सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net,
आजमगढ़: उत्तर प्रदेश के जिले आजमगढ़ में पिछले तीन दिनों से साम्प्रदायिक तनाव कायम है. पुलिस और प्रशासन का कहना है कि स्थिति नियंत्रण में है लेकिन मौके पर मौजूद लोग और गांवों के निवासी बताते हैं कि सबकुछ ठीक नहीं है.
खुदादादपुर के निवासी कामिल भीड़ के हमले में घायल हो चुके हैं. वे बताते हैं कि पुलिस की तैनाती केवल मुस्लिमबहुल गांवों के बाहर ही है. हमारे गाँव से कोई भी ज़रूरी काम के लिए भी निकल रहा है तो पुलिस उसे दौड़ाकर पीट रही है. लेकिन इसके ठीक उलट खुदादादपुर से ही सटे हुए अन्य हिन्दूबहुल गांवों में पुलिस की तैनाती नहीं है.
(Image Courtesy – Catch News)
प्रशासन के दावे से अलग यह तथ्य सामने आ रहे हैं कि छिटपुट मारपीट की घटनाएं लगातार हो रही हैं और पुलिस की मौजूदगी में हो रहे हैं. लेकिन पुलिस इस पर कोई एक्शन लेने की फ़िराक में नहीं दिख रही है. दाऊदपुर के निवासी शाकिर बताते हैं, ‘हिन्दू गांवों के लोग हमारे गाँव से आ-जा रहे लोगों को रोक-रोककर बुरी तरह से पीट रहे हैं, कई-कई बार वे पुलिस की मौजूदगी में हमला करते हैं. लेकिन पुलिस के लोग खड़े होकर देखते रहते हैं.’
इस हिंसा की आंच शहर के थाना क्षेत्र निजामाबाद के अन्दर आने वाले ग्राम खुदादादपुर, संजरपुर, बनगांवा, फरीदाबाद, ईश्वरपुर, गंगापुर, अम्बरपुर और सरायमीर तक फ़ैल गयी है. गांव पर जब भीड़ ने हमला कर दिया तो मुस्लिम समुदाय के लोग अपने घरों में रहे और उन्होंने तत्काल प्रभाव से पुलिस को फोन किया. उनकी फ़रियाद को पुलिस टालती रही. पुलिस की लापरवाही के दौरान भीड़ ने कई मुस्लिमों की पिटाई की, जिसमें कई लोग घायल हो गए हैं और गाड़ियों में आग लगा दी गयी है.
सामाजिक कार्यकर्ता तारिक़ शफीक़ मौके पर लगातार मौजूद हैं. वे बताते हैं, ‘मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के वक़्त ठीक-ठीक यही स्थिति थी. पुलिस ने हिन्दुओं को छूट दे रखी थी और मुस्लिमों पर पहरा बिठा रखा था. लोग सही कह रहे हैं, यहां भी यही हो रहा है. हिन्दू गांवों के बाहर कोई पुलिस फ़ोर्स नहीं मौजूद है.’
वे आगे बताते हैं, ‘मैंने कई बार डीएम और एसएसपी से हर जगह फ़ोर्स लगाने को कहा. एसएमएस भी किया लेकिन उन्होंने एक बार भी मेरी बात नहीं सुनी.’
इस मामले में भीड़ ने अभी तक करोड़ों की संपत्ति का नुकसान कर दिया है. इसके साथ दाऊदपुर, खुदादादपुर के कई घरों में लूटपाट के बाद आग लगा दी गयी है. लेकिन अभी तक प्रशासन की तरफ से कोई ठोस कदम उठाए जाते नहीं दिख रहे हैं.
आजमगढ़ के इस मौजूदा विवाद की नींव लगभग डेढ़ महीने पहले होली के त्यौहार के दिन ही पड़ गयी थी. होली के दिन फरीदाबाद गाँव में रंग खेलने को लेकर दोनों समुदाय आमने-सामने आ गए थे. पत्थरबाजी, मारपीट और तोड़फोड़ के साथ लगभग तीन घंटों बाद इस मामले में कोई शान्ति आ सकी थी.
इसके बाद भी दोनों समुदायों के बीच छिटपुट घटनाएं होती रहीं. कई बार पुलिस ने इन मामलों में एक पक्ष के खिलाफ ही कार्रवाई की, जिससे पुलिस और वर्चस्ववादी हिन्दुओं की सांठ-गांठ का भान लोगों को होता गया.
तारिक़ इस बारे में बताते हैं, ‘गुस्से में कोई भीड़ यदि जमा होती है तो अधिक से अधिक पचास लोगों की. लेकिन यहां सात सौ से अधिक लोग चंद घंटों में कैसे जमा हो गए?’
लोग इस मामले में यहां के पूर्व सांसद रमाकांत यादव पर आरोप लगते हैं. गांव के बाशिंदे भोला कहते हैं, ‘भीड़ के हमले के पहले रमाकांत यादव यहां आए थे. लगभग चार गाड़ियों के साथ. उन्होंने केवल यहां के हिन्दुओं से मुलाक़ात की. आस-पास के गांवों में भी वे सिर्फ हिन्दुओं से ही मिले और चले गए. जाते-जाते उनके साथ आए तीन-चार लोग वहीँ रह गए और बाद में वे भीड़ के साथ आए.’
लम्बे समय से सपा और भाजपा के बीच साम्प्रदायिक और राजनीतिक गठजोड़ की खबरें राजनीतिक बाज़ार में गर्म है. कई मामलों में सपा नेताओं और राज्य मंत्रियों की संलिप्तता के साथ-साथ इन कयासों पर अब एक तरह से मुहर भी लगाई जाने लगी है. रमाकांत यादव का व्यक्तित्व हमेशा से संदिग्ध रहा है. उन पर हत्या करने, हत्या का प्रयास करने, दंगा फैलाने, भड़काऊ और अपमानजनक भाषण देने के मुक़दमे काफी पहले से चल रहे हैं.
इस मामले में राजनीतिक रंगत भी आ चुकी है. भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य ने आजमगढ़ में एक छः सदस्यीय जांच दल भेजने का निर्णय लिया है. साथ ही साथ ध्रुवीकरण की राजनीति में माहिर भाजपा नेता योगी आदित्यनाथ ने इस क्षेत्र का दौरा करने का ऐलान किया है.
मानवाधिकार से जुड़े संगठनों और कई धार्मिक संगठनों ने इस घटना की भर्त्सना की है और सपा-भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है. रिहाई मंच ने स्थिति को सम्हालने के लिए मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा है और राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल ने कहा है कि वे योगी आदित्यनाथ को आजमगढ़ नहीं आने देंगे.