जिब्रानउद्दीन। Twocircles.net
अंधेरे में घुप बदबूदार कमरे, कॉरिडोर में टहलते कुत्ते, दीवारें और छत ऐसी कि मालूम हो, तब गिर जाए तो अब। ये हाल है, उत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पताल, दरभंगा मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल (डीएमसीएच) की जर्जर इमारतों का। इन टूटती इमारतों को देखकर कोई ये नहीं कह सकता था कि, इस अस्पताल के कंधों पर आसपास के जिलों में रहने वाले तकरीबन 2.5 करोड़ लोगों की जिम्मेदारी होगी। हालांकि, पिछले कुछ दिनों से मीडिया के माध्यम से उठ रही उंगलियों के चलते, अब मरीजों को नई इमारत में स्थानांतरित किया जा रहा है।
“क्या सिर्फ शिफ्ट करने से व्यवस्था ठीक हो जाएगी?” परिसर में दवाईघर की दिशा से लौट रहे ताहिर हुसैन ने निराशाजनक अंदाज मे Twocircles.net को कहा। उनके हाथ में दिख रही कुछ दवाइयों से अंदाजा लगाया जा सकता था की उनका कोई अपना इसी अस्पताल में भर्ती होगा। “हम गरीब हैं और निजी अस्पतालों में जाने की औकात नही है, वरना यहां इस गंदगी में तो किसी हालत में आना पसंद नही करते” ताहिर ने बताया, अगर सिर्फ एक दिन, यहां अच्छे से बारिश हो जाए तो घुटनों तक जलजमाव हो जाता है। “जितना ठीक नहीं होगा आदमी उतना तो बीमार ही हो जायेगा। कुत्ते और सुअर टहलते हैं हमारे बीच, इसी से समझ जाइए।”
बिहार के दरभंगा जिला में स्थित दरभंगा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, राज्य में पीएमसीएच के बाद दूसरा सबसे बड़ा अस्पताल है। डीएमसीएच की स्थापना का अपना एक अलग गौरवमयी इतिहास रहा है। मरीजों को बेहतर इलाज मुहैया करवाते हुए इस संस्था ने अपनी जो अमिट छवि बनाई, उसे वर्तमान में प्रशासन के लापरवाही और खराब व्यवस्था का शिकार होना पड़ रहा है। जिसके चलते उसके स्वर्णिम इतिहास पर लगातार आंच आई है।
बीते विधानसभा चुनाव से पहले दरभंगा को एक तोहफे के तौर पर नया एम्स अस्पताल बनाकर देने की बात सामने आई थी। इस प्रस्ताव को खुद कैबिनेट द्वारा स्वीकृति दी गई, और एनडीए ने पूरे चुनावी रैलियों के दौरान जमकर नए एम्स के नाम पर वोट बटोरने की कोशिश की थी। “आने वाले सालों में एम्स अस्पताल बनकर तैयार हो भी जायेगा,” लेकिन एक स्थानीय युवक की माने तो, “पहले जो मौजूद है उसकी हालत ठीक हो जाती तो वही बेहतर होता।”
मिथिलांचल में रहने वालों के लिए दरभंगा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की बहुत महत्ता है। दरभंगा मिलाकर आसपास के कम से कम 4 जिलों के मरीज यहां इलाज कराने आते हैं। जिसमे मधुबनी, सहरसा, सुपौल और समस्तीपुर शामिल है। इन इलाकों में रहने वाले गरीबों के लिए 1946 में निर्मित ये अस्पताल पिछले 75 सालों से एकमात्र विकल्प बना हुआ है।
वहीं अगर डीएमसीएच के परिसर पर अभी नजर दौड़ाई जाए तो हर तरफ जलजमाव, गंदगी, सूअर और कुत्ते अथवा दूसरे जानवर घूमते हुए आसानी से दिख जाएंगे। कई जगहों पर कूड़ों का अंबार लगा हुआ है। अजीब से विडंबना है कि एक तरफ कोरोना महामारी से बचने की खातिर लोगों को साफ सुथरा रहने की हिदायत दी जा रही है और दूसरी तरफ अस्पताल और परिसर में ही सफाई की कमी है। बारिश के दिनों में पानी से लबालब रहना तो इस परिसर की नियति बनकर रह गई है।
स्थानीय निवासी राजन सिंह के अनुसार ये जलजमाव और गंदगी वैसे तो पूरे साल होती है लेकिन, “अगर आप गलती से बारिश के मौसम में आ गए न तो ऐसा लगेगा के बागमती नदी का सारा पानी हॉस्पिटल से होकर ही गुजर रहा है,” राजन अपने एक परिजन से मिलने अस्पताल आए थें। “आपको पता है, यहां शौचालय की क्या हालत है? औरतों के लिए एक इंतजाम तक ठीक नहीं रहता है। सारा कचरा ये आसपास ही फेक देते हैं, ऐसी बदबू आती रहती है कि पूछिए मत,” राजन ने दुखड़ा सुनाया।
हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ मरीजों को ही परिसर की गंदगी से दो चार होना पड़ता है, बल्कि डॉक्टर, स्टाफ, अन्य स्वास्थ्य कर्मियों और उनके साथ मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थी भी रोज इस अव्यवस्था से जूझते हैं। स्थानीय प्रशासन से जब इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने यकीन दिलाया कि जल्द ही इस समस्या का समाधान निकाला जाएगा।
उसके बाद हमने कुछ डॉक्टरों से इस मामले पर प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से साफ इंकार कर दिया। खैर, इसकी वजह शायद पिछले कुछ दिनों से मीडिया द्वारा प्रशासन की लापरवाही को उजागर करना, हो सकती है। तभी काफी कोशिशों के बाद अगर किसी ने कुछ बोला भी तो लगातार उनका जवाब यही रहा कि “नई इमारत में जाइए, वहां अच्छे हालात हैं।”
आपको बता दें कि पिछले कुछ दिनों से मीडिया चैनलों पर दिखाए जा रहे डीएमसीएच के खंडहरनुमा सर्जिकल भवन के बाद कई तरह के सवाल उठने लगे थे। जिसके बाद अस्पताल प्रशासन ने आनन-फानन में सारे मरीजों को नए भवन में स्थानांतरित कर दिया। हालांकि ये स्थानांतरण करीब 3 साल पहले ही हो जाना चाहिए था अगर केंद्र और राज्य सरकार की साझा कोशिशों के फलस्वरूप मल्टीस्पेशलिटी भवन योजना के अनुसार 2018 तक बनकर तैयार हो जाती। लेकिन 2016 से निर्माणाधीन इमारत, आज 2021 के 5वें महीने तक भी पूरी तरह से तैयार नही हो पाई है।
भवन निर्माण विभाग के अनुसार कई मर्तबा सर्जिकल भवन को खाली करने की बात सामने रखी गई थी, लेकिन विकल्प के अभाव में मरीजों को इस टूटते खंडहर में ही रहने के लिए मजबूर होना पड़ता था। अब जो अस्पताल का हाल ऐसा है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि मरीजों को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता होगा।