ग्राऊंड रिपोर्ट खतौली उपचुनाव : भाईचारे की फसल बनाम नफरत की खेती के बीच सीधे टकराव का चुनाव

उत्तर प्रदेश में मैनपुरी और रामपुर के साथ खतौली में भी उपचुनाव हो रहा है। खतौली के विद्यायक विक्रम सैनी को मुजफ्फरनगर दंगो में दोषी करार दिए जाने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई थी। खतौली चुनाव में दंगो से जुड़े जख्मों को जमकर कुरेदा जा रहा है यह चुनाव भाईचारा बनाम नफरत की खेती का चुनाव बन गया है , यह ग्राऊँड रिपोर्ट पढ़िए ….

खतौली विधानसभा में एक लाख से अधिक मुस्लिम है मगर विपक्ष ने मुस्लिम प्रत्याशी लड़ाने से परहेज़ किया है।

विशेष संवाददाता। Twocircles.net


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जानसठ के ऐतिहासिक सय्यद घराने की पहचान मोतीमहल में देर शाम कुछ लोग जुटे है, चुनावी ज्यादातर चेहरों पर एक चिंता दिखाई दे रही है और जल्दी ही समझ मे आ जाता है कि यह चुनाव की नही है। इतिहास में किंगमेकर कहलाए गए सय्यद ब्रदर्स के वंशज 67 वर्षीय अब्बास अली खान बताते हैं कि इन उदास चेहरों की कहानी यह है कि बुधवार को यहां से 20 किमी दूर मुजफ्फरनगर मार्ग पर ऐतिहासिक अबु मुजफ्फर दरगाह को सड़क चौड़ीकरण के नाम पर जमीदोंज कर दिया गया है। यह दरगाह 350 साल पुरानी थी और मुजफ्फरनगर शहर को बसाने वाले नवाब मुजफ्फर अली खान के परिवार से थी। नवाब अब्बास अली खान कहते हैं कि यह तो वो नही कह सकते हैं कि इस कार्रवाई से इस चुनाव का कोई संबंध है,हो सकता है कि वो अपने लोगों खुश कर रहे हों, मगर यह सच है कि इस दरगाह को जमीदोंज करने के कारण सादात बराह में बेहद ग़म का माहौल है। यह हमारा इतिहास को मिटाने जैसा है। हमारे समाज को इससे ठेस पहुंची है।

जानसठ के ही सैयद समाज के युवा नेता दानिश अली खान बताते हैं कि उनके शिया समुदाय में एक बड़े हिस्से ने भाजपा को अपना लिया था और वो उसे वोट भी करते रहे मगर अब उनका समुदाय भाजपा से पूरी तरह दूर हो रहा है। वो हमारी जड़ो पर हमला कर रहे हैं। शिया समुदाय के लोगों में इस दरगाह के जमीदोंज होने के बाद नकारात्मक संदेश गया है। जाहिर है कि इस तरह की घटनाओं का चुनाव पर असर पड़ता है और खतौली उपचुनाव भी इससे प्रभावित होगा। जानसठ रंगमहल एक ऐतिहासिक इमारत है और यहां आज़ाद भारत में वायसराय भी आ चुके हैं। जानसठ खतौली विधानसभा के अंतर्गत आने वाला दूसरा कस्बा है और मुजफ्फरनगर दंगे की ज़मीन कहा जाने वाला कवाल गांव जानसठ थाना क्षेत्र में ही में है और यहां से 4 किमी की दूरी पर है।

खतौली विधानसभा के विधायक रहे विक्रम सैनी को दंगे में भड़काने के आरोप में सजा हो गई है।
Pic credit- Two circles.net

खतौली विधानसभा से भाजपा की प्रत्याशी बनाई गई राजकुमारी सैनी इसी कवाल गांव की रहने वाली है। 27 अगस्त 2013 कवाल में हुए तिहरे हत्याकांड के समय राजकुमारी सैनी ही इस गांव की प्रधान थी। राजकुमारी सैनी के पूर्व विधायक पति विक्रम सैनी उस समय आरएसएस के खंड कार्यवाह थे। विक्रम सैनी पर आरोप था कि उन्होंने इस आपराधिक घटना को सांप्रदायिक रंग देने का काम किया और दंगा करने की साजिश की। पिछले महीने जानलेवा हमला करने सहित कई मामलों में विक्रम सैनी को बरी कर दिया गया मगर एक मामले में उन्हें 2 साल की सज़ा हो गई। सज़ा के ऐलान के साथ ही उनकी विधायकी स्वतः समाप्त हो गई हालांकि इसकी चर्चा तब हुई जब रालोद के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने आज़म खान की सदस्यता रद्द होने के बाद तुलनात्मक तरीके से विधानसभा सचिवालय से पत्राचार किया, इस पत्राचार में लिखा गया कि कार्रवाई समान क्यों नही है !

मुजफ्फरनगर लोकसभा के अंतर्गत आने वाली खतौली विधानसभा में 3 लाख 12 हजार मतदाता है। इनमे से एक लाख मतदाता सिर्फ मुस्लिम समाज से है। 26 हजार सैनी और 28 हजार गुर्जर मतदाता है जबकि 18 हजार जाट है। 55 हजार दलित है ,12 हजार ठाकुर भी है। 2012 के परिसीमन से पहले खतौली विधानसभा के अंतर्गत सिसौली भी आता था। इस सीट को जाटों की प्रतिष्ठा से जोड़ा जाता है। 12 बार यहां जाट समाज से विद्यायक रहा है। खतौली के अजय जन्मेजय बताते हैं कि फिलहाल स्थिति यह है कि यहां 2012 से किसी महत्वपूर्ण दल ने जाट समाज से प्रत्याशी भी नही बनाया है। पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर की पार्टी अधिकार सेना यहां मोहम्मद यूसुफ को अपना प्रत्याशी बनाकर लड़ा रही है। गठबंधन के साथ रालोद इस बार लोनी और खेकड़ा से विधायक रहे गुर्जर समाज के बाहुबली कहे जाने वाले नेता मदन भैया को यहां चुनाव लड़ा रही है। उनके चुनाव लड़ाए जाने की घोषणा के साथ ही टिकट के लिए प्रयासरत रालोद के प्रवक्ता रहे अभिषेक चौधरी गुर्जर ने भाजपा का दामन थाम लिया है। रालोद के प्रत्याशी को अब विपक्ष का सयुंक्त प्रत्याशी है आज़ाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर आज़ाद ने भी उनका समर्थन किया है। उनके बाहरी प्रत्याशी होने पर हल्की फुल्की नाराज़गी है। जिसके निपट जाने की संभावना है।

इस इलाके में 2 चीनी मिल है और गन्ना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।

भाजपा इस चुनाव को सहानभूति की ज़मीन पर लड़ना चाहती है वो पूर्व विधायक विक्रम सैनी को योद्धा बताकर उन्हें राजनीतिक शहीद बता रही है। भाजपा के तमाम नेतागण 2013 के दंगे और कवाल कांड को मंच से याद दिला रहे हैं। भाजपा के चुनाव प्रचार की कमान मुजफ्फरनगर के सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने संभाली हुई है। वहीं रालोद के नेतागण भाईचारे और किसान हित के मुद्दे पर है। खास बात यह है कि दोनों ही एक-दूसरे की पिच पर बैटिंग करने से बच रहे हैं जैसे भाजपा सिर्फ दंगों की यादों के सहारे है तो रालोद किसान हित ,गन्ना और कमेरा समाज का एक दर्द रोजी रोटी पर बात कर रही है। इस चुनाव में रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी की प्रतिष्ठा का भी सवाल है,उन्होंने यहीं खाट बिछा ली है और वो दो दिन तक यहीं रहेंगे। रालोद के भी तमाम विधायक गांव -गांव घूम रहे हैं।

खतौली के साहित्यकार कवि अजय जन्मेजय चुनाव की प्रकिया पर निराशा जताते हुए कहते हैं कि स्थानीय लोगों में चुनाव को लेकर बिल्कुल उत्साह नही है। सबसे ज्यादा निराश करने वाली बात यह है कि जनहित के मुददों पर अब बात नही हो रही है। चुनाव बस साम्प्रदायिक धुर्वीकरण और जातियों के गणित पर टिका है। समाज ही जनता के मुद्दों पर जागरूक नही है। बस उसमे स्थिलता आ गई है। गली गली नेताओं का समूह है। नतीजा चाहे जो हो मगर यह तय है कि वोटिंग प्रतिशत बेहद नीचे जाएगा। जनता ऊब गई है। एक दल के प्रत्याशी का पति दंगे का दोषी है और दूसरा प्रत्याशी बाहुबली है। जनता को नकारात्मकता के बीच से कम नकारात्मक चुनना है। चुनाव में जनता की रुचि कम दिखाई दे रही है।

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