अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
दिल्ली: कश्मीर में तीन दशक बाद मिलिटेंसी फिर से बढ़ रही है. खासतौर पर युवाओं में इसका उत्साह काफी बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है. बल्कि यूं कहें कि कश्मीर के भ्रमित युवाओं में ‘भारत-विरोधी’ भावना घर कर रही है..
ऐसे माहौल में पूर्व रॉ चीफ़ अमरजीत सिंह दुलत का कहना है, ‘जब कश्मीरी ही हमारे साथ नहीं हैं, तो कश्मीर हमारा हो ही नहीं सकता. सच तो यह है कि जब से मुफ़्ती साहब गुज़रे हैं, कश्मीर के हालात इतने अच्छे नहीं हैं. हालात पहले के मुक़ाबले बिगड़े ही हैं. ‘आज़ादी’ का जो रोमांटिक ख़्वाब है, वो अभी भी ख़त्म नहीं हुआ है. पर इनकी संख्या ज़्यादा नहीं है.’
अमरजीत सिंह दुलत भारतीय खुफ़िया एजेंसी यानी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग(रॉ) के पूर्व चीफ़ हैं. वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के काफी क़रीबी रहे हैं. वाजपेयी सरकार में उन्होंने साढ़े तीन साल तक प्रधानमंत्री कार्यालय में कार्य किया है. दुलत ने अपना लंबा समय जम्मू-कश्मीर में बिताया है. हाल के ही दिनों में दुलत ने ‘कश्मीर : द वाजपेयी ईयर्स’ शीर्षक एक किताब भी लिखी है, जो काफी चर्चा में है.
दुलत आज जामिया नगर में ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस मशावरत द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे. उन्होंने कहा, ‘जो लोग दिल्ली में रहकर कश्मीर के हालात को सही मान रहे हैं, वो शायद सचाई से रूबरू नहीं हैं.’
वे आगे बताते हैं कि एक बार जमीअत के मदनी साहब से जब मैंने पूछा था कि भारतीय मुसलमान कश्मीर के बारे में नहीं सोचता. तब उन्होंने कहा था कि ऐसा नहीं है. लेकिन जब यही सवाल कश्मीर के लोगों से भी पूछता हूं तो वे साफ़ तौर पर मना कर देते हैं.
दुलत बताते हैं, ‘डॉयलॉग चलते रहने वाली चीज़ है. इसे कभी ख़त्म नहीं होने देना चाहिए. आज भी कहीं न कहीं किसी स्तर पर बात चल रही है. लेकिन यह इस बार इतना गंभीर नहीं है. मेरे भी ऊपर ‘एजेंसी’ का एक ठप्पा लगा हुआ है. लोग छिपकर तो मिल लेते हैं, लेकिन सामने मिलने से डरते हैं. खैर, रास्ते कभी बंद नहीं हुए हैं, रास्ते खुले हैं और खुले रहने चाहिएं.’
दुलत ने बताया, ‘जिनको हम अलगाववादी कहते हैं, वे इतने अलगाववादी हैं नहीं.’ उन्होंने कश्मीर मसले पर द्विपक्षीय बातचीत के बारे में बताते हुए कहा, ‘कश्मीर को लेकर अगर कभी डॉयलॉग बन्द हुआ है तो उसकी वजह ज़्यादातर बार दिल्ली ही बनती है.’
उन्होंने यह भी कहा कि रेफरेन्डम का समय अब बीत चुका है और अब कराना बहुत मुश्किल है. लेकिन कश्मीर मसले को हल करना बहुत ज़रूरी है.’
वाजपेयी सरकार की कोशिशों का ज़िक्र करते हुए कहा, ‘2004 में अटल बिहारी वाजपेयी ने अच्छी कोशिश की थी. फिर मनमोहन सिंह ने इस मसले को काफी गंभीरता से लिया, लेकिन पाकिस्तान नहीं जा सके. अब देखना दिलचस्प होगा कि मोदी इस मसले पर कितनी दिलचस्पी लेते हैं.’
इस कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार सबा नक़वी ने कहा, ‘जब कश्मीरी बच्चों से उनके हॉस्टल में उनका खाना छीना जा रहा है तो ऐसे में कश्मीरी युवा क्यों भारत के पक्ष में आएंगे? कश्मीरी युवाओं का मूड अब भारत के पक्ष में नहीं है. वे हमसे काफी चिढ़ते हैं.’
उन्होंने कश्मीर में भाजपा-पीडीपी के गठबंधन के बारे में भी बताया, ‘भाजपा का एजेंडा अलग है और पीडीपी का एजेंडा अलग. दरअसल पीडीपी के ‘सरवाईवल’ का मसला है’
उन्होंने आगे कहा, ‘नरेन्द्र मोदी बहुत ही मजबूत प्रधानमंत्री है. यह पूर्णबहुमत वाली सरकार है. अगर वो चाहे तो इस मसले पर ज़रूर कुछ कर सकते हैं. अटल बिहारी चाहते थे पर संघ के विरोध की वजह से वे कुछ कर नहीं पाए. अब देखना दिलचस्प होगा कि मोदी इस मसले पर क्या चाहते हैं?’
वहीं दिल्ली में रहने वाले कश्मीर मूल के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद इफ़्तिख़ार गिलानी ने कहा, ‘कश्मीरी व भारतीय मुसलमान दोनों के बीच एक खलीज है, जिसे पाटी नहीं जा सकती और किसी ने कोशिश भी नहीं की.’
उन्होंने बताया, ‘जम्मू का क़त्लेआम इतिहास का सबसे बड़ा क़त्लेआम था. सुनियोजित तरीक़े से 2 लाख 37 हज़ार कश्मीरी मारे गए, लेकिन इसका कहीं कोई ज़िक्र ही नहीं करता. वहीं 250 कश्मीरी पंडित मारे गए तो आज एक प्रसिद्ध इतिहास बन गया है.’
कश्मीरी समुदाय पर होने वाले अत्याचारों के बारे में उन्होंने बताते हुए कहा ‘कश्मीर के 19 लोगों को सिर्फ़ फांसी पर इसलिए चढ़ा दिया गया कि घर से गाय का गोश्त पाया गया था. एक घर में गाय का गोश्त पाया गया तो उस घर के पूरे परिवार को गोबर में डालकर ज़िन्दा जला दिया गया.’
कश्मीर के इतिहास के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया, ‘सबसे पहले हिन्दू महासभा ने ही ‘आज़ाद कश्मीर’ की बात की थी. 1946 का हिन्दू महासभा का पूरा प्रस्ताव बलराज पुरी ने अपनी पुस्तक में छाप दिया है.’
आख़िर में उन्होंने कहा, ‘जितनी देर होगी, कश्मीर के हालात और ख़राब होते जाएंगे. कश्मीरी युवा भारत से नफ़रत करने लगे हैं. वहां के लोगों के दिलों में अब बंदूक का ख़ौफ़ नहीं रहा. मैंने खुद देखा है कि कैसे वहां का नौजवान सेना के सामने आकर अपना सीना खोल देता है…’
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मशावरत के अध्यक्ष नवेद हामिद कर रहे थे. उन्होंने भी अपनी बातों को रखते हुए कहा, ‘कश्मीर अगर हमारा है तो कश्मीरी भी हमारे हैं. 1994 के बाद से ही ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस मशावरत के साथ-साथ जमाअते इस्लामी हिन्द और जमीअते उलेमा-ए-हिन्द ने कश्मीर के मसले पर खूब बोला है.’ इस कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस मशावरत के सचिव मुजतबा फ़ारूक़ ने दिया.