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त्रिपुरा हिंसा : सोशल मीडिया यूजर्स के खिलाफ मुकदमे में बिना सबूत के नही होगी गिरफ्तारी

जिब्रानउद्दीन।Twocircles.net

शुक्रवार को त्रिपुरा पुलिस ने राज्य में हुए कथित सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के संबंध में फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब के 102 सोशल मीडिया यूजर्स के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है। जिसमें 68 ट्विटर अकाउंट, 32 फेसबुक अकाउंट और 2 यूट्यूब अकाउंट शामिल हैं। ये प्राथमिकी पश्चिम अगरतला पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई, जिसमें शिकायतकर्ता उसी थाने के उप निरीक्षक तपन चंद्र दास हैं।

प्राथमिकी के अंदर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 13 और आईपीसी की धारा 153ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 153बी, 469, 471, 503 (आपराधिक धमकी), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना) 120B (आपराधिक साजिश) को शामिल किया गया है।

इसके इलावा त्रिपुरा पुलिस ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर को पत्र लिखकर भी कथित रूप से विकृत और आपत्तिजनक ख़बर फैलाने वाले ट्विटर के 68 प्रोफाइल को निलंबित करने के लिए कहा है। पत्र के अनुसार इन हैंडल पर कुछ पोस्ट और समाचारों में किसी अन्य घटना की तस्वीरें या वीडियो और मनगढ़ंत बयान या कमेंट्री पोस्ट किए गए हैं। पत्र में कहा गया है, “उन पोस्ट में त्रिपुरा राज्य में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लोगों के बीच सांप्रदायिक तनाव भड़काने की क्षमता है, जिसके परिणामस्वरूप सांप्रदायिक दंगे हो सकते हैं।”

त्रिपुरा पुलिस ने ट्विटर से उन उल्लेखित ट्विटर खातों के उपयोगकर्ता पंजीकरण विवरण, उनके ब्राउज़िंग लॉग विवरण, खातों में लॉग इन करने के लिए उपयोग किए गए आईपी एड्रेस और खातों से जुड़े मोबाइल नंबर मांगे हैं। पुलिस ने साथ ही बिना पुष्टि के खबरों को पोस्ट, सांझा या लाइक करने से भी मना किया है। पुलिस के अनुसार, राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति बिल्कुल सामान्य है।

दर्ज प्राथमिकी में 102 सोशल मीडिया यूजर्स में पत्रकार मीर फैसल, श्याम मीरा सिंह, आरिफ शाह, शरजील उस्मानी, आफरीन शेख, खालेद बेदून, सीजे वेरलेमैन जैसे भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार के साथ ही कई दूसरे सामान्य नागरिक भी शामिल हैं।

आपको बता दें कि पिछले महीने बांग्लादेश में हुए सांप्रदायिक हिंसा के बाद, विश्व हिंदू परिषद ने 26 अक्टूबर को त्रिपुरा में एक विरोध रैली का आयोजन किया था, जिसके बाद कथित रूप से कई मस्जिदों के साथ-साथ दुकानों और मुसलमानों के घरों पर हमले हुए थे। हालांकि, पुलिस ने बार-बार दावा किया है कि राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति “बिल्कुल सामान्य” थी। पुलिस का ये भी कहना है की राज्य में किसी भी मस्जिद को नहीं जलाया गया है।

त्रिपुरा के पुलिस महानिरीक्षक अरिंदम नाथ ने मीडिया को बताया, “हमने शुरुआत में 150 सोशल मीडिया खातों को शॉर्टलिस्ट किया था, लेकिन फिर हम इसे छांटकर 102 खातों तक ले आएं। जिनमें ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब के यूजर्स शामिल हैं।” पुलिस महानिरीक्षक ने आगे कहा, “यूएपीए आतंकवादियों पर लगाई जाने वाली एक बड़ी और कठोर धारा है। हम धारा के महत्व और तीव्रता को समझते हैं, इसलिए हमने केवल यूएपीए की धारा 13 का उपयोग किया है जो कहता है कि कोई भी व्यक्ति जो किसी भी गैरकानूनी गतिविधि की वकालत करता है, सलाह देता है या उकसाता है, उसे एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जा सकता है, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।”

अरिंदम नाथ बताना जारी रखते हैं, “हमने कुछ अज्ञात व्यक्तियों का भी नाम उल्लेख किया है जो पर्दे के पीछे से हिंसा भड़काने का काम कर रहे थे। हमने इस मामले को त्रिपुरा पुलिस की अपराध शाखा में स्थानांतरित कर दिया है। वे पूरी जांच करेंगे, हो सकता है कि कुछ अकाउंट फर्जी भी निकले जिसके बाद हम उन नामों को एफआईआर से काट देंगे। हम किसी को भी बिना पर्याप्त सबूत के गिरफ्तार नहीं करने जा रहे। जांच के परिणामों के आधार पर खाताधारकों को नोटिस भी दिया जाएगा।”

अभी कुछ दिनों पहले ही, पुलिस ने दो वकील – मुकेश कुमार और अंसार इंदौरी – को भी यूएपीए के तहत और भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत वैमनस्य, जालसाजी, जानबूझकर अपमान और आपराधिक साजिश को बढ़ावा देने के आरोप में मामला दर्ज किया था। गौरतलब है कि वो दोनो वकील त्रिपुरा में हुई हिंसा की जांच करने वाली एक फैक्ट फाइंडिंग टीम के हिस्सा थें।

एक्टिविस्ट और समाजसेवी मुज्तबा आसिफ से इन दर्ज मामलों के ऊपर TwoCircles.Net को अपनी राय बताई, उन्होंने कहा, “ये बेहद गलत है, अगर संवैधानिक ढांचे में देखा जाए तो पूर्व में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए ऐसे कई सारे फैसले मौजूद हैं जिसमें वो ये मानती है की अनुच्छेद 19(1)ए में अपनी अभिव्यक्ति और बोलने की स्वतंत्रता के साथ-साथ दूसरों की राय को भी साझा करने की स्वतंत्रता मौजूद हैं।”

आसिफ मुज्तबा आगे कहते हैं, “जिस तरह पत्रकारों और दूसरे ज़िम्मेदार नागरिकों के ऊपर कठोर कानून दर्ज कर उन्हें डराने की कोशिश की जा रही हैं, इससे साफ पता चलता है कि दोषकर्ता अपनी गलतियों को दबाना चाहते हैं, ताकि आगे से कोई उनके अत्याचार पर बोलने वाला न बचे।” पूर्व के एक मामले का उदाहरण देते हुए मुज्तबा बताते हैं, इस ही वर्ष जून के महीने में भी एक ऐसा ही अन्य मामला सामने आया था जब पुलिस द्वारा कुछ नेताओं और पत्रकारों पर झुटी खबर फैलाने का आरोप लगाकर मामला दर्ज किया गया था।