चाहिए यह कहकर प्रधानमंत्री ने समाज में एक चर्चा के लिए इस मुद्दे को छेड़ दिया था। हालांकि संसद में कई बार स्वास्थ्य मंत्री केंद्रीय स्तर पर जनसंख्या नियंत्रण से संबंधित किसी भी कानून की संभावना से इंकार कर चुके हैं लेकिन भविष्य में कार्य सरकार कानून नहीं बनाएगी इसकी कोई गारंटी नहीं है।

असम और यूपी से शुरुआत

संघ के इस झंडे को अमलीजामा पहनाने की शुरुआत तो 2019 में असम से सो चुकी थी। असम में अक्टूबर 2019 में कैबिनेट ने यह फ़ैसला कर लिया था कि 2 से ज्यादा बच्चे वालों को सरकारी नौकरी नहीं दी जाएगी और ना ही उन्हें पंचायत और पंचायत स्तर पर यह स्थानीय निकायों में चुनाव लड़ने की अनुमति होगी। सरकार ने यह फैसला किया था कि इस क़ानून को 2021 से लागू किया जाएगा। अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या दिवस की पूर्व संध्या पर इस कानून के मसौदे को जनता के बीच विचार विमर्श के लिए रख कर साफ संकेत दे दिया है कि वह संघ का एजेंडा लागू करने के लिए कितने तत्पर हैं।

अब बात करते हैं कि यूपी से पहले किन राज्यों में ऐसे क़ानून हैं और उनमें ख़ास प्रावधान क्या हैं।

असमः असम के नए मुख्यमंत्री हेमंत बिस्ववा सरमा पिछली सरकार में बनाए गए कानून को अमली जामा पहनाने की क़वायद में जुटे हैं। हाल ही में उहोंने 150 मुस्लिम धर्मगुरुओं से मुद्दे पर चर्चा करके इस क़ानून को लागू करने में उनके विरोध को शांत करने की कोशिश की है। उनका दावा है कि धर्मगुरु उनकी इस बात से सहमत हो गए हैं कि ये क़ानून किसी धर्म विशेष के लोगों को परेशान करने के मक़सद से नहीं लाया जा रहा है।

राजस्थान: सरकारी नौकरियों के लिए जिन उम्मीदवारों के दो से अधिक बच्चे हैं, वे नियुक्ति के पात्र नहीं हैं। राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 कहता है कि यदि किसी व्यक्ति के दो से अधिक बच्चे हैं, तो वो पंच या सदस्य के लिए चुनाव लड़ने का पात्र नहीं होगा। हालांकि, पिछली भाजपा सरकार ने विकलांग बच्चे के मामले में दो बच्चों के मानदंड में ढील दी थी।

मध्य प्रदेश: राज्य 2001 से दो-बच्चों के मानदंड का पालन करता है। मध्य प्रदेश सिविल सेवा (सेवा की सामान्य शर्त) नियम के तहत, यदि तीसरे बच्चे का जन्म 26 जनवरी, 2001 को या उसके बाद हुआ है, तो कोई भी सरकारी सेवा के लिए अपात्र हो जाता है। यह नियम उच्च न्यायिक सेवाओं पर भी लागू होता है। मध्य प्रदेश सरकार ने 2005 तक स्थानीय निकाय चुनावों के उम्मीदवारों के लिए दो-बच्चों के मानदंड का पालन किया। उसके बाद तत्कालीन बीजेपी सरकार ने इन आपत्तियों के बाद इसे वापिस ले लिया था कि बंद कर दिया ऐसा नियम विधानसभा और संसदीय चुनावों में लागू नहीं है।

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश: तेलंगाना पंचायत राज अधिनियम, 1994 की धारा 156 (2) और 184 (2) के साथ पठित धारा 19 (3) के तहत, दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करती है। हालांकि, अगर किसी व्यक्ति के 30 मई, 1994 से पहले दो से अधिक बच्चे थे, तो उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा। आंध्र प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1994 में वही धाराएं आंध्र प्रदेश पर लागू होती हैं, जहां दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जाएगा।

गुजरात: 2005 में, सरकार ने गुजरात स्थानीय प्राधिकरण अधिनियम में संशोधन किया। संशोधन दो से अधिक बच्चों वाले किसी भी व्यक्ति को स्थानीय स्वशासन निकायों, पंचायतों, नगर पालिकाओं और नगर निगमों के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करता है।

महाराष्ट्र: महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम उन लोगों को अयोग्य घोषित करता है, जिनके दो से अधिक बच्चे हैं, स्थानीय निकाय चुनाव (ग्राम पंचायत से नगर निगम) लड़ने के लिए। महाराष्ट्र सिविल सेवा (छोटे परिवार की घोषणा) नियम, 2005 में कहा गया है कि दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को राज्य सरकार में एक पद धारण करने के लिए अयोग्य घोषित किया जाता है। दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं को भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लाभ से वंचित किया गया है।

उत्तराखंड: राज्य सरकार ने दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को पंचायत चुनाव लड़ने से रोकने का फैसला किया था। इस संबंध में विधानसभा में एक विधेयक पारित किया था। लेकिन इस फैसले को ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत वार्ड सदस्य चुनाव की तैयारी करने वालों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और उन्हें कोर्ट से राहत मिली। इसलिए, दो-बच्चे वाले मानदंड की शर्त केवल उन लोगों के लिए लागू की गई जिन्होंने जिला पंचायत और ब्लॉक विकास समिति की सदस्यता का चुनाव लड़ा था।

कर्नाटक: कर्नाटक (ग्राम स्वराज और पंचायत राज) अधिनियम, 1993 दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्तियों को ग्राम पंचायत जैसे स्थानीय निकायों का चुनाव लड़ने से नहीं रोकता है। हालांकि, कानून कहता है कि एक व्यक्ति “यदि उसके परिवार के सदस्यों के उपयोग के लिए एक स्वच्छता शौचालय नहीं है” तो वह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य है।

ओडिशा: ओडिशा जिला परिषद अधिनियम उन व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकता है जिनके दो से अधिक बच्चे हैं।

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