आकिल हुसैन। Two circles.net
भारत के इतिहास में 10 सितंबर का दिन एक हीरो के बलिदान के लिए याद किया जाता है। जी हां, वो हीरों जिसने पाकिस्तानी फोज की एक बड़ी टुकड़ी को घुटने पर बैठा दिया। वो हीरो, जिसने अपनी जान की परवाह किए बगैर केवल एक जीप से पाकिस्तान के 7 खतरनाक टैंकों के परखच्चे उड़ा दिए थे। वो हीरो, जिसके शौर्य और साहस ने पाकिस्तान की सेना में खलबली मचा दी थी और भारतीय सेना के मनोबल में जान फूंक दी थी। यह हीरो कोई और नहीं बल्कि, परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद हैं। ये अब्दुल हमीद के शौर्य का ही नतीजा था, जिसके कारण भारतीय सेना ने 1965 की जंग में पाकिस्तान को धूल चटा दिया था। आज 10 सितंबर वीर अब्दुल हमीद की शहादत का दिन है।
1947 में देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान के साथ 1965 की जंग हुई तो पाकिस्तान की फौज खेमकरण पार करके अमृतसर में दाखिल होकर तबाही मचा रही थी। इस दौरान भारतीय सेना के हवलदार वीर अब्दुल हमीद ने अपनी जान पर खेलते हुए दुश्मन मुल्क की फौज के सात पेटन टैंकों को एक-एक करके गन माउनटेड जीप से तबाह कर दिया था। इसके बाद पाकिस्तानी फौज को वापस लौटना पड़ा। बहादुर हवलदार वीर अब्दुल हमीद ने मात्र 32 साल की उम्र में अपने प्राणों की आहूति देकर एक अनूठी शौर्य गाथा पेश की थी।
वीर अब्दुल हमीद का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धरमपुर गांव में 01 जुलाई 1933 को हुआ था। उनके पिता मोहम्मद उस्मान सिलाई का काम करते थे, लेकिन अब्दुल हमीद का मन इस काम में नहीं लगता था। उनकी रुचि लाठी चलाना, कुश्ती का अभ्यास करना, नदी पार करना, गुलेल से निशाना लगाना जैसे कामों में थी। वह लोगों की मदद के लिए बचपन से ही हमेशा आगे रहते थे।
अब्दुल हमीद का स्वभाव बचपन से हीं दूसरों की मदद करने वाला और बहादुरी वाला था। गांव में अब्दुल हमीद के कई ऐसे किस्से हैं जो उनकी बहादुरी को प्रमाणित करते हैं। बताते हैं कि एक बार उनके गांव के ही एक व्यक्ति की फसल काटने के लिये गांव के जमींदार के कुछ लोग लाठी डंडों से लैस होकर जब खेत में पहुंचे तो निडर अब्दुल हमीद ने उन्हें ललकारा। अब्दुल हमीद की चेतावनी सुनकर सब लोग भाग खडे हुए। उस वक्त अब्दुल हमीद के साथ केवल तीन लोग और थे।
एक बार उनके गांव की मगई नदी में बाढ आई हुई थी। इसी दौरान दो औरतें नदी को पार करते हुए डूब गई। गांव के लोगों द्वारा हमीद को मना करने के बावजूद अब्दुल हमीद ने उनको बचाने के लिए नदी में छलांग लगा दी। अब्दुल हमीद ने अपनी परवाह न करते हुए महिलाओं को नदी से निकालकर उन्हें बचाया था।
अब्दुल हमीद का मन सदैव दूसरों की मदद और देश सेवा के लिये बेचैन रहता था। 21 वर्ष की उम्र में सन् 1954 में अब्दुल हमीद रेलवे में भर्ती होने के लिए गये परन्तु वे सेना में भर्ती हो गए। 1954 में वें भारतीय सेना की सातवीं ग्रेनेडियर रेजमेंट में भर्ती हुए। उन्होंने निसाराबाद ग्रिनेडियर्स रेजिमेटंर सेंटर में ट्रेनिंग ली थी। ट्रेनिंग के बाद उन्हें 1955 में 4 ग्रेनेडियर्स में पोस्टिंग मिली। अब्दुल हमीद ने सन् 1962 में भारत चीन युद्ध में भी थांग ला से 7 माउंटेन ब्रिग्रेड, 4 माउंटेन डिविजन की ओर से हिस्सा लिया था।
चीन के युद्ध में वीरता और समझदारी का परिचय देने वाले जवान अब्दुल हमीद को 12 मार्च 1962 में सेना ने ‘लांसनायक अब्दुल हमीद’ बना दिया। वो इसी तरह अपनी बहादुरी का परिचय देते रहे और दो से तीन वर्षों के अन्दर हमीद को नायक हवलदारी और कम्पनी क्वार्टर मास्टरी भी प्राप्त हो गयी।
सन् 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध की शुरुआत के वक्त अब्दुल हमीद छुट्टी पर अपने घर आए हुए थे। लेकिन पाकिस्तान की ओर से तनाव बढ़ने की खबरों के बीच उन्हे सीमा पर वापस आने का संदेश आया। संदेश आने के बाद अब्दुल हमीद की बीवी रसूलन बीबी ने उन्हें जाने से रोका भी, लेकिन अब्दुल हमीद नहीं माने और देश के लिए अपना फ़र्ज़ निभाने के लिए चल दिए।
भारत को 1947-49 के दौरान पाकिस्तान के साथ हुए कश्मीर वॉर में अपने कई सैनिकों से हाथ धोना पड़ा था। तब पाकिस्तान को लगा कि भारत उसकी सैन्य क्षमता के आगे काफी कमजोर है। पाकिस्तान ने इसी गलतफहमी में 1965 में एक बार फिर से युद्ध छेड़ दिया जिसका भारत से मुंहतोड़ जवाब मिला।
1965 में युद्ध के दौरान वीर अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारण जिले के खेमकरण सेक्टर में पोस्टेड थे। पाकिस्तान ने उस समय के अमेरिकन पैटन टैंकों से खेमकरण सेक्टर के असल उताड़ गांव पर हमला कर दिया। उस वक्त ये टैंकर्स अपराजेय माने जाते थे। अब्दुल हमीद की जीप 8 सितंबर 1965 को सुबह 9 बजे चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों से गुजर रही थी। वह जीप में ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठे थे। उन्हें दूर से टैंकर आने की आवाज सुनाई दी। कुछ देर बाद उन्हें टैंक दिख भी गए। वह टैंकों के अपनी रिकॉयलेस गन की रेंज में आने का इंतजार करने लगे और गन्नों की आड़ का फायदा उठाते हुए फायर कर दिया।
अब्दुल हमीद की गन माउनटेड आरसीएल जीप ने आग उगलना शुरू कर दिया और देखते ही देखते पाकिस्तान के सात टैंकों के परखच्चे उड़ गए। वीर अब्दुल हमीद ने पाकिस्तान की आर्टिलरी को धवस्त कर दिया था। बताते हैं कि उन्होंने एक बार में 4 टैंक उड़ा दिए थे। उनके 4 टैंक उड़ाने की खबर 9 सितंबर को आर्मी हेडक्वार्टर्स में पहुंच गई थी। उनको परमवीर चक्र देने की सिफारिश भेज दी गई। 10 सितंबर को उन्होंने 3 और टैंक नष्ट कर दिए थे। जब उन्होंने एक और टैंक को निशाना बनाया तो एक पाकिस्तानी सैनिक की नजर उन पर पड़ गई। दोनों तरफ से फायर हुए। पाकिस्तानी टैंक तो नष्ट हो गया, लेकिन अब्दुल हमीद की जीप के भी परखच्चे उड़ गए और वे गंभीर रूप से घायल हो गए और अगले दिन 10 सितंबर को अब्दुल हमीद मात्र 32 साल की उम्र में वीरगति को प्राप्त हो गए।
अमृतसर से करीब 70 किमी दूर तरनतारन जिले में भारत-पाक सीमा पर स्थित गांव आसल उताड़ में 1965 की जंग के महानायक वीर अब्दुल हमीद की मजार है। यह मजार उसी स्थान पर बनी है जहां वे वीर गति को प्राप्त हुए थे। वीर अब्दुल हमीद की समाधि पर हर धर्म के लोग आते हैं। अब्दुल हमीद ने न केवल पाकिस्तानी सेना को उल्टे पांव भागने पर मजबूर किया बल्कि आसल उताड़ की इस धरती को पाकिस्तानी फौज के पैटन टैंकों का कब्रगाह बना दिया।
देश भर से लोग 10 सितंबर को उनकी समाधि पर पहुंचते हैं और उनकी मज़ार पर चादर चढ़ाते हैं। हर साल उनकी शहादत पर उनकी समाधि पर एक विशेष मेले का आयोजन किया जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब 2015 में सैनिकों के साथ दिवाली मनाने के लिए गए थे तो उस दौरान वे वीर अब्दुल हमीद की मज़ार पर भी गए थे।
युद्ध में वीरता पूर्वक अदुभुत पराक्रम का परिचय देने वाले वीर अब्दुल हमीद को पहले ‘महावीर चक्र’ और अदम्य साहस और वीरता के लिए उन्हें 16 सितंबर 1965 को मरणोपरांत सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र दिया गया। भारतीय डाक विभाग ने 28 जनवरी 2000 को वीर अब्दुल हमीद के सम्मान में पांच डाक टिकटों के सेट में 3 रुपये का एक सचित्र डाक टिकट जारी किया, इस डाक टिकट पर रिकाईललेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हामिद का एक रेखा चित्र बना हुआ है।
अब्दुल हमीद की शहादत के 50 साल पूरे होने पर 2015 में गोल्डन जुबली कार्यक्रम हुआ था। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रसूलन बीबी को सम्मानित किया था और कहा था कि वो गाज़ीपुर में वीर अब्दुल हमीद के गांव धामूपुर में आकर उस धरती को नमन करना चाहते थें। 2019 में रसूलन बीबी का लंबी बीमारी के बाद 95 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है।
कहा जाता है कि मोर्चा पर जाने से पहले अब्दुल हमीद ने अपने भाई से कहा था कि ‘पल्टन में उनकी बहुत इज्जत होती है जिन के पास कोई चक्र होता है, देखना झुन्नन हम जंग में लड़कर कोई न कोई चक्र जरूर लेकर लौटेंगे’। और वीर अब्दुल हमीद अपने भाई से वादे को पूरा कर हमेशा के लिए अमर हो गए।