बस्तर में सुरक्षा बल और माओवादी मुठभेड़ में पिसती आम आदिवासी जिदंगियां, दूधमुंही बच्ची ने गंवाई जान

Photo: Malini subramaniam/TwoCircles.net

Poonam Masih/ TwoCircles.net

बस्तर। छत्तीसगढ़ के बस्तर में माओवादी और सुरक्षा बलों के बीच होने वाली मुठभेड़ अब एक आम घटना बन गई है। माओवाद को जड़ से खत्म करने के प्रयासों में सुरक्षा बलों द्वारा नियमित रूप से ऑपरेशन चलाए जाते हैं, लेकिन इन ‘मुठभेड़’ की आग में कई बार कथित तौर पर निर्दोष आदिवासी भी झुलस रहे हैं, जिससे क्षेत्र में तनाव और असुरक्षा का माहौल बना रहता है।


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दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल करने के बाद से ही बस्तर के अलग-अलग हिस्सों में सुरक्षा बलों द्वारा कई ऑपरेशन चलाए गए। जिसमें कथित तौर पर माओवाद के कई हिस्सों को धवस्त करने का दावा किया गया।

हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि “मार्च 2026 तक नक्सलवाद का सफाया हो जाएगा। साथ ही माओवादियों को हिंसा छोड़ने और आत्मसमर्पण करने की अपील की”।

दूध पीती बच्ची की मौत

इस साल की शुरुआत से ही माओवादी और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ शुरु हो गई थी। तीन जनवरी को बीजापुर जिले के मतुवेण्डी गांव में माओवादी और सुरक्षाबल की मुठभेड़ में एक छह माह की दूधमुंही बच्ची की गोली लगने से मौत हो गई। यह घटना तब हुई जब बच्ची अपनी मां की गोद में दूध पी रही थी।

इस घटना के बाद सुरक्षा बल द्वारा यह दावा किया गया कि क्रॉस फायरिंग के दौरान बच्ची को गोली लगी और यह नक्सलियों द्वारा चलाई गई थी। दूसरी ओर माओवादी संगठन की तरफ से इस बयान का खंडन किया गया।

बस्तर में साल 2024 के मुठभेड़ की यह पहली घटना थी। ईटीवी भारत की खबर के अनुसार मृत बच्ची की मां ने दावा किया था कि पुलिस की गोली लगने से, बच्ची की मौत हुई।

छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार आने के बाद से ही माओवादियों के गढ़ को खत्म करने के अभियान में कथित तौर पर कई आम आदिवासियों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी है।

38 एनकाउंटर हुए

हाल ही में प्रकाशित हुई ‘Citizen Report on Security and Insecurity’  नामक रिपोर्ट के अनुसार इस साल जुलाई तक “फर्जी मुठभेड़” में 141 आदिवासियों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। जबकि साल 2019 के बाद से बस्तर में अबतक के सबसे ज्यादा सुरक्षा बल कैंप खोले गए हैं।

वहीं दूसरी ओर पुलिस का दावा है जुलाई तक बस्तर में 38 एनकाउंटर किए गए जिसमें 141 माओवादियों को मारा गया है।  साल 2009 के बाद की यह अब की सबसे बड़ी संख्या है, जहां सिर्फ सात महीने में सुरक्षा बल ने इतने ऑपरेशन किए हैं।

साल की शुरुआत से शुरु हुए ऑपरेशन में सुरक्षा बल का दावा है कि उन्होंने नक्सलियों का सफाया किया है। लेकिन इन ऑपरेशन में आम आदिवासियों को भी जान गंवानी पड़ी है।

Mangu Ram Photo: Malini subramaniam / TwoCircles.net

Scroll.in की एक रिपोर्ट के अनुसार जून के महीने में नारायणपुर पुलिस द्वारा प्रेस रिलीज जारी कर “पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी” (पीएलजीए) के छह इनामी सदस्यों के एनकाउंटर की जानकारी दी गई। पुलिस के द्वारा मारे गए सभी लोगों के फोटो भी जारी किए।

खबर के अनुसार वट्टेकाल गांव की सन्नी उर्फ सुंदरी जिसे एनकांउटर में मारा गया वह नक्सली नहीं बल्कि एक आम आदिवासी थी।

इस खबर को करने वाली पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम से हमने बात की। उन्होंने बताया कि ‘जब मैं मृतका के परिवार से वट्टेकाल गांव में मिली तो पिता ईश्वर कुमेटी ने बेटी के नक्सली होने से इंकार करते हुए उसका आधार कार्ड और आयुष्मान भारत कार्ड दिखाया’।

उन्होंने बताया कि ‘बेटी का नाम मनबन्ती कुमेटी था न कि सन्नी और वह सिर्फ 22 साल की थी। गांव में सभी उसे कारी के नाम से जानते थे’।

मालिनी के अनुसार परिवार वालों का कहना था कि ‘जिस वक्त उऩ्हें मृतका का पार्थिव शरीर दिखाया गया, उसमें मारे गए सभी लोग माओवादी यूनिफॉर्म में थे। बस मनबन्ती के शरीर पर चेक शर्ट दिख रही थी। जो उसने मुठभेड़ वाले दिन पहन रखी थी’।

पत्रकार आगे बताती हैं कि इस घटना से पहले सुरक्षा बल ने बटबेडा गांव के मंगू राम को घर से उस वक्त उठा लिया जब वह खाना खा रहा था। उसके दोनों हाथों को बांधकर सुरक्षा बल के जवान अपने साथ ले गए। मुठभेड़ के बाद वह सात दिन तक जेल में भी रहा।

मंगू राम ने पत्रकार को बताया जिस दिन एनकांउटर हुआ सुरक्षा बल की कई टुकडियां ऑपरेशन पर थी।

वह आगे बताते हैं “ऑपरेशन के दौरान मुझे सुरक्षा बल द्वारा नीचे बैठने को कहा गया, इसी दौरान मैंने ग्रामीण वेशभूषा में एक महिला को देखा। अचानक एक आवाज हुई और वह भागी इसी दौरान सामने वाली टुकड़ी ने उसे गोली मार दी”।

बस्तर के जंगलों में जब भी सुरक्षा बल के आने की जानकारी ग्रामीणों को होती है तो वह गांव छोड़कर जंगल में भाग जाते हैं। यह आदिवासियों के लिए एक सामान्य प्रक्रिया है। जिसमें मनबन्ती भी उस दिन जंगल की तरफ गई थी।

मालिनी की अनुसार ‘मंगू राम को मुठभेड़ के बाद सात दिन तक जेल में रखा गया इसलिए मंगू के लिए यह बता पाना मुश्किल है कि वह मनबन्ती थी या और कोई’।

परिवार ने नहीं की शिकायत

पुलिस इन सारे दावों को झूठ बता रही है। Two circle.in  ने नारायणपुर के पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार से इस बारे में बात की उन्होंने बताया कि ‘उस दिन ऑपरेशन के बाद हमें छह बॉडी मिली थी। ये सभी लोग माओवादी थे’।

इस ऑपरेशन में जिसे कगार नाम दिया गया कि उसमें तीन सुरक्षा बल के जवान भी घायल हुए और आज भी इलाजरत है।

पुलिस अधीक्षक ने बताया कि “हमें इस ऑपरेशन के बाद खुफिया विभाग की तरफ से यह जानकारी दी गई कि वहां छह नहीं ब्लकि आठ बॉडी थी। हमने छह रिकवर की थी इसलिए उसकी ही जानकारी दी”।

हमारे मनबन्ती के बारे में पूछने पर वह बताते हैं कि ‘हमें परिवार द्वारा किसी प्रकार की शिकायत नहीं दी गई है। बाकी परिवार ने नक्सली के तौर पर ही उसकी बॉडी को लिया था’।

पुलिस अधीक्षक कुमार के अनुसार ‘किसी नक्सली के पास भी आधार कार्ड हो सकता है और यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि वह नक्सली नहीं है। एक-एक नक्सली के छह सात नाम होते हैं। वहां उर्फ नाम का सहारा लिया जाता है। ऐसा ही इस केस में भी हुआ है’।

माओवादी संगठन का इंकार

वहीं इस घटना के बाद भारत कम्युनिट पार्टी (माओवादी) पूर्व बस्तर डिवीजन की तरफ से एक प्रेस विज्ञाप्ति जारी कर मनबन्ती उर्फ कारी का पार्टी सदस्य न होने की जानकारी दी  गई, जिसमें बाकी लोगों को शहीद घोषित करते हुए कारी को “फर्जी मुठभेड़” में मारे जाने का जिक्र किया गया है।

12 लोग मारे गए

बस्तर में साल 2024 में इस तरह की कई घटनाएं हुई हैं। बीजापुर जिले के गंगालूर थाने के पीडिया और इतवार गांव में मई महीने में सुरक्षा बल के मुठभेड़ में 12 लोग मारे गए हैं। पुलिस का दावा है, कि ये सभी लोग माओवादी हैं।

जबकि गांव वालों का कहना है कि ये सभी लोग आम आदिवासी थे, जो जंगल से तेंदूपत्ता तोड़ने गए थे। इसी दौरान पुलिस उन्हें दौड़ाकर नाले की ओर ले गई, जहां उन पर गोलीबारी की गई।

इस घटना के बाद ग्रामीणों ने बीजापुर पुलिस मुख्यालय का घेराव किया। सामजिक कार्यकर्ता और वकील बेला भाटिया ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात भी की।

उनका कहना है कि ‘हजारों की संख्या में सुरक्षा बल ने तेंदूपत्ता तोड़ने गए ग्रामीणों को दौड़ा दौड़ाकर मारा है। जिसमें दो गांव के 10 लोग और दो मेहमान सुरक्षा बल द्वारा मारे गए और छह लोग घायल हुए थे’।

जबकि इस घटना के बाद बस्तर टाकीज की रिपोर्ट के अनुसार नाले के पास खून से सने गांववालों के कपड़े भी मिले थे। वहां कुछ चप्पल भी मौजूद थी जो गांववाले ही पहनते हैं। खबर के अनुसार इस तरह के कपड़े और चप्पलें माओवादी नहीं पहनते हैं।

इस घटना के बाद भी माओवादियों द्वारा प्रेस नोट जारी कर यह जानकारी दी गई थी कि सभी 10 लोग ग्रामीण थे और उनका संगठन से कोई लेना-देना नहीं था।

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