Home India News बेसहारा और गरीब लड़कियों की आवाज़ बनी ‘पहचान’

बेसहारा और गरीब लड़कियों की आवाज़ बनी ‘पहचान’

फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net

नई दिल्ली: रुक़ैय्या जब पांचवी क्लास में थीं तो उनके अब्बा ने उनकी मां को तलाक दे दिया. रूकैय्या की मां ग़रीब परिवार से थीं, उनके लिए बेटी के स्कूल की फीस भरना काफी मुश्किल काम था. ऐसे में पैसे की कमी के कारण रूकैय्या की पढ़ाई रूक गयी. एक-दो सालों के बाद रूकैय्या के घर ‘पहचान’ संस्था के कार्यकर्ता पहुंचे और उसे आगे पढ़ने के लिए न सिर्फ़ प्रेरित किया, बल्कि अपने खर्चे पर उसका दाख़िला भी कराया. आज रूक़ैय्या 10वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास कर चुकी है.

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बिजनौर की रहने वाली सानिया का परिवार जब दिल्ली स्थानांतरित हुआ तो उसकी पढ़ाई छूट गई. सानिया तब 8वीं क्लास में थी. आज सानिया ‘पहचान’ की वजह से 10वीं क्लास सेकंड डिवीज़न से पास कर चुकी है. आलिया की भी कहानी सानिया की तरह ही है. उसने भी 10वीं की परीक्षा इस साल फर्स्ट डिवीज़न से पास कर लिया है.

मुबीना खातून के पिता की मृत्यु 10 साल पहले ही हो गई थी. मुबीना और उसकी बहन घर पर ‘अड्डा’ का काम करते थे और अपने परिवार का गुज़ारा करते थे. इस दौरान उन्हें ‘पहचान’ के बारे मालूम हुआ. वह ‘पहचान’ के प्रशिक्षण केंद्र ओअर सिलाई सिखने के लिए आने लगीं. ‘पहचान’ के शिक्षकों ने उन्हें पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया. मुबीना की मेहनत रंग लाई. उसने 10वीं करने के बाद कॉल सेंटर में जॉब की और 10000 रुपए प्रति माह कमाना शुरू किया. अब वह पढ़ाई के साथ नौकरी भी करती है और 13000 रूपए प्रति माह कमाती है. इस साल उसने अपनी बारहवीं कक्षा की पढाई पूरी कर ली है और वह ‘पहचान’ में रात को पढ़ने आती है.

फरहा नाज़ को 5वीं के बाद स्कूल से बाहर निकाल दिया गया था. फिर वो 2011 में ‘पहचान’ परिवार का हिस्सा बनीं. ‘पहचान’ ने उसे आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया. उसके बाद उसने पहचान से 12वीं कक्षा फर्स्ट डिसीजन से पास की. इसके बाद उसने टीचर ट्रेनिंग कोर्स किया, जो कि इस साल पूरा हो गया और इस साल वह ग्रेजुएशन के तीसरे साल में आ जाएगी.

रूक़ैय्या, सानिया, फरहा व मुबीना की तरह कई मुस्लिम लड़कियां जो हाईस्कूल या इंटरमीडिएट तक पहुंचते-पहुंचते स्कूल-कॉलेज छोड़ने पर मजबूर हो जाती हैं, उन्हें दिल्ली की सामाजिक संगठन ‘पहचान’ ने एक नई पहचान दिलाई है.

दरअसल, ‘पहचान’ नाम का यह संगठन 2011 से दिल्ली के जैतपुर इलाक़े में अपना काम कर रहा है. इस साल ‘पहचान’ ने निजामुदीन में भी क्लास चलाने शुरू किए हैं, ताकि निज़ामुद्दीन बस्ती और सराय काले खां में रहने वाली लड़कियों को भी पढ़ाई से जोड़ा जा सके.

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बताते चलें कि जैतपुर एक्सटेंशन ओखला के पास एक पुनर्वास कॉलोनी है, जहां 90 फीसदी से अधिक आबादी ग़रीब लोगों की है. यहां के अधिकांश लोग दिहाड़ी मजदूर हैं और लगभग प्रत्येक घर में अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ने वाली लड़कियां हैं. अधिकांश लोगों के माता-पिता, उन्हें शिक्षा दिलवाने में असमर्थ हैं, क्योंकि वो स्कूली क्षेत्र से दूर रहते है.

‘पहचान’ की डायरेक्टर फ़रीदा खान बताती हैं, ”पहचान’ का आईडिया तो काफी पहले आ गया था. 2010 में जैतपुर में ‘पहचान’ ने अपना पहला सेन्टर खोला. शुरू के दिनों में काफी संघर्ष करना पड़ा. घर-घर जाकर बच्चियों के मां-बाप को समझाना पड़ा कि वे अपनी बच्चियों को सेन्टर में भेजें. तब से अब तक लगातार गरीब बेसहारा बच्चियों को अलग-अलग क्षेत्र में निपुण बनाने के लिए उन्हें ट्रेनिंग दी जा रही है, ताकि ये लड़कियां आत्मनिर्भर बनें.’

फरीदा खान बताती हैं, ‘2015 में पहचान दिल्ली के जैतपुर में लगातार चार साल काम करने के बाद 30 अप्रैल, 2015 को एक रजिस्टर्ड संस्था बनी.

पिछले पांच सालों में लगभग 30 से अधिक लड़कियों ने ‘पहचान’ के अध्ययन केंद्र से हाईस्कूल और 12वीं की परीक्षाएं पास की है. ‘पहचान’ शिक्षा प्रदान करने के अलावा लड़कियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण भी प्रदान करता है. 2015 से ‘पहचान’ एक पंजीकृत ट्रस्ट है. इसके 7 ट्रस्टियों में इक़बाल अहमद, कौसर विज़ारत, चयनिका उनियाल, फ़रीदा खान, प्रताप सिंह नेगी, शबनम हाशमी और मोहम्मद एहतशाम के नाम शामिल है.