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यूपी की शान बंदायू के उस्ताद राशिद अली खान को पदम् भूषण सम्मान

आकिल हुसैन।Twocircles.net

भारत सरकार ने कला क्षेत्र में योगदान के लिए यूपी के बदायूं के राशिद खान को तीसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित करने की घोषणा की है। राशिद ख़ान संगीत के क्षेत्र में उस्ताद राशिद खान के नाम से जानें जातें हैं। उस्ताद राशिद ख़ान देश के जाने-माने शास्त्रीय संगीतकार हैं। उस्ताद राशिद खान हम दिल दे चुके के गाने ‘अलबले सजन आयो रे’ और जब वी मेट का पॉपुलर गाना ‘आओगे जब तुम साजना’ भी गा चुके हैं।

उस्ताद राशिद खान का जन्म एक जुलाई 1968 को उत्तर प्रदेश के बदांयू जिले में हुआ था। राशिद ख़ान सहसवान-रामपुर घराने से संबंध रखते हैं। राशिद ख़ान उस्ताद इनायत हुसैन ख़ान के घराने में से हैं, राशिद उस्ताद इनायत हुसैन ख़ान के परपोते हैं। राशिद ख़ान महान संगीतकार उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान के भतीजे हैं। राशिद खान के नाना सहसवान रामपुर घराने के पद्म भूषण उस्ताद निसार हुसैन खान थे। इन्हीं से उन्होंने छह साल की उम्र में संगीत की शिक्षा ली।

पद्म भूषण से सम्मानित करे गए राशिद ख़ान ने महज छह साल की उम्र में अपने नाना पद्म भूषण उस्ताद निसार हुसैन खान से संगीत की तालीम उनके घर पर रहकर ही शिक्षा प्राप्त की। हालांकि एक बच्चे के रूप में उन्हें संगीत में बहुत कम रुचि थी लेकिन उनके चाचा गुलाम मुस्तफा खान ने संगीत के प्रति प्रति रूचि पैदा की।

राशिद खान ने 11 साल की उम्र में अपना पहला संगीत कार्यक्रम दिया। फिर 1978 में उन्होंने दिल्ली में एक आईटीसी संगीत कार्यक्रम में प्रस्तुति दी। जब निसार हुसैन खान अप्रैल 1980 में आईटीसी संगीत अनुसंधान अकादमी, कलकत्ता चले गए, तो राशिद खान भी 14 साल की उम्र में उनके साथ कलकत्ता चलें गए और आईटीसी में शामिल हो गए। सन् 1994 में उन्हें अकादमी में एक संगीतकार के रूप में मान्यता दी गई।

राशिद ख़ान पिछले 40 साल से कोलकाता में रहकर संगीत साधना में जुटे हुए हैं। खासतौर से हिंदुस्तानी संगीत में ख्याली गायिकी के लिए जाना जाता है। इसके अलावा वह ठुमरी, भजन और तराना भी गाते हैं। रामपुर-सहसवान गायकी घराने की गायकी शैली में जिसमें मध्यम गति, पूर्ण कंठ स्वर और जटिल लयबद्ध ग्याकी शामिल हैं। राशिद खान ने धीरे-धीरे अपने चाचा गुलाम मुस्तफा की शैली में अपने विलम्ब विचारों में स्पष्टता जोड़ दी है। सरगम और टंकारी के उपयोग में असाधारण कौशल विकसित किया।

उस्ताद राशिद खान ने अपने गायन में शुद्ध भारतीय संगीत को हल्के संगीत शैलियों के साथ संयोजित करने का भी प्रयोग किया है जैसे कि अमीर खुसरो के गाने नीना पिया के साथ सूफी फ्यूजन रिकॉर्ड करना, या पश्चिमी वाद्य यंत्र लुई बैंक्स के साथ प्रयोगात्मक संगीत कार्यक्रम। उन्होंने सितार वादक शाहिद परवेज और अन्य के साथ भी अपने संगीत के करतब दिखाए हैं।

राशिद ख़ान कलकत्ता में ही रह रहें हैं। वे वहां अपनी मां के नाम से सामाजिक संस्था का भी संचालन करते हैं। उस्ताद राशिद खान संगीत के लिए पूरी तरह से समर्पित हो चुके हैं। राशिद खान को शास्त्रीय संगीत से देशभर में ख्याति मिली है। वे जब वी मेट, माई नेम इज खान, मार्निंग वाक, कृष्णा जैसे फिल्मों में यह गीत गा चुके हैं।

राशिद ख़ान बरसात सावन, बोल के लब आज़ाद हैं, मीलों के फासले, आए री माई रे, साकी रे,भरा बडारा, झीनी रे झीनी, सजना, दिवाना कर रहा है, आयो पियाजी, पूरे से ज़रा सा, अल्लाह ही रहम, भोर भायो,मनवा, आओगे जब तुम साजना, कहे उजाड़ी मोरी नींद, तोरे बिना मोहे चैन नहीं आदि गाने गा चुके हैं। राशिद ख़ान को 2006 में पद्म श्री और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।