Home Education मौलाना आज़ाद फैलोशिप बंद होने से मुस्लिम बुद्धिजीवियों में निराशा का माहौल

मौलाना आज़ाद फैलोशिप बंद होने से मुस्लिम बुद्धिजीवियों में निराशा का माहौल

मोहम्मद ज़मीर हसन|twocircles.net

“मैं हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा हूं। यह संभव हो पाया है मौलाना आज़ाद नेशनल फैलोशिप की वजह से। मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है अगर यह फेलोशिप मुझे नहीं मिलता तो मैं रिसर्च नहीं कर पाता।” ये कहना है गुलज़ार अहमद का, वो हैदराबाद यूनिवर्सिटी में उर्दू साहित्य में पीएचडी कर रहे हैं। “
सच्चर कमेटी के रिपोर्ट के मुताबिक मात्र 4% अल्पसंख्यक मुसलमान उच्च शिक्षा तक पहुंच पाते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह आर्थिक रूप से कमजोर होना है। अब गुलज़ार अहमद जैसी स्थिति से आने वाले हज़ारों छात्रों के लिए उच्च शिक्षा हासिल करने का सपना टूट जाएगा क्योंकि भारत सरकार ने मौलाना आज़ाद नेशनल फैलोशिप (MANF) को बंद करने का फैसला किया है।
गुलज़ार अहमद आगे कहते है, सरकार कह रही है कि यह फैलोशिप ओवरलैप हो रही है। इस बात में थोड़ी भी सच्चाई नहीं है। क्योंकि एक छात्र को एक ही फैलोशिप का लाभ मिलता है, तो फिर इसमें ओवरलैपिंग की बात कहना बेबुनियाद है।

मौलाना आज़ाद नेशनल फैलोशिप को बंद करते हुए, सरकार ने यह तर्क दिया है कि यह फैलोशिप अन्य फैलोशिप के साथ ओवरलैप हो रही हैं। अब सवाल यह है कि यह फैलोशिप किस फैलोशिप के साथ ओवरलैप हो रही हैं। इन सवालों के जवाब पाने के लिए हमने कुछ रिसर्च स्कॉलर्स, छात्र नेता और प्रोफेसर्स से बात की हैं।
मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर सैय्यद शम्स ने इस फैसले पर निराशा जताते हुए कहते हैं कि “इस फैलोशिप को दूसरे फैलोशिप के साथ तुलना करना सही नहीं है। यह एक पीएचडी स्तर की फैलोशिप है। जिसे स्कॉलरों को शोध करने के लिए दी जाती हैं। हम शोध करते है, नई- नई चीजों की खोज करते हैं। सरकार कह रही है कि यह फैलोशिप ओवरलैप हो रही है। यह बिल्कुल तर्कहीन बातें हैं। इस फैलोशिप और अन्य फैलोशिप में बड़ा फ़र्क है। यह फैलोशिप हमें पढ़ने के लिए नहीं बल्कि हमें शोध करने के लिए दी जाती है। यह एक प्रकार का रोजगार वाला फेलोशिप हैं। इसे हटाने का मतलब है कि जो अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र योग्य असिस्टेंट प्रोफेसर है,उनकी नौकरी को आप छीन रहे हैं। यह फैसला सही नहीं है। सरकार को इस फैलोशिप को लागू करने के लिए फिर से विचार करना चाहिए।”

बता दें कि भारत सरकार की तरफ़ से मोटे तौर पर चार फैलोशिप पीएचडी स्कॉलरों को दी जाती है। पहला यूजीसी नेट- जेआरएफ, दूसरा मौलाना आज़ाद नेशनल फैलोशिप, तीसरा यूजीसी नॉन-नेट फैलोशिप और चौथा नेशनल फैलोशिप फॉर ओबीसी, एससी और एसटी। यूजीसी नेट- जेआरएफ इम्तिहान क्वालीफाई करने वाले छात्रों को हर महीने करीब 31000 रुपए दिए जाते हैं। इसके अलावा अलग से रहने के लिए मकान का किराया भी मिलता है।

मौलाना आज़ाद नेशनल फैलोशिप उन छात्रों को दी जाती है जो अल्पसंख्यक समुदाय मुस्लिम, सिख, पारसी, बौद्ध, ईसाई और जैन से आते हैं। यह फेलोशिप हर साल अल्पसंख्यक समुदायों के 1000 छात्रों को दी जाती है। इसमें भी नेट-जेआरएफ स्तर की राशि दी जाती है। तीसरी श्रेणी नॉन नेट फैलोशिप की हैं। इसमें केंद्रीय विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रहे सभी छात्रों को 8000-12000 की राशि हर महीने दी जाती है। यह तीनों फैलोशिप अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा दी जाती है।

Pic arrangement

चौथा फैलोशिप नेशनल फैलोशिप फॉर ओबीसी, एससी और एसटी है जो समाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा दी जाती है। कुछ फैलोशिप ऐसे जो किसी ख़ास विषय के लिए होता हैं। इन सभी फैलोशिप में एक बात सामान्य है। एक छात्र को एकबार में एक ही फैलोशिप का लाभ मिलता है। अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों के लिए फैलोशिप और स्कॉलरशिप योजना लागू करने का सुझाव सच्चर कमेटी ने यूपीए सरकार को दिया था।

सच्चर कमेटी की सिफारिश पर इन फैलोशिप को लागू किया गया था। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भारत में अल्पसंख्यक समुदाय की स्थिति आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा के क्षेत्रों में दयनीय थी। अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों के लिए विशेष फैलोशिप और स्कॉलरशिप की योजनाएं लागू करने के तत्कालीन यूपीए सरकार को सुझाव दी गई थी। ताकि अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चें आगे पढ़ पाएं जो पैसे के अभाव में नहीं पढ़ पाते हैं। हालांकि, वर्तमान सरकार ने चौंकाने वाला फैसला करते हुए, मौलाना आज़ाद नेशनल फैलोशिप को समाप्त कर दिया है।

फैलोशिप को बंद किए जाने के फैसले पर मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अफ़रोज़ आलम ने twocircles.net से बातचीत करते हुए कहां, “मौलाना आज़ाद फैलोशिप को वापिस लेने का फैसला केवल एक छोटा सा क़दम है। इसमें तर्क की तलाश करना औचित्य बात नहीं है। सरकार ने ठान लिया है कि इस फेलोशिप को ख़त्म करना है,तो वह कोई भी तर्क को गढ़ सकती है। इस बात की पूरी संभावना है कि अल्पसंख्यक मामलों के कई विभाग बंद हो जाएंगे और अंत में पूरा मंत्रालय अपना वजूद खो बैठेगा।”

ओवरलैप पर सरकार ने कोई जानकारी नहीं दी है कि मौलाना आज़ाद नेशनल फैलोशिप किस फैलोशिप के साथ ओवरलैप हो रही है। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने एक नोटिस जारी किया है। जिसमें मौलाना आज़ाद नेशनल फैलोशिप को समाप्त कर दिया। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा दी जाने वाली नेशनल फॉर ओबीसी एससी एसटी फैलोशिप में अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को शामिल की बात अब कही गई है।

तो अब सवाल यह उठता है कि क्या मौलाना आज़ाद नेशनल फैलोशिप सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा दी जाने वाली नेशनल फॉर ओबीसी एससी एसटी फैलोशिप से ओवरलेपिंग कर रही थी ! लेकिन यह कैसे संभव हो सकता है नेशनल फॉर ओबीसी एससी एसटी फैलोशिप मात्र अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़े वर्गों के छात्रों को दी जाती हैं। फिर अल्पसंख्यक समुदाय के समान्य छात्रों का क्या होगा ? उन्हें इस फैलोशिप का लाभ मिलेगा? इन सवालों का जवाब तलाशने के लिए छात्र नेता अब्दुल हमीद से बात की।

नोटिस …

अब्दुल हमीद जामिया मिल्लिया इस्लामिया के नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन अॉफ इंडिया के अध्यक्ष हैं।रिपोर्टर से बात करते हुए उन्होंने कहा कि मौलाना आज़ाद नेशनल फैलोशिप को बंद करने का भारत सरकार का निर्णय अल्पसंख्यक विरोधी एजेंडे को दर्शाता है। मोदी सरकार अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों के शैक्षिक क्षेत्र की लापरवाही करती रही है। सरकार का कहना है कि अल्पसंख्यक छात्रों को अन्य फैलोशिप के तहत कवर किया जाता है। लेकिन MANF की अनुपस्थिति में जो मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी समुदायों के शोधार्थियों के लिए है, जो छात्र OBC, SC या ST के अंतर्गत नहीं आते हैं, वह किसी भी अन्य फैलोशिप का लाभ नहीं उठा सकते हैं जो NFOBC, NFSC और ST हैं। यानी सबसे ज्यादा अल्पसंख्यक छात्र इससे प्रभावित होने वाले हैं।”

अब्दुल हमीद कहते हैं कि केरल में अधिकांश मुसलमान ओबीसी श्रेणी के अंतर्गत आ रहे हैं और लक्षद्वीप में अधिकांश मुस्लिम एसटी के अंतर्गत आ रहे हैं। लेकिन देश के अन्य हिस्सों में बहुसंख्यक मुसलमान न तो ओबीसी या एसटी के अंतर्गत आते हैं। वे सिर्फ सामान्य मुसलमान हैं। केरल में लगभग 31% ईसाई ओबीसी और एससी के अंतर्गत आते हैं। लेकिन देश के अन्य हिस्सों में बहुसंख्यक ईसाई किसी भी आरक्षण श्रेणी में नहीं आते हैं। वे सिर्फ सामान्य ईसाई हैं। अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की भी लगभग यही स्थिति है। इसलिए, अल्पसंख्यक समुदायों के बहुसंख्यक छात्र NFOBC, NFSC या NFST से अधिक लाभान्वित नहीं होंगे।
वह आगे कहते हैं,मुझे संदेह है कि सरकार इसी तरह NFOBC और NFSC&ST को खत्म कर देगी। इन फैलोशिप के लिए बजट आवंटन इस चिंता को मजबूत करता है।