गुजरात दंगे मामले में जकिया जाफरी की एसआईटी रिपोर्ट को चुनौती देती याचिका खारिज

स्टाफ रिपोर्टर।Twocircles.net

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 2002 के गुजरात दंगें के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने की एसआईटी की रिपोर्ट को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका गुलबर्गा सोसायटी में हुए दंगे में मारे गए 68 लोगों में से एक कांग्रेस के पू्र्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने दायर की थी।‌ एसआईटी ने गुजरात दंगें मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 63 अन्य लोगों को भी दंगों में भूमिका के लिए क्लीन चिट दी गई थी।


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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की अध्यक्षता वाली बेंच ने ज़किया जाफरी की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि एसआईटी रिपोर्ट को स्वीकार करने और विरोध याचिका को खारिज करने के मजिस्ट्रेट कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हैं। यह याचिका योग्यता से रहित है, इसलिए खारिज की जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 9 दिसंबर 2021 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।याचिकाकर्ता ज़किया जाफरी की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, एसआईटी की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और तत्कालीन गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखें।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ज़किया जाफरी की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने पक्ष रखते हुए कहा कि,”एसआईटी ने मामले के महत्वपूर्ण पहलुओं पर जांच नहीं की। इससे साबित होता है कि पुलिस इस केस में एक्टिव नहीं रही। उन्होंने कहा कि एसआईटी ने जिस तरह जांच की उससे लगता है कि वह कुछ छिपाने की कोशिश कर रही है।”

एसआईटी की ओर से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि,” जांच में किसी को नहीं बचाया गया और पूरी छानबीन गहराई से हुई है। कुल 275 लोगों से पूछताछ हुई। कोई ऐसा सबूत नहीं मिला जिससे साजिश की बात साबित होती हो।”

जाकिया जाफरी ने 2014 में एसआईटी की रिपोर्ट के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन हाईकोर्ट ने 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य लोगों को एसआईटी के द्वारा दी गई क्लीन चिट को बरकरार रखा था। इससे पहले एक निचली अदालत ने भी जाकिया जाफरी की याचिका को खारिज कर दिया था।

27 फरवरी 2002 में गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगने के एक दिन बाद 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद में 29 बंगलों और 10 फ्लैट वाली गुलबर्ग सोसायटी, जहां पर अधिकांश मुस्लिम परिवार रहते थे, वहां हिंदूवादी संगठनों की भीड़ ने हमला कर दिया था। हिंसा में लगभग 68 लोगों की मौत हो गई थी।‌ मरने वालों में कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी भी शामिल थे।

जकिया जाफरी ने अपने पति की हत्या के खिलाफ तत्कालीन डीजीपी को खत लिखा। जकिया ने हाई कोर्ट में भी ये अर्जी दी थी कि नरेंद्र मोदी समेत 63 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाएं। लेकिन हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी। 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड के मामले में जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उन 63 लोगों पर जांच के भी आदेश दिए थे जिनपर ज़किया जाफरी ने एफआईआर दर्ज करने की अपील की थी। एसआईटी ने 2012 में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी। एसआईटी की रिपोर्ट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरैनी मोदी को गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड में क्लीन चिट दी।

जकिया जाफरी ने एसआईटी पर गुजरात दंगा मामले की आधी अधूरी रिपोर्ट देने का आरोप लगाया और एसआईटी द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दी गई क्लीन चिट को लोवर कोर्ट में चुनौती देते हुए 2013 में याचिका दायर की थी। दिसंबर 2013 में ही लोवर कोर्ट ने जकिया की याचिका खारिज कर दी थी।‌ मार्च 2014 में ज़किया जाफरी ने लोवर कोर्ट के आदेश को गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी।‌ अक्टूबर 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने ज़किया जाफरी की याचिका को खारिज कर दिया था। फिर 2018 में ज़किया जाफरी ने एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रूख किया था। इसी बीच जून 2016 में एक विशेष अदालत ने गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड में 24 को दोषी करार दिया था और 36 लोगों को बरी कर दिया था।

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