अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
दिल्ली: राजस्थान के शिक्षा विभाग द्वारा किए गये स्टाफिंग पैटर्न में उर्दू तालीम के साथ सरकारी स्तर पर किए गए भेदभाव को लेकर यहां के शिक्षक गुस्से में हैं. राजस्थान के उर्दू शिक्षकों का गुस्सा बहुत जल्द आन्दोलन का रूप लेने जा रहा है.
बताते चलें कि बीते दिनों राजस्थान सरकार ने 42 उर्दू टीचरों से कहा है कि वे संस्कृत पढ़ाएं. इसके लिए सरकार के सेकेंड्री एजुकेशन विभाग ने 42 उर्दू टीचरों का संस्कृत स्कूलों में तबादला भी कर दिया था. इस वजह से यहां के उर्दू शिक्षकों में खासा रोष व्याप्त है.
आन्दोलन का बिगुल बजाते हुए यहां के उर्दू शिक्षक आगामी 20 जून यानी सोमवार को सुबह 10:00 बजे राजस्थान के मुख्यमंत्री, शिक्षा मंक्षी, कैबिनेट मंत्री यूनुस खान आदि से मिलकर अपनी मांगे रखेंगे. यदि इनकी मांगे नहीं मानी गई तो जल्द ही यह शिक्षक राजस्थान के सड़कों पर उतरेंगे.
राजस्थान उर्दू शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष अमीन क़ायमखानी ने TwoCircles.net से बताया, ‘शिक्षा का अधिकार (RTE) कानून में यह प्रावधान है कि भाषायी अल्पसंख्यकों के बच्चों को प्राईमरी शिक्षा उनकी मातृभाषा में दिया जाए. भारतीय संविधान का अनुच्छेद-350ए में भी यही अधिकार दिए गए हैं. लेकिन राजस्थान सरकार एक साज़िश के तहत यहां उर्दू को ख़त्म करके मुसलमानों से उनका संवैधानिक अधिकार को छीनना चाह रही है.’
वे बताते हैं, ‘शिक्षा विभाग के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में किसी भी एक क्लास में 10 विद्यार्थी या पूरे स्कूल में 40 विद्यार्थी यदि अल्पसंख्यक भाषा पढ़ने के इच्छुक हैं तो उसके लिए सरकार को शिक्षकों की व्यवस्था करनी होगी. इसी तरह माध्यमिक स्तर के लिए भी किसी क्लास में 15 विद्यार्थी या पूरे स्कूल में 60 विद्यार्थी उपलब्ध हैं तो संबंधित अल्पसंख्यक भाषा को पढ़ाने की व्यवस्था कराए जाने का प्रावधान है.’
स्पष्ट रहे कि राजस्थान में उर्दू, सिंधी, पंजाबी व गुजराती भाषाओं को अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा हासिल है.
अमीन क़ायमखानी बताते हैं, ‘पूरे राजस्थान में तक़रीबन दो हज़ार तृतीय श्रेणी के उर्दू शिक्षक विभिन्न प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में नियुक्त हैं, लेकिन अभी हाल में ही सम्पन्न होने जा रहे स्टाफिंग पैटर्न में प्राथमिक स्कूलों में उर्दू शिक्षकों के पदों का आवंटन ही नहीं किया गया है. इससे उर्दू शिक्षकों का भविष्य खतरे में दिखाई दे रहा है.’
वे यह भी बताते हैं कि उर्दू को ख़त्म करने की सरकारी मंशा का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1997 के बाद से राजस्थान सरकार ने उर्दू माध्यम की किताबों को ही प्रकाशित करना बंद कर दिया है.
बकौल कायमखानी, पूरे राजस्थान में 32 स्कूल पूरी तरह से उर्दू माध्यम के हैं, जिनमें से 13 तो राजधानी जयपुर में हैं. लेकिन सरकार इसे प्राथमिक स्तर पर ही पूरी तरह से ख़त्म करने की तैयारी में है. वे कहते हैं, ‘इसे हम कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे.’