आकिल हुसैन।Twocircles.net
10 अगस्त 2017 की रात को देशभर में गोरखपुर के एक डाक्टर का नाम चर्चा में आया और वो नाम था बाल रोग विशेषज्ञ डॉ कफील खान का। 2017 में डॉ कफील खान गोरखपुर के बाबा रघुवीर दास मेडिकल कॉलेज में लेक्चरर और बाल रोग विशेषज्ञ के पद पर तैनात थे। 10 अगस्त की रात को मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से 63 बच्चों की मौत हो गई। डॉ कफील खान पर लापरवाही के आरोप लगे और उन्हें इस प्रकरण का जिम्मेदार ठहराया गया। और फिर जेल भेज दिया गया।
यूपी के आजमगढ़ में जन्मे कफील खान ने अपनी आरंभिक शिक्षा गोरखपुर के ही एमजी इंटर कॉलेज से की। इसके बाद कफील खान एमबीबीएस की पढ़ाई करने कर्नाटक चलें गए जहां कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। और फिर मणिपाल विश्वविद्यालय से बाल रोग में एमडी की डिग्री हासिल की। कुछ दिन तक गंगटोक के ही एक मेडिकल कॉलेज में अस्टिटेंट प्रोफेसर के पद पर काम किया।
डॉ कफील ने 2016 में गोरखपुर के बाबा रघुवीर दास मेडिकल कॉलेज में लेक्चरर के रूप में ज्वाइन किया था। पिछले पांच वर्षों में डॉ कफील खान ने नौकरी से बर्खास्तगी, 2 बार जेल और सीएए विरोध आंदोलन के मामले में रासुका के तहत कार्रवाई झेली हैं। अब डॉ कफील खान राजनीति में कदम रखने जा रहें हैं,वे समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधान परिषद का चुनाव लड़ रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने उन्हें कुशीनगर-देवरिया स्थाई निकाय क्षेत्र से एमएलसी प्रत्याशी बनाया है।
अगस्त 2017 में डॉ कफील खान को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुई आक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत का जिम्मेदार ठहराया गया। उन्हें इस मामले में निलंबित कर दिया गया था। उन्हें बीआरडी आक्सीजन त्रासदी का आरोपी मानते हुए 3 सितंबर 2017 को जेल भेज दिया गया था। कोर्ट को कफ़ील के खिलाफ़ लापरवाही का कोई सुबूत नहीं मिला था और डॉ कफील 25 अप्रैल 2018 को जमानत पर रिहा हुए थे। इस मामले में दो साल बाद 27 सितंबर 2019 को कफील खान को मामले में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था। साथ ही अस्पताल की आंतरिक जांच समिति ने उन्हें मामले में आरोप मुक्त कर दिया था। मामले में गठित जांच समिति का भी कहना था कि वह इंसेफलाइटिस वॉर्ड के नोडल अधिकारी नहीं थे और उनकी लापरवाही की वजह से मौतें नहीं हुईं थीं।
डॉ कफील ने बाहर आकर कहा था कि ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित होने के बाद उन्होंने व्यक्तिगत प्रयास से ऑक्सीजन सिलेंडर जुटाए थे जिससे अनेक बच्चों की जान बचाई जा सकी। वहीं डॉ कफील ने सरकार पर ऑक्सीजन सप्लाई में कमीशनखोरी के आरोप लगाए थे। इस मामले में डॉ कफील के अलावा 8 अन्य लोग भी आरोपी थे जिनके निलंबन वापस हो गए लेकिन डॉ कफील को बर्खास्त कर दिया गया। हालांकि उन्होंने अपनी बर्खास्तगी को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती भी दी।
गोरखपुर जेल से रिहा होने के बाद से डॉ कफील ने अपनी टीम और आम नागरिकों की मदद के साथ मिशन स्माइल फाउंडेशन के बैनर तले काम किया। उन्होंने बिहार के बाढ़ग्रस्त इलाकों में लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाई। निपाह वायरल से ग्रस्त केरल में चिकित्सा सहायता प्रदान की। उन्होंने ‘स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार’ कानून की मांग के लिए सभी के साथ अभियान भी शुरू किया है और गांव-गांव में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए ‘डॉक्टर्स ऑन रोड’ नाम से एक नई पहल शुरू की है। कोरोनावायरस के दौरान जब डॉ कफील जेल में बंद थे तब भी उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर कोविड से पीड़ित लोगों की सेवा करने के लिए उनको रिहा करे जाने की अपील भी की थी।
दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में डॉ कफील ने भाषण दिया था। जिसके बाद उनके खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी। कफील खान को इस मामले में यूपी पुलिस ने मुंबई से गिरफ्तार किया था। 2020 में प्रदेश सरकार ने उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई भी की थी। सितंबर 2020 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत कफील की हिरासत को रद्द कर दिया था और सरकार को उन्हें तुरंत रिहा करने के निर्देश दिए थे। डॉ कफील को लगभग 9 महीने अलीगढ़ जेल में रहना पड़ा था।
परिवार में डॉ कफील के अलावा उनके बड़े भाई आदिल ख़ान और छोटे भाई काशिफ़ जमील हैं। डॉ कफील की पत्नी शाहिस्ता भी पेशे से एक डाक्टर हैं। उनके दोनों भाई पेशे से बिजनेसमैन हैं। डॉ कफील कहते हैं कि उनके साथ जो भी पिछले कुछ सालों में हुआ हैं, उससे उनका परिवार बुरी तरह प्रभावित हुआ हैं। उनकी बुजुर्ग मां और पत्नी को कोरोना महामारी के दौर में सुप्रीम कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े, दोनों भाइयों का बिज़नेस ख़त्म हो गया, जेल में रहने के दौरान पत्नी को बेटा हुआ, जिसे वो जेल में रहने के कारण 7 महीने बाद देख पाए।
डॉ कफील कहते हैं कि सरकार ने मेरे ऊपर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया था और इसके लिए रासुका भी लगी। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने ज़मानत के आदेश में कहा था कि जिस भाषण के लिए डॉ कफील गिरफ्तार किया गया था, वह शांति भंग नहीं करता था या नफरत या हिंसक प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा नहीं देता था, बल्कि, भाषण “नागरिकों के बीच राष्ट्रीय अखंडता और एकता का आह्वान करता है। डॉ कफील कहते हैं कि वे सिस्टम को बेनकाब करना चाहते थे, इसलिए उनको इतना कुछ झेलना पड़ा।
डॉ कफील कहते हैं कि बीआरडी आक्सीजन घटना वाले मामले में उनके अलावा 8 लोग और सस्पेंड किये गए थे जिनमें से मुझे छोड़कर 8 लोगों को बहाल कर दिया गया है। जबकि जिलाधिकारी और प्रमुख सचिव ने कोर्ट में कहा है कि मेरी तरफ़ से कोई लापरवाही या भ्रष्टाचार नहीं किया गया है। सरकार ने कोर्ट में भी कहा था कि मेरे खिलाफ़ दूसरी जांच रद्द कर दी गई है, बहराइच मामले में कोर्ट ने मेरे निलंबन पर रोक लगा दी थी, इस सबके बावजूद भी मुझे बर्खास्त कर दिया गया है।
डॉ कफील ने ‘द गोरखपुर ट्रेजेडी’ नाम की एक किताब भी लिखी हैं। डॉ कफील कहते हैं कि यह किताब सरकारी तंत्र में अपने बुरी तरह पीसे जाने, समाज में उनकी छवि धूमिल किए जाने और खुद के इन विपरीत हालातों में लड़ने को केंद्र में लिखकर लिखी गई है। और इस किताब में अगस्त 2017 की भयानक रात की घटना और उनका निलंबन और फिर 500 दिनों की जेल का जिक्र हैं। वे कहते हैं कि यह किताब उन 63 बच्चों और उनके परिवार को समर्पित है जिन्होंने ऑक्सिजन के अभाव में दम तोड़ दिया।
समाजवादी पार्टी ने डॉ कफील खान को कुशीनगर-देवरिया स्थाई निकाय क्षेत्र से एमएलसी प्रत्याशी बनाया है। प्रत्याशी बनाए जाने के बाद गोरखपुर में संवाददाता सम्मेलन में डॉ कफील खान कहते हैं कि ”मैं एक डॉक्टर था, बाद में सामाजिक कार्यकर्ता बना,उसके बाद पुलिस की सूची में हिस्ट्रीशीटर बन गया,उसके बाद मैं लेखक बना और बाबा राघव दास गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में हुए ऑक्सीजन कांड के ऊपर एक किताब लिखी और अब मैं नेता बन गया हूं’।
डॉ कफील ने कहा कि,’जब गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन कांड हुआ था तब मुख्यमंत्री योगी ने कहा था कि मैं हीरो बनने की कोशिश कर रहा हूं क्योंकि मैं संकट के वक्त बाहर से ऑक्सीजन सिलेंडर लाने में कामयाब रहा था और अगर मैं विधान परिषद सदस्य का चुनाव जीता और मेरी योगी जी से मुलाकात हुई तो मैं कहूंगा कि मैं अभिनेता बनने के बजाय नेता बन गया हूं’।
उन्होंने कहा कि वह तीन मुद्दों-स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे हैं और उनका सपना लोगों के लिए एक ऐसा अस्पताल बनाना है जहां की सेवाएं किसी कॉरपोरेट हॉस्पिटल जैसी हों।
अब डॉ कफील यूपी की राजनीति में किस्मत आजमाने जा रहें हैं। अब यह तो वक्त ही बताएगा कि यूपी की राजनीति में वे कितना सफल हो पाते हैं। लेकिन एक बात साफ़ है कि राजनीति हर किसी को विरासत में नहीं मिलती, कभी कभी हालात और परिस्थितियां भी इंसान को राजनीति में खड़ा कर देती है।