By राजीव यादव,
हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने एक गैर सरकारी संगठन जयति भारतम की याचिका पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है. धर्म को न्यायालय में न लाने की नसीहत देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की जयति भारतम द्वारा पेश की गयी तस्वीर पर चिंता व्यक्त की.
खरखौदा और मुजफ्फरनगर प्रकरण जैसे कई मामलों को देखते हुए यह साफ़ हो जाता है कि साल भर से भी अधिक समय से पश्चिमी यूपी में सांप्रदायिक ताकतें हावी हैं. पूरे क्षेत्र में जिस तरीके से महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर ऐसी ताकतों को चुनावी सफलता मिली है, इसमें महिलाओं की स्थिति का आकलन करना निहायत जरुरी हो जाता है. इसी बीच मुजफ्फरनगर के जाडवाड गांव में एक पंचायत ने लड़कियों के मोबाइल फोन रखने व जींस पहनने पर रोक लगाते हुए कहा कि अगर वे ऐसा करती हैं तो इसके लिए उनके साथ उनके परिवार भी दंड के भागी होंगे.
[Courtesy: Caravandaily]
वैसे तो खाप प्रधान इस इलाके में ऐसे पंचायती फैसले नए नहीं हैं, पर महिला सुरक्षा का सवाल जिस तरीके से हिंदू के लिए अलग और मुस्लिम के लिए अलग हो रहा है वह एक मजबूत सांप्रदायिक पृष्ठभूमि का निर्माण कर रहा है. जिस इलाके में विपरीत गोत्र और जातियों में विवाह कर लेने पर मारकर पेड़ से लटका दिया जाता हो वहां पर इस नई त्रासदी के आगमन और खासतौर पर दलित और मुस्लिम क्षेत्रों में ऐसी सांप्रदायिकता का खतरनाक रुप अख्तियार करना कोई नयी बात नहीं है. इसकी पृष्ठभूमि में संस्कृतिकरण की वह मूल अवधारणा है जो आधुनिकता को तो मौजूदा हालात में बर्दाश्त कर लेती है पर किसी दूसरे समुदाय के लड़के से प्रेम विवाह को बतौर हमले के रूप में देखती है. दृश्य तो यह है कि आज एक लड़की भले ही मोबाइल फोन या जींस पहनना पसन्द करती है पर वह इस संशय में भी है कि वह कहीं किसी दूसरे समुदाय के साथी के साथ प्रेम विवाह कर उसके धर्मऔर उसकी जनसंख्या को ‘मजबूत’ और अपने धर्म को ‘कलंकित’ तो नहीं कर रही है.
इस इलाके में पहले से ही भिन्न-भिन्न गोत्रों और जातियों में गहरी खाई थी. ऐसे में बहुत आसानी से सांप्रदायिक भावनाओं को पाल पोसकर बड़ा करने वाले हिन्दुत्वादी संगठनों ने इस इलाके में ‘बहू-बेटी बचाओ’ पंचायतों के ज़रिये जाट समुदाय को गोलबंद किया. इस गोलबंदी के बाद क्षेत्र में जगह-जगह रविदास मंदिरों को केन्द्र बनाकर दलितों में ‘हिंदू बोध’ को संगठित कर ‘लव जिहाद’ को आतंकी षड्यंत्र बताते हुए प्रसारित किया जा रहा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संगठन के सहयोगी संगठन धर्म जागरण मंच ने हिंदू लड़कियों को बरगलाकर शादी और धर्म परिवर्तन के लिए चल रहे ‘लव जिहाद’ के खिलाफ जंग जारी करते हुए रक्षाबंधन के मौके पर अभियान चलाकर इस मामले को एक पुख्ता आधार प्रदान किया. धर्म जागरण मंच इस बात को प्रचारित करता है कि मुस्लिम लड़के जो हाथों में कलावा बांधते हैं, वो आज का फैशन है. हिंदू लड़कियां उनके झांसे में न आएं कि वो उनके धर्म का सम्मान करते हैं.
भारत में यह कोई नयी बात नहीं है कि हिन्दू लड़कियाँ मुसलमान लड़कों को राखी बांधती रही हैं पर षड्यंत्र के ऐसे सिद्धांत हमारी सांस्कृतिक ऐतिहासिक परंपरा को खत्म करने पर आमादा हैं. इन अफ़वाहों का इतना असर रहा कि रक्षाबंधन के पूरे त्योहार को जहां सोशल साइट्स पर ‘शौर्यता’ का भाव दिया गया तो वहीं ‘ईद की बधाई क्यों नहीं दी जाए’ के अभियान चले. इसे हम अपनी संसद में भी देख सकते हैं, जहां प्रधानमंत्री द्वारा ईद की बधाई न देने व देने और इफ्तार पार्टी क्यों नहीं दी गई जैसे सवाल उठे. लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इसे संसदीय कार्यवाई में भले ही शामिल न करने का निर्णय लिया पर देश की आम आवाम के ज़ेहन में इससे प्रेषित हुए संदेश की छवि को नकार पाना मुश्किल होगा.
हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच की दरार का अंदाज़ सहारनपुर के बाबा रिजकदास के बारे मे आई खबरों से लगाया जा सकता है कि वह मुस्लिमों के प्यार में बीमार लड़कियों को ‘ठीक’ करते हैं. संघ के ‘लव जिहाद’ के प्रचार की भयावहता का आकलन इससे लग जा सकता है कि जिस समय सहारनपुर में सांप्रदायिक हिंसा की वजह से पूरा क्षेत्र अशांत था, उस समय भी ‘लव जिहाद’ से आतंकित परिजन सहारनपुर आ रहे थे. प्रेम जिसके भाव का संचार आचार-विचार जैसे मूल तत्वों से होता उसे यहां भूत समझकर बाबा रिजकदास के यहां लड़की के सर से मुस्लिम लड़के का भूत उतरवाने लोग आते हैं, क्योंकि बाबा की ख्याति दूर-दूर तक फैली है कि बाबा ‘मुस्लिम’ लड़के का भूत उतारने में ‘माहिर’ हैं.
हिंदू समाज के रक्षक के तौर पर सुशोभित बाबा रिजकदास के सामने लोग अपनी लड़कियों को लाकर उसके बारे में बताते हैं कि कैसे वह मोबाइल, फेसबुक या अन्य सुविधाओं के ज़रिए मुस्लिम लड़के के प्रभाव आई, उसके साथ घूमते-फिरते देखी गई और लाख मना करने पर भी नहीं मानती. और फिर क्या बाबा पवित्र मिनरल वाटर की एक बोतल और चावल के कुछ दानों के ज़रिए उन्हें ठीक करते हैं. कभी-कभी ‘पवित्र’ मिनरल वाटर को छूने से इनकार करने पर लड़की के साथ बल प्रयोग में लाया जाता है. लोग बताते हैं कि बाबा तंत्र-मंत्रों की सहायता से भी इस ‘काले जादू’ को खत्म करते हैं.
‘लव जिहाद’ का हौवा संघ परिवार ने खड़ा किया है या यह वास्तविक है, इन सवालों पर दक्षिणपंथी बुद्धिजीवी दिसंबर 2009 के केरल उच्च न्यायालय के फैसले को उद्धृत करते हैं. इस लिहाज़ से सुप्रीम कोर्ट की पिछले दिनों आई टिप्पणी को भी नजरंदाज नहीं करना चाहिए जिसमें अभद्र भाषा, धर्म को न्यायालय में लाने, याचिकाकर्ता द्वारा मामले को जो रंग दिया जा रहा था इत्यादि पर यह याद दिलाया गया कि भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है. देश की धर्मनिरपेक्षता न्यायालय परिसर तक सीमित न होकर आम आवाम तक हो इसके लिए समाज को एकजुट होना होगा.
हमारा समाज – जो गैर-बराबरी, सम्प्रदाय, जाति, नस्ल और लिंग के आधार पर भेद करता है – में ‘लव जिहाद’ के सहारे समाज को विघटित करना बहुत आसान हो जाता है. साथ में यह भी ध्यान में रहे कि इस असमानता के पीछे वही मानवताविरोधी ताकतें हैं जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान आदि में मध्यकालीन और बर्बर फरमानों का समर्थन करती हैं. ये शक्तियां आदिवासी-दलित लड़के की सवर्ण जाति की लड़की से विवाह को मान्यता न देने के साथ-साथ इज्जत के नाम पर की गयी हत्याएं भी समर्थित करती हैं. आदिवासी-दलित लड़कियों के साथ यौन दुराचार को अपना अधिकार समझती हैं. ऐसे में काले जादू का तोड़ निकालने वाला बाबा के बजाय कबीर के ‘ढाई आखर’ वाले सिद्धांतों और समाज की ज़रूरत है.