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ग्राऊंड रिपोर्ट : अपनी जान जोखिम में डाल बदहाल व्यवस्था को सांसे देने का काम कर रही ‘आशाएं ‘

आसमोहम्मद कैफ। Twocircles.net

कासमपुर की सविता (53) के गांव में इस महामारी के दौरान 4 मौत हुई है। घर -घर मौजूद मौजूद खतरे के बीच वो सुबह एक थर्मल स्केनर मशीन और ऑक्सीमीटर लेकर गांव में जाती है। ग्रामीणों का डाटा अपने रजिस्टर में नोट करती है और अधिकारियों को बताती है। 4 हजार की आबादी वाले इस गांव में एकमात्र आशा बहन सविता को 2 हजार रुपये प्रतिमाह मिलते हैं। सविता के पास पीपीई किट नही है। उसकी खराब मशीन अब उसे दूसरी मिल गई है। उत्तर प्रदेश सरकार इन आशा बहनों को कोविड की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका में रख रही है।

दिल्ली पौड़ी मार्ग पर मुजफ्फरनगर जनपद के रसूलपुर गांव में कुल चार ‘आशा बहन ‘ है। गांव की आबादी लगभग 3 हजार है। रीमा इन आशा बहनों के साथ रोज सुबह घर से निकलती है और गांव के घरों में जाकर ग्रामीणों का तापमान और ऑक्सीजन लेवल जांचती है। उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों के बाद कोरोना का सबसे भयंकर असर गांवों में देखने को मिला है। हर एक गांव ने मौत का मंजर देखा है। यहां चिकित्सा सुविधा नाम मात्र की है। गांव के स्वास्थ्य केंद्र में ताले लगे पड़े है। पूरा गांव का हेल्थ सिस्टम ‘आशा बहन’ और चार गांव पर बनने वाली इनकी एक संगिनी दीदी पर निर्भर करता है। इन आशाओं का मुख्य काम गांव की गृभवती महिलाओं की सहायता करना और बच्चों का टीकाकरण करना है, मगर संकट के इस काल मे सरकार उनसे गांव – गांव सर्वे का काम ले रही है। इसके लिए आशा बहनों को घर -घर जाना पड़ता है। वो परिवार के लोगों का तापमान और ऑक्सिजन लेवल रिकॉर्ड करती है। इसे रजिस्टर में अंकित करती है। हर एक आशा को एक दिन में 50 घर जरूर जाना है।

Image -Aasmohammad kaif

रसूलपुर गांव की ही आशा उर्मिला सैनी (45) बताती है कि “हमें इस दौरान बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जैसे हम जब हम किसी के घर जाते हैं तो कोई भी आसानी से जांच नही करवाता। पहले तो दरवाजे से अंदर ही नही आने देते वो कह देते हैं कि यहां सब ठीक है।

कुछ लोग बीमारी को छिपा लेते हैं। वो अस्पताल नही जाना चाहते और घर पर इलाज कराना चाहते हैं। उन्हें डर है कि बुखार होने पर उन्हें जबरदस्ती अस्पताल ले जाया जाएगा। वहां उनका इलाज और भी बिगड़ जाएगा, बहुत मुश्किल से लोगों को समझाते हैं। हमे जांच करने के लिए एक थर्मल स्केनर और ऑक्सीमीटर मिला है। इसके अलावा कुछ अन्य नही मिला है,जबकि महामारी है,हमारे भी बच्चे है तो प्रोटेक्शन मिलनी चाहिए थी। ”

संगिनी रीमा के नेतृत्व में यह टीम एक परिवार में जांच करती है और उन्हें कोविड के प्रति जागरूक करती है। विडंबना यह है कि तीनों में से एक आशा बहन का थर्मल स्केनर काम नही करता है। ऑक्सीमीटर जरूर सबका लेवल ठीक बताता है। यहां आशा उर्मिला सैनी परिवार को अदरक ,लौंग और काली मिर्च की चाय पीने की सलाह देती है।

एक दूसरे गांव मुकल्लमपुरा में ‘आशा बहु ‘ (गांव में कुछ लोग इन्हें आशा बहु ,बहन और कार्यकर्ता अलग अलग नाम देते हैं ) छाया भट्ट हमें बताती है वो दोपहर 2 बजे तक 25 परिवारों का सर्वे कर चुकी है। अब रिकॉर्ड बना रही है। उनके गांव में आज चार बुखार के मरीज मिले हैं। इनकी जांच के लिए कहा गया है। बहुत मुश्किल काम है। जान जोखिम में डालना जैसा है। मेरे पति तो डरते है मगर मैं ही सावधानी बरतते हुए काम कर रही हूँ। छाया भट्ट बताती है उसके पास थर्मल स्केनर नही है। ऑक्सीमीटर मिल गया है। इस ग्राम पंचायत में कुल आशाएं है और दो आशा को एक थर्मल स्केनर मिला है। छाया भट्ट बताती है कि कांपते कदमों से दूसरे घर मे कदम रखते हैं और बात करते समय अपने बच्चे याद आते हैं। अब असली फ्रंटलाइन वर्कर तो हम है। गांव गांव महामारी है। सरकार कह रही है कि आशा बहनों को बीमा मिलेगा। मरने के बाद उस पैसे का हम क्या करेंगे ! काम करने का बहुत दबाव है। हमें सुविधाएं दें,पूरी मैडिकल किट दे।

Image – aasmohammad kaif

मेरठ मार्ग पर ही एक दूसरे गांव कैथोड़ा में सुनीता देवी काफी सक्रियता दिखाती हुई मिलती है। वो गांव के गफ्फार अहमद के घर मे मुनाजरा का तापमान जांच रही है। सुनीता बताती है कि ‘भैया हमने तो मास्क भी अपने पास से खरीदे है। पीपीई किट की बात ही मत कीजिये। ग्लव्स भी खुद ही मंगवा लिए है। अब नौकरी करनी है, सर्वे तो करना पड़ेगा मगर हमारी सुविधाओं का ख्याल रखना ही चाहिए था। हम भी इंसान है। 2 हजार रुपये मानदेय में अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। इसके अलावा कहीं कहीं लोग नाराज हो जाते हैं। काम कर रहे हैं और साथ मे यह दुआ भी कि बीमारी बस दफा हो जाये। काफी तनावपूर्ण हालात है। लोगों को समझाना पड़ता है। महिलाओं को बीमारी के बारे में कुछ नही पता है। वो तो एकदम घबरा जाती है। मगर हम उनके बच्चों के टीके लगवाने के लिए आते रहते हैं इसलिए थोड़ा अपनापन है वो हमारी बात मानती है।

कासमपुर के शिक्षक मदनपाल आशा बहनों के काम की सराहना करते हैं वो कहते हैं कि वो देख रहे हैं कि आशा कार्यकर्ता इतने मुश्किल समय मे भी घर घर जाकर सर्वे कर रही है। वो मरीजों को कोरोना के बारे में आत्मविश्वास भी बढ़ाती है। उन्हें दवाई भी देती है। निश्चित तौर पर इस हालात में उनका काम सराहनीय है। सरकार को उनकी सुरक्षा का ख्याल रखना चाहिए और उन्हें पीपीई किट और दूसरे सभी संसाधन दिए जाने चाहिए। इसके अलावा उनका मानदेय दुगना कर देना चाहिए।

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कोरोनाकाल के इस महासंकट में आशा बहनों के अद्वितीय योगदान को देखते हुए उनकी तारीफ की जानी चाहिए मगर उनकी समस्याओं पर चर्चा कम ही हुई है। आशा मूलतः मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता है। हमें संगिनी सुमन शर्मा बताती है कि इस समय आशा फ्रंटलाइन वर्कर के तौर पर काम कर रही है। वो एक वॉलिंटियर है और उन्हें कर्मचारी नही माना गया है यह बेहद चिंताजनक बात है। आशा कार्यकर्ता बहुत अधिक काम करती है। खासकर उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य है और यहाँ पूरे दिन काम करना पड़ता है। लोगों में जागरूकता कम होने के कारण भी उन्हें अतिरिक्त समस्या होती है। इनके पास मास्क,पीपीई किट,ग्लव्स और सैनिटाइजर जैसी जरूरतों की भी किल्लत है।

रसूलपुर की वरिष्ठ आशा कार्यकर्ता सरोज कहती है सारा भार उन्ही के ऊपर डाल दिया गया है। दिन भर अधिकारी फ़ोटो अपडेट मांगते रहते हैं। उन्हें एक एक कदम की हलचल चाहिए। यहां फील्ड में हम है। संघर्ष हम कर रही है। काम से हमें डर नही लगता। हम इससे भी ज्यादा और अच्छा काम कर सकते हैं मगर हमारी परवाह किसे है,मशीन खराब है और मास्क तक खुद खरीदने पड़ रहे हैं। यह समस्या एसी के दफ्तर वालों तो नही दिखती । हमारी कोई सुनता ही नही। अभी पिछले दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुजफ्फरनगर आये थे। आशाओं से बात भी की। बस एक आशा से औपचारिक बात कर ली। आशा गांव की हैल्थ सिस्टम की रीढ़ है। हमारा ख्याल रखा जाए।