आसिफ इक़बाल। Two circles.net
बिहार के शिवहर, सीतामढ़ी, मुज़फ्फरपुर, पूर्वी चंपारण सहित चार जिलों की एक मात्र चीनी मिल अब बंद हो गई है और हजारों किसान इस चीनी मिल के बंद होने से आर्थिक संकट में आ गए हैं। उनके सपने एक बार फिर टूट गए हैं। जैसे 83 वर्षीय राम नरेश सिंह ने अपने गांव को कई बार बसते और उजड़ते देखा है। बागमती नदी बिहार में प्रवेश करती ही वह अपना विकराल रूप धारण कर लेती है। बिहार- नेपाल सीमा पर स्थित राम नरेश का गाँव बिहार के सीतामढी ज़िले में है। अधिकांश समय बाढ़ से प्रभावित इनके गाँव के लोग गन्ना उगाते रहे हैं। राम नरेश सिंह के लिए गन्ना आमदनी का एक मुख्य ज़रिया रहा है। चीनी मिल आने के बाद से रामनरेश ने जो सपना देखा था वो सपना बिगड़ गया है। यह उनकी जिंदगी में आई एक और बाढ़ की तरह है जिसने उनकी गन्ने की फसल बर्बाद कर दी है और उनका ख़्वाब बहा दिया है।
इस इलाके के अधिकांश किसानों ने गन्ना उगाना छोड़ दिया है। इनमे से जो उगाते हैं वह गोपालगंज( बिहार का एक अन्य ज़िला) के मिलों को अपना गन्ना भेजते हैं। किसान राम नरेश कहते हैं अब किसानों के बच्चे रोजगार की तलाश में दिल्ली और पंजाब जाने पर मजबूर है। इस चीनी कारखाना के बंद होने से अचानक किसानों की स्थिति मजदूरों के समान हो गई पिछले दिनों इस चीनी मिल को लोन देने वाली वित्तीय कंपनी ने, नेशनल कंपनी लॉ ट्रीबुनल ( NCLT) में मिल के कर्ता-धर्ता पर केस किया। उस वित्तीय कंपनी का कहना है कि मिल बक़ाया लोन का भुगतान नहीं कर रही है कोलकाता स्थित एनसीएलटी, अबतक इस मामले में बारह बार सुनवाई कर चुकी है। 9 दिसंबर 2022 को अंतिम सुनवाई है, उसके उपरांत मिल की सार्वजनिक ‘नीलामी’ की जाएगी।

इलाक़े के किसान और मजदूर ‘रीगा चीनी मिल’ को चालू कराने के लिए समय- समय पर आंदोलन करते रहे हैं। इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भूमिका निभा रहे संजय कुमार मानते हैं कि इस मिल के बंद हो जाने से यहाँ के किसानों को अपना गन्ना गोपालगंज भेजना पड़ रहा है। इसके बंद होने के पीछे मालिक की भूमिका संदिग्ध है. वह आरोप लगाते हैं कि बड़े पैमाने पर मिल मालिक ने किसानों का पैसा गबन किया है। इस पैसे से उसने देश -विदेश में संपत्तियाँ अर्जित की है।
संजय आगे कहते हैं हर हाल में किसानों के बक़ाया को देना होगा ,अभी आंदोलन और लड़ाई तो शुरू ही हुई है। देश विदेश में मालिक की जो भी संपत्ति है उससे किसानों के क़र्ज़ की भरपाई करनी होगी। सरकार को चाहिए कि इस पर सख्त क़दम उठाए”। पचास वर्षीय मुजीबुर रहमान शिवहर ज़िले के एक किसान हैं वो कहते हैं कि “रीगा मिल के बंद होने की वजह से यहाँ के लगभग 95 प्रतिशत किसान गन्ना उगाना छोड़ दिये हैं। वही लोग गन्ना उगा रहे है जिनके पास ट्रांसपोर्ट का अपना साधन है। पिछले साल जब मिल अचानक बंद हुई तब अधिकांश किसानों ने अपने फसल को खेतों में ही जला दिया। औने- पौने( कम दामों) दाम पर बेच कर कुछ मिलने वाला भी नहीं था. सरकार मिल शुरू करे तो इलाक़े की रौनक़ फिर से वापस आ जाएगी”।
वह कहते हैं कि -मैं 10 बीघे में खेती करता हूँ, पांच बीघे में गन्ना और बाक़ी पांच बीघे में अन्य फसल उगाते हैं। अपना ट्रैक्टर है इसलिए हम लोग इतनी हिम्मत कर के गन्ना उगा भी लेते हैं। इसी गन्ने के कमाई से अपने दो बच्चों को दिल्ली स्थित आकाश संस्था में मेडिकल के लिए कोचिंग करवा रहे हैं। रीगा मिल बंद होने पर भारी नुक़सान है। अभी हम जो गन्ना उगाते हैं उसे गोपालगंज भेजना पड़ता है। अब लगभग दो से तीन लाख ही साल की आमदनी हो पाती है, पहले गन्ने से पांच लाख तक साल में कमाई हो जाती थी।
एक और किसान मुजीब बक़ाया राशि पर कहते हैं कि मिल के यहाँ मेरे एक लाख का बक़ाया है, कब ये रक़म मिलेगी कोई उम्मीद नहीं है. ऐसे सैकड़ो किसान हैं जिनके पैसे मिल मालिक के पास अभी भी बाकी हैं। 36 वर्षीय श्याम इस मिल में एक चौकीदार थे. वह आज बेरोजगार हैं। अब दिहाड़ी मजदूर का काम कर जैसे तैसे जिंदगी बसर कर रहे हैं। पहले महीने के अंत में एकमुश्त पैसा मिल जाता था। अब रोज़ काम नहीं मिल पाता है। लगभग 20 सालों से वह यहाँ चौकीदार थे . वह आगे कहते हैं कि हमारे पिता जी भी इसी मिल में नौकरी करते थे। श्याम को उम्मीद है कि मिल जल्द शुरू हो जाएगा। इस मुद्दे पर बिहार सरकार के तिरहुत गन्ना कमिशनर का कहना है कि किसानों के बकाया क़र्ज़ को हर हाल में मिल मालिक से लिया जाएगा। सरकार इस बात पर पूरी तरह प्रतिबद्ध है कि मिल हर हाल में चले अथवा इस कारखाने की नीलामी भी की जाएगी।

वो कहते हैं कि चूंकि यह एक प्राईवेट मिल है, इसमें सरकार की भूमिका सिर्फ एक फैसिलिटेटर की ही है, लेकिन मिल मालिक किसानों का बगैर भुगतान किये मुक्त हो जाए, ऐसा संभव नहीं है। इस मालिक के पास देश भर में जितनी संपत्ति है, यदि उसको बेच कर किसानों का भुगतान करना पड़े तो सरकार ऐसा करेगी। शिवहर लोकसभा के पूर्व प्रत्याशी सैयद फैसल अली ने इस पूरे मुद्दे पर Twocircles.net से बात करते हुए कहा “मैंने इस संबध में मिल के मालिक के साथ बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव जी से मुलाक़ात की है। इसके ज़रूर साकारात्मक परिणाम आएंगे। हम लोग चाहते हैं कि मिल हर हाल में चले। किसानों का इस मिल से भावनात्मक जुड़ाव है। कुछ तकनीकी और कानूनी मुद्दे हैं, इसे जल्द सुलझाना होगा, मैं इस दिशा में पूरी कोशिश कर रहा हूँ. तेजस्वी जी ने मामले को जल्द देखने का आश्वासन दिया है। ”
रीगा चीनी मिल राजधानी पटना से लगभग 200 किलो मीटर उत्तर, सीतामढ़ी ज़िला में है। इस मिल को एक अंग्रेजी शासन काल मे 1933 में स्थापित किया गया। आज़ादी के बाद इसे कोलकाता के ओम प्रकाश धनुका ने टेकओवर किया। तब से यह मिल इस क्षेत्र के किसानों और मजदूरों के लिए जीवन- यापन का मुख्य ज़रिया बना रहा। आज़ादी के बाद, बिहार में 29 चीनी मिलें थी, रीगा मिल के बंद होने के बाद मात्र 10 मिलें ही चालू अवस्था में अब रह गई है . इससे पहले चकिया(पूर्वी चंपारण) , मोतीपुर(मुज़फ़्फ़रपुर) , और मोतिहारी चीनी मिल बंद हो गई , इन सभी मिलों के मालिक बिहार के बाहर के थे।
उदास राम नरेश सिंह कहते हैं एक समय ऐसा भी था, जब रीगा चीनी कारखाना वाले किसानों को अग्रिम भुगतान भी कर दिया करते थे, केवल खेत में लगे फसल का आंकलन मात्र करके, चीनी तैयार होने पर हम लोगों को इतना मुनाफा हो जाता था जिससे मिल द्वारा किए गए अग्रिम भुगतान की भरपाई भी हो जाती थी, और घर का खर्चा भी निकल जाता था। पिछले पांच सालों से ‘मिल’ की स्थिति खराब होती गई और कोरोना में इसको अंततः बंद कर दिया गया।