अजमेर में ख़्वाजा गरीब नवाज दरगाह स्थानीय नागरिकों को आर्थिक रूप से सक्षम बना रही है। इनमे दुकानदार ज्यादातर हिन्दू समुदाय से आते हैं। गरीब नवाज़ दरगाह भारत में आने वाले पहले सूफी संत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के तौर पर वजह से देश ही नहीं दुनिया भर में सम्मान का स्थान है। Twocircles.net के लिए अजमेर पहुंचे असद शेख़ बता रहे हैं कि दरगाह के आसपास सैकड़ो हिन्दू परिवार अपनी आर्थिक संपन्नता के लिए गरीब नवाज का शुक्रिया अदा करते हैं और बताते हैं कि उनके साथ यहां कभी भेदभाव नही हुआ। उनका व्यापार यहां दरगाह पर आने वाले जायरीनों की वजह से बुलंद हुआ है।
अजमेर राजस्थान की राजधानी जयपुर से 135 किलोमीटर की दूरी है। यह अजमेर एक छोटा सा शहर है जो 7वीं सदी में राजपूत राजा अजय पाल चौहान ने बसाया था।
अजमेर की सरजमीं को ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की सरज़मीन के नाम से पहचाना जाता है। यहाँ उन्होंने अपनी ज़िंदगी के करीबन 50 साल का वक़्त गुज़ारा है। स्थानीय लोग बताते हैं कि ख़्वाजा जी ने इस शहर के लोगों को अपनाया जिसमे हिन्दू और मुसलमान सभी मौजूद थे। ख़्वाजा अजमेरी ने गरीबों के लिए “लंगर” की प्रथा शुरू की जिसे बाद में बाबा गुरु नानक जी ने सभी के लिए आम किया।
ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह जिस क्षेत्र में स्थित है वैसे तो वो हिस्सा चारों तरफ से मुस्लिम आबादी वाला नज़र आता है। लेकिन जब आप आना सागर की तरफ या तारागढ़ पहाड़ की तरफ जाते हैं तो आप समझ जाते हैं कि कि छोटे से हिस्से को अगर छोड़ दें तो बहुत बड़ी सँख्या में चारों ही तरफ यहां हिन्दू आबादी ही रहती है। दरगाह पर रोजाना हजारों की संख्या में आने वाले जायरीनों की वजह से अजमेर में बाजार की रौनक बनी रहती है।
हिन्दू और मुसलमान यहां एक दूसरे से जुड़े हुए हैं उनका रहन सहन,खाना पीना और यहां तक कि अदब और सम्मान एक जैसा है ,ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर उन सभी के दिल मे बराबर सम्मान है आदर है और मोहब्बत है जो सदियों से इसी तरह से बरकरार है। दरगाह से जुड़े लोग बताते हैं कि ख्वाजा मोइनुद्दीन ने अपनी ज़िंदगी मे सभी को जोड़ा था और पास लाने का काम किया था।
अजमेर शरीफ में यह दरगाह हिन्दुओं की आबादी के बीच है।
और ख्वाजा जी के दुनिया से चले जाने के 810 साल बाद भी ये शहर उनकी यादों और मोहब्बतें बटोरे हुए है। ये शहर वैसे तो दरगाह की वजह से प्रसिद्ध है लेकिन दरगाह आस पास बड़े काम करने वाले,व्यापार करने वाले और ज़्यादातर कामकाज करने वाले हिंदू समाज से जुड़े लोग हैं। जो यहां कई कई पीढ़ियों से काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि “हमारे ऊपर गरीब नवाज़ के होने की वजह से बहुत बरकत है”। ऐसे कई दुकानदार और व्यापार करने वाले हिंदू समाज के व्यापारियों से twocircle ने बातचीत की है। देशभर में तरह तरह को खबरों के बीच शहर और आस पास के हिंदू दुकानदार आज भी कैसे ख़्वाजा जी की दरगाह और उनके विचारों का सम्मान करते हैं।
हमने उन दुकानदार या जनमानस से बात करने की कोशिश की है जिनका रोज़गार चलने के पीछे सबसे बड़ी वजह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है। ये दुकानदार इस बात का मान रखते हैं और सम्मान करते हैं। हमने न केवल दुकानदारों से बात करते हुए दुनिया भर में मशहूर इस शहर के बारे में जानने का थोड़ा सा प्रयास किया है।
यहां संजय सिंह दरगाह से 500 मीटर की दूरी पर टोपियाँ बेचते हैं। ये टोपियाँ मुसलमान अल्लाह से इबादत करते वक़्त अपने सिर को सम्मान के लिए ढकने के लिए इस्तेमाल करते हैं। संजय बताते हैं कि “देखिये जी टोपियाँ बेचना हमारा काम है,लेकिन हमारी दुकान से गयी टोपियों से हमारे मुसलमान भाई नमाज़ पढ़ते हैं तो हमें भी बहुत खुशी मिलती है।” ये अजमेर शहर ही की खूबसूरती है जहां दरगाह से चंद कदमों की दूरी पर एक हिंदू मुसलमानों के लिए टोपियाँ बेचता है।
संजय पिछली तीन पीढ़ियों से टोपियाँ बेचने का काम करते हैं,उनके साथ उनके भाई भी यही ही काम करते हैं। राजधानी दिल्ली के सदर इलाके में भी टोपियाँ उनके यहां से जाती है और उनकी एक दुकान वहां पर भी है। देशभर में छाई हुई मंदी के बीच कामकाज के हालात पर संजय बताते हैं कि “देखिये जी हमारे काम मे कमी नहीं आती है इस ख़्वाजा जी की ज़मीन में बहुत बरक़त है,हमारा गल्ला भरा रहता है।
बुराइयों से हमे क्या करना है,बुरे लोग अपना काम कर रहे हैं रोज़ हम खबरे पढ़ते हैं हमें भी दुख होता है। सभी लोग खुश रहें अपने परिवार के साथ हमें बस यही चाहिए। हमारे अजमेर का माहौल बहुत अच्छा है हम ऐसी ही शांति देश भर में चाहते हैं बस।
पान कॉर्नर चलाने वाले ताराचंद कहते हैं कि मेरी इस दुकान को 50 साल हो गए हैं,मेरे पिताजी पार्टिशन के समय पाकिस्तान से अजमेर में आ बसे थे उसके बाद ये दुकान शुरू की गई थी। आज इस दुकान को 50 सालों से ज़्यादा हो गए हैं आज मेरा बेटा मेरे साथ ये दुकान चलाता है ।
अजमेर रेलवे स्टेशन से थोड़ी सी दूरी पर स्थित होटल न्यू मजेस्टी के ठीक सामने लवली पान हॉउस चलाने वाले ताराचंद का इस शहर को लेकर एक अलग नज़रिया है। वो इस शहर पर दोगुनी रहमत बताते हैं।
वो अपने कामकाज को पूछने को लेकर कहते हैं कि “देखिये साहब ऐसा है कि यहां अजमेर में बाबा गरीब नवाज़ हैं और 12 से 14 किलोमीटर की दूरी पर दुनिया का इकलौता पुष्कर में ब्रह्मा जी का मंदिर है। दोनों तरफ से हमें आसरा मिला हुआ है। हम लोगों को कभी कोई कमी नहीं आती है। हम जिस शहर में काम कर रहे हैं उसे हमने बदलते देखा है लेकिन यहां की मोहब्बत आज भी बिल्कुल वैसी ही है।
हमारे इस शहर पर भगवान की दया है,और ख्वाजा जी की ज़ियारत करने वाले श्रद्धालुओं के आने से हमारा घर चलता है और पिछ्ले 50 सालों से चलता आ रहा है ये भगवान का शुक्र है “
टीकम चंद पिछले 27 सालों से अजमेर में ऑटों चलाते हैं,वो इस शहर को बहुत अच्छे से जानते हैं। उन्होंने यहां के हालात पर उनसे बात की उन्होने कहा कि “मैं इस शहर को बहुत करीब से जानता हूँ यहां हर साल ,महीने और दिन बहुत से लोग आते हैं जो ख़्वाजा जी के मज़ार पर जाते हैं। अब जब वो आते हैं तभी तो हमारा काम चलता है हमारा घर चलता है और हमारा परिवार चलता है। हम सब एक दूसरे से जुड़े हैं, ख्वाजा जी के मज़ार की बरक़त है जो हमारी घर और परिवार चलता है। मैं खुद जब अपनी गाड़ी निकालता हूँ तो सबसे पहले दरगाह को जाता हूँ और वहां जाकर सम्मान में हाथ जोड़ कर निकलता हूँ उसके बाद मैं अपने काम पर निकलता हूँ क्योंकि हम और हमारे जैसे लाखों लोग ख्वाजा जी से इसी तरह से जुड़े हुए हैं।
सय्यद इफ्तेखार चिश्ती नियाजी ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के खादिम हैं। नियाज़ी साहब दरगाह के बारे में वैसे तो बहुत सारी ऐतिहासिक बातें बताते हैं। लेकिन एक खास बात भी बताते हैं। उनका कहना है कि “ये ख्वाजा जी की दरगाह है ये बरक़त की जगह है। यहां अल्लाह की रहमत है। इस दरगाह के हिस्से में रहने वाले,काम करने वालों से या 1 किलोमीटर दूर से लेकर पूरे शहर में रहने वाले लोगों से आप पूछिये फिर चाहें वो किसी भी धर्म के हो।
हिन्दू,मुस्लिम, सिख या ईसाई भी सब के सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ये सब कुछ ख्वाजा जी के नेक कामों की वजह से है। क्यूंकि उनके पास मोहब्बत के अलावा कुछ भी नहीं था। उन्होंने मोहब्बत का पैग़ाम दिया। ये पैग़ाम दुनिया भर में फैला और आज 800 साल से भी ज़्यादा होने के बावजूद भी क़ायम है।”
दरगाह के आस पास या वहां बनी हुई मार्केट्स ही की वजह से ही हज़ारों दुकानदार अपना घर चलाते हैं,। यानी कई लाख लोग अपने परिवार पालने में सक्षम होते हैं और लाखों लोग सिर्फ इसी वजह से रोज़गार पाते हैं ये अपने आप मैं अद्भुत बात है। दरगाह के कारण ही लाखों लोग रोज़गार पाने में सक्षम हैं और इसके पीछे एक और बड़ा कारण भी है कि ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती जब इस दुनिया मे थे तो उनके दरबार से सब कुछ न कुछ लेकर जाते थे और आज उनके जाने के बाद उनकी दरगाह की बरक़त का ये सिलसिला आज भी जारी है,और ख्वाजा मोइनुद्दीन की दरगाह आज भी ज़रिया बनी हुई है।