जावेद अनीस
हाल के दिनों में गौरक्षा के नाम पर दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमले और उन्हें आतंकित के मामले बढ़े हैं. इसी कड़ी में पिछले दिनों मध्यप्रदेश के मंदसौर रेलवे स्टेशन पर गौरक्षकों की बेलगाम गुंडई एक बार फिर देखने को मिली, जहां गोमांस ले जाने के आरोप में दो मुस्लिम महिलाओं को सरेआम पीटा गया. इस दौरान पब्लिक और पुलिस प्रशासन के लोग तमाशाई बने रहे. बाद में हुई जांच में पाया गया कि इन महिलाओं से बरामद किया मांस गोमांस नहीं बल्कि भैंस का गोश्त था. कैमरे में कैद हुई इस घटना में साफ़ देखा जा सकता है कि जब इन दोनों महिलाओं को पीटा जा रहा था तो वहां पुलिस मौजूद थी लेकिन उनकी तरफ से इसे रोकने का गंभीर प्रयास नहीं किया गया. उलट इन महिलाओं के खिलाफ मामला दर्ज करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. मध्यप्रदेश के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह का पूरा जोर इस घटना को ‘छोटी-मोटी धक्का-मुक्की’ साबित करने पर रहा. उनके अनुसार यह एक ‘स्वाभाविक जनाक्रोश’ था और इसे जानबूझकर नहीं किया गया था. मंदसौर से भाजपा विधायक यशपाल सिसोदिया ने तो और आगे बढ़ते हुए इसे क्रिया की प्रतिक्रिया बता डाला.
मध्यप्रदेश में मंदसौर जैसी घटनायें नयी नहीं हैं. यहां इस तरह की घटनाएं होती रही हैं. सुरेन्द्र सिंह राजपुरोहित जैसे लोग अपनी ‘गौरक्षा कमांडो फोर्स’ के माध्यम से आतंक का साम्राज्य चलाते रहे है. लेकिन स्थानीय मीडिया और विपक्षी पार्टियां इनको लेकर उदासीन बनी रहती है. मंदसौर की घटना भी मायावती द्वारा राज्यसभा में उठाये जाने के बाद ही चर्चा में आ सकी.
13 जनवरी 2016 को खिरकिया रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में एक मुस्लिम दंपति के साथ इसलिए मारपीट की गयी थी क्योंकि उनके बैग में बीफ होने का शक था. मोहम्मद हुसैन अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद से अपने घर हरदा लौट रहे थे. इस दौरान खिरकिया स्टेशन पर गौरक्षा समिति के कार्यकर्ताओं ने उनके बैग में गोमांस बताकर जांच करने लगे. विरोध करने पर इस दम्पति के साथ मारपीट शुरू कर दी गयी. इस दौरान दम्पति ने खिरकिया में अपने कुछ जानने वालों को फ़ोन कर दिया और वे लोग स्टे.शन पर आ गये और उन्हें बचाया. इस तरह से कुशीनगर एक्सप्रेस की जनरल बोगी में एक बड़ी वारदात होते–होते रह गयी. खिरकिया में ही इससे पहले 19 सितम्बर 2013 को गौ हत्या के नाम पर दंगा हुआ हो चुका है, जिसमें करीब 30 मुस्लिम परिवारों के घरों और सम्पतियों को आग के हवाले कर दिया गया था. कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे, बाद में पता चला था कि जिस गाय के मरने के बाद यह दंगे हुए थे उसकी मौत पॉलिथीन खाने से हुई थी. इस मामले में मुख्य आरोपी गौरक्षा समिति का सुरेन्द्र राजपूत था. यह सब करने के बावजूद सुरेन्द्र सिंह राजपूत कितना बैखौफ है इसका अंदाज उस ऑडियो को सुन कर लगाया जा सकता है जिसमें उसने हरदा के एसपी को फ़ोन पर धमकी देकर कहा था कि अगर मोहम्मद हुसैन दम्पति से मारपीट के मामले में उसके संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं पर से केस वापस नहीं लिया गया तो खिरकिया में 2013 को एक बार फिर दोहराया जाएगा.
सूबे में ईसाई समुदाय भी लगातार निशाने पर रहा है, जहां धर्मांतरण का आरोप लगाकर उन्हें प्रताड़ित किया जाता हैं. सबसे ताज़ा मामला रीवा जिले के मऊगंज का हैं जहां बीते जुलाई माह में बजरंग दल के कुछ कार्यकर्ता ईसाई समाज के एक पास्टर और उनके एक साथी पर धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाते हुए उन्हें जबरदस्ती पास के जंगल में ले गए और वहां उनके साथ बुरी तरह से मारपीट करने के बाद वहीँ पेड़ पर बांध कर चले आये. बाद में उन्हें पुलिस वहां से वापस लायी. इसी तरह की एक और घटना बीते 14 जनवरी की है, जिसमें धार जिले के देहर गांव में धर्मांतरण के आरोप में एक दर्जन ईसाई समुदाय के लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था. गिरफ्तार किये गये लोगों में नेत्रहीन दंपति भी शामिल थे. इन आरोपियों का कहना था कि उन्होंने किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करवाया, उन पर यह कार्रवाई हिन्दुत्ववादी संगठनों के इशारे पर की गयी है. उनका यह भी आरोप था कि पुलिस द्वारा उनके घर में घुसकर तोड़फोड़ और महिलाओं के साथ बदसलूकी की गयी.
दरअसल मध्यप्रदेश में धर्मांतरण के नाम पर ईसाई समुदाय लगातार निशाने पर रहा है. वर्ष 2013 में राज्य सरकार द्वारा धर्मांतरण के खिलाफ क़ानून में संशोधन कर उसे और ज्यादा सख़्त बना दिया गया था, जिसके बाद अगर कोई नागरिक अपना मजहब बदलना चाहे तो इसके लिए उसे सबसे पहले जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी. यदि धर्मांतरण करने वाला या कराने वाला ऐसा नहीं करता है तो वह दंड का भागीदार होगा. संशोधन के बाद ‘जबरन धर्म परिवर्तन’ पर जुर्माने की रकम दस गुना तक बढ़ा दी गई है और कारावास की अवधि भी एक से बढ़ाकर चार साल तक कर दी गई है. हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा ईसाई समुदाय पर धर्मांतरण का आरोप लगाकर प्रताड़ित किया जाता रहा है, अब कानून में परिवर्तन के बाद से उनके लिए यह और आसान हो गया है. इन सबके खिलाफ ईसाई समुदाय के तरफ से आवाज भी उठायी जाती रही है, आर्कबिशप लियो कॉरनेलियो कह चुके हैं कि है कि मध्य प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून का गलत इस्तेेमाल हो रहा है और ईसाईयों के खिलाफ जबरन धर्मांतरण के फर्जी केस थोपे जा रहे हैं.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले ही अपने आप को नरमपंथी दिखाने का मौका ना चूकते हों लेकिन उनके राज में जिस तरह से अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है, उसे नजरअंदाज नहीं किया सकता है. मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान दावा करते हैं कि जबसे उन्होंने मुख्यमंत्री का पद संभाला है तबसे मध्यप्रदेश की धरती पर एक भी दंगा भी नहीं हुआ. लेकिन आंकड़े कुछ और ही बयान करते हैं. वर्ष 2012 और 2013 में दंगों के मामले में मप्र का तीसरा स्थान रहा है. जबकि 2014 में पांचवे स्थान पर था. इसी तरह से साल 2015 में जनवरी से दिसंबर के बीच करीब 41 सांप्रदायिक दंगे और तनाव की घटनाएं हुई हैं.
इन सबके बीच मध्यप्रदेश में ‘गाय’ और ‘धर्मांतरण’ ऐसे हथियार है, जिनके सहारे मुस्लिम और ईसाई अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना बहुत आसान और आम हो गया है. हिन्दुत्ववादी संगठन इनका भरपूर फायदा उठा रहे हैं, जिसमें उन्हें सरकार और प्रशासन में बैठे लोगों का शह भी प्राप्त है. ऐसे में इन घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो ऐसी उम्मीद कैसे की जाए?
[जावेद अनीस स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं. भोपाल में रहते हैं. उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.]