सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
वाराणसी: बिहार के बाद एकतरफ जहां यूपी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र ‘महागठबंधन’ तैयार होता दिख रहा है, वहीँ पिछली बार की तरह ही इस बार भी इस गठबंधन में सपा की सहभागिता फिर से सवालों के घेरे में है.
बीते दिनों लखनऊ में जब सभी सोशलिस्ट पार्टियों के नेता लखनऊ में एक मंच पर मौजूद दिखे तो महागठबंधन के फिर से गठन की चर्चा ने ज़ोर पकड़ लिया. लेकिन दो दिनों पहले गठबंधन के खिलाफ बयान देकर मुलायम सिंह यादव ने फिर से एक संभावना को खतरे में डाल दिया है.
मीडिया में बयान देते हुए सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा, ‘हम कोई गठबंधन नहीं करेंगे, कोई पार्टी में विलय करना चाहे तो हम तैयार हैं.’ इस बयान के बाद पार्टी में यह चर्चा आम हो गयी हैं कि गठबंधन के सफल होने में मुलायम और अखिलेश के बीच की रस्साकशी रास्ते का रोड़ा है. क्योंकि इसके पहले अखिलेश यादव ने खुले मंचों से साफ़तौर पर कहा है कि सपा और कांग्रेस मुश्किल समय में एक-दूसरे के साथ हमेशा खड़ी होती हैं.
कांग्रेस के लिए चुनाव मैनेजमेंट का काम सम्हाल रहे प्रशांत किशोर कुछ दिनों पहले तक समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेतृत्त्व के साथ बैठकें कर रहे थे. सूत्रों के हवाले से आ रही खबर को मानें तो प्रशांत किशोर ने सपा के सामने 143 विधानसभा सीटों का खाक़ा पेश किया, और शेष सीटों के आधार पर कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन की संभावना को भी तलाशा गया. लेकिन अभी तक इस संभावना पर कोई भी मुहर नहीं लगाई जा सकी है.
शराबबंदी पर नीतीश की दूरी
बिहार चुनाव जीतने के बाद से नीतिश कुमार खासे उत्साहित थे. चुनाव जीतने के कुछ दिनों बाद ही नीतिश कुमार ने नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस का पहला दौरा कर डाला. कांग्रेस से उनकी पुरानी दोस्ती रही. लेकिन यूपी में भाजपा के खिलाफ लामबंदी करने के लिए नीतिश कुमार ने शर्त रख दी कि जब तक समाजवादी पार्टी यूपी में शराबबंदी का ऐलान नहीं करती है, तब तक सपा के साथ गठबंधन की संभावना पर कोई विचार नहीं किया जा सकेगा.
शराबबंदी एक प्रमुख कारण था, जिसकी वजह से नीतिश कुमार को बिहार में आम जनता के साथ-साथ महिलाओं का साथ भी मिला था. लेकिन अभी जब यूपी में फिर से महागठबंधन की संभावनाएं सामने आ रही हैं, ऐसे में दो बातें हर हाल में देखने को मिल रही हैं. एक, कि नीतिश कुमार अब महागठबंधन की बहसों से दूर हैं, भले ही उनके सहयोगी लालू यादव शामिल हों. और दो, कि नीतिश कुमार ने हाल के दिनों मने शराबबंदी का राग भी अलापना बंद कर दिया है.
आगामी चुनाव के मद्देनज़र अखिलेश यादव फिर से शराब का दाम कम करने की तैयारी में हैं, लेकिन महागठबंधन की सफलता में नीतिश कुमार फिर से कमजोर नज़र आ रहे हैं. ऐसे में यह देखने की बात होगी कि क्या पिता-पुत्र के बीच की वैचारिक दूरी शराब, नीतिश और महागठबंधन को एक साथ साध पाएगी.