आसमोहम्मद कैफ। Twocircles.net
चार गुना अधिक प्रकोपित मानी जा रही कोरोना की दूसरी लहर के कहर से देश भर में तबाही फैल गई और आमजन के जन जीवन संकट में आ गया। चिकित्सा सुविधाओं की कमी और ऑक्सीजन संकट ने हर एक देशवासी को हिला कर रख दिया। इसका सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में देखने को मिला। जिसके गांव -गांव में यह लहर पहुंच गई। ऐसे संकट में गांवों में जब तबाही फैलने की आशंका थी तो गांवों में मेडिकल सुविधाओं को प्रदान करने वाले पैरामैडीकल स्टाफ़ के लोग मेडिकल सिस्टम की रीढ़ बन गए और इन्होंने इस संकट से उबरने में बहुत मदद की।
बिजनौर के चांदपुर इलाके के दानिश अली बताते हैं कि उन्होंने इन 50 दिनों के दौरान एक हजार से ज्यादा बुखार,कफ के मरीजों का अवलोकन किया और उनका इलाज किया। इनमे से अधिकतर लक्षण कोरोना की तरह थे,गांव होने के चलते लोग टेस्ट नही कराना चाहते थे। उन्हें डर था कि अगर टेस्ट हुआ तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कर लिया जाएगा,जबकि बिजनौर के सरकारी अस्पताल को लेकर वो काफी नकारात्मक थे। लोग चाहते थे कि उनका घर पर ही इलाज हो। सरकार ने कोरोना को लेकर जो मेडिकल सलाह जारी की थी हमने उसका ध्यान रखकर मरीजों का इलाज किया,उन्हें हिम्मत दी,कई बार अपने सीनियर डॉक्टर से निर्देश भी लिए। मैं कई रात सो नही नही पाया। अब जब इसका असर बहुत कम दिखाई देने लगा है तो दिल को अच्छा लगता है। खुशी होती है।
डॉक्टर दानिश अनुभव को साझा करते हुए बताते हैं कि हमारी समस्या ज्यादा बड़ी थी। मरीज को घर पर रखकर इलाज करने में समस्या और सुविधा दोनो थी। सबसे बड़ी ऑक्सीजन को लेकर थी,उन्होंने लगभग ऐसे 50 मरीजों की देखभाल की जिनका ऑक्सीजन लेवल नीचे चला गया। ऑक्सीजन लेवल नीचे चले जाने के बाद लोग बहुत डर जाते हैं। ऑक्सीजन सिलेंडर मिल जाने के बाद फ़ेलोमीटर बहुत मुश्किल से मिल रहा था। ग्रामीण सरकारी अस्पताल बिल्कुल नही जाना चाहते और निजी अस्पताल में उनके पास पैसे नही थे। उन्होंने इसे ही जिंदगी की नियति मान लिया था। मगर जब गांव में कुछ लोग ठीक होने लगे तो कॉन्फिडेंस आ गया। दानिश बताते हैं कि उनके कई मरीज तो सिर्फ 300 रुपये की दवाई में ही ठीक हो गए क्योंकि उन्होंने बहुत हल्की एंटीबायोटिक इस्तेमाल की।
बिजनौर से गंगा के उत्तरी छोर की और लगभग 7 किमी दूर बेहद पिछड़े हुए से गांव सैदपुरी में एक तंग गली में डॉक्टर अनस फसीह के भारत क्लीनिक पर अभी भी दर्जनों मरीजों की भीड़ लगी है। आसपास के दर्जनों गांव के मरीज यहां आते हैं। यहीं हमें पूरणपुर की नवनिर्वाचित प्रधान पूर्णिमा चौधरी मिलती है वो कहती है डॉक्टर अनस फसीह एमडी है,वो पहले दिल्ली फोर्टिस में काम करते थे ,मगर अपने दादा का सपना पूरा करने के इरादे से गांव में क्लीनिक चलाने लगें। पूर्णिमा बताती है कि इसका आसपास के गांववालों को अच्छा फायदा हो रहा था मगर इसका कोरोनाकाल में अदुभुत फायदा मिला। उनका क्लीनिक वरदान बन गया। हम उन्हें धन्यवाद देते हैं।
डॉक्टर अनस फसीह बताते हैं कि यह एक बेहद पिछड़ा हुआ इलाका है। इतना कि जिन लोगो के पास अपना ट्रांसपोर्ट नही है। वो कई किमी पैदल दूरी करके डॉक्टर के पास आते हैं। पिछले दो महीनों में इस इलाके ने बहुत बुरा समय देखा है। लोगो के पास इलाज कराने के पैसे भी नही है। मैं फोर्टिस में था और मैं यहां पैसे कमाने भी नही आया हूँ। मेरे दादा चाहते थे कि मैं गरीबों की मदद करूँ,गांव में लोगों की खिदमत करूँ। महामारी बड़ा संकट थी और गांव के लोगों ने बहुत हिम्मत से काम लिया।
यहीं डॉक्टर साइमा मोहसिन बताती है कि वो आयुवेर्दिक चिकित्सक है और नेचुरल थेरेपी से इलाज करती है,मगर इस संकटकाल में उन्हें अपनी भूमिका बदलनी पड़ी। बुखार और कफ के मरीज़ो की बढ़ती संख्या चिंता पैदा कर रही थी। गांव के लोग भी कोरोना को लेकर आशांकित थे और उन्हें लगता था कि यह जानलेवा है। हमने उन्हें बताया कि इसमें ठीक होने वाले 98 फीसद लोग होते हैं। जो लोग ठीक हो गए थे उनसे बात कराते थे। आमजन को इलाज के साथ साथ मानसिक तौर पर भी तैयार करना पड़ा। अब मरीज बहुत कम है, हम लगभग महासंकट से बाहर आ गए हैं।
कासमपुर गांव में पैरामेडीकल स्टाफ़ के तौर काम कर चुके नीरज कुमार अब हीरो बन चुके हैं। वो बताते हैं पिछले 50 दिन में किसी भी पूरी तरह रात सो नही पाए हैं। वो लगातार सेवा करते रहे और उन्होंने किसी को भी इंकार नही किया। वो मास्क गलव्स और सैनिटाइज़र जैसी जरूरी शील्ड का ख्याल रखते थे मगर उन्होंने अपना कर्तव्य निभाया। सरकार ने भी इलाज की गाइडलाइंस दी थी उससे भी आसानी हुई। इसके अलावा वो अपने सीनियर से लगातार कंसर्ट करते थे। इस दौरान मैंने लगभग 500 से ज्यादा बुखार के मरीज देंखे। इतने तो पूरे साल भी नही आते। मैं समय पर दवाई देने ,बीपी ,टेम्परेचर और ऑक्सीजन लेवल चेक करके नोट करता था और अपने सीनियर से डिस्कस करता था। इस तरह मैंने मेहनत करके मरीज़ो को मॉनिटर किया।
कोविड से जूझकर रिकवरी करने वाले प्रधानाचार्य दीपक धीमान कहते हैं कि निसंदेह इन्ही लोगों ने समाज पर उपकार किया है। देश का हेल्थ सिस्टम का सच सामने आ गया था। गांव का आदमी तो शहर जाते हुए नॉर्मली भी डरता है अब तो बहुत ही सारी समस्याएं थी। अस्पताल के खर्चे और चर्चे दोनो डरा रहे था,हालांकि मैं समझता हूँ कि गांव के लोगो की मजबूत इम्यूनिटी और साफ वातावरण से उन्हें मदद मिली। कोरोना भयंकर तरीके से आया जरूर मगर लोगों ने हिम्मत नही हारी।
बिजनौर शहर के नजदीक गंगा के किनारे वाले गांव कासमपुर के मदनपाल सिंह यह बताते हैं तो वो आंखों में गहरी कृतिघ्नता लिए होते हैं वो स्पष्ट कहते हैं कि गांव इनका ऋणी रहेगा। इन पैरा मैडीकल स्टाफ़ ने जो भी सीखा था वो अपने सीनियर की सलाह से सब उडाल दिया। गांव के लोग बीमारी के बारे में कुछ नहीं जानते थे वो डरे हुए थे। इन लोगों ने न केवल उन्हें उपचार दिया बल्कि उन्हें हिम्मत भी दी। मदनपाल बताते हैं कि नीरज कुमार और टिंकू शर्मा नाम के दो मेडीकल स्टाफ़ ने इसी गांव में सैकड़ो जान बचा दी। सच तो यह है कि जिनकी झोलाछाप कहकर मजाक उड़ाई थी उन्होंने हमारे गांव बचा दिए।
दीपक धीमान बताते हैं कि इस महामारी ने पूरे गांव में दहशत बना दी थी। 4 हजार की आबादी में सैकड़ों लोगों को बुखार था। 6 ग्रामीणों की मौत हो गई। एक भी परिवार ऐसा नही था जिसमे कोई एक व्यक्ति संक्रमित न हो ! गाँव वालों के पास जो भी जानकारी थी वो बहुत डरावनी थी। लोग सचमुच डर गए थे। वो अस्पताल नही जा सकते थे शहर वो आमतौर पर जाने में भी कतराते हैं। कोई टेस्टिंग नही थी। लक्षणों के आधार पर ही मान लिया गया कि लोगो को कोरोना हैं। यह सही भी हो सकता था और गलत भी,मगर सही होने की संभावना ज्यादा थी। पूरा गांव तनाव था। इस संकट के समय मे जब कुछ भी अच्छा नही हो रहा था तो गांव में मैडीकल सहायता देने वाले पैरा मैडीकल स्टाफ़ के तीन अनुभवी लोगों ने पूरा गांव बचा लिया। शहरी लोग जिन्हें झोलाछाप कहते थे उन्होंने हमारी जिंदगी बचा ली वो हमारे लिए फरिश्ते बन गए।