सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net
मीरजापुर : मीरजापुर की दो प्रमुख विधानसभा सीटों का हाल पढ़ चुके हैं. एक तीसरी विधानसभा सीट इसी कड़ी में आती है, मीरजापुर शहर. कम जगह में फैला हुआ ये विधानसभा क्षेत्र लगभग हर दृष्टिकोण से भरा-पूरा है. बाज़ार हैं, कॉलेज है, कचहरी और तमाम ज़रूरी चीज़ें हैं.
विधानसभा चुनावों की दृष्टि से देखें तो ये सीट भाजपा के लिए सबसे ज़रूरी है. भाजपा मीरजापुर मंडल की इस सीट को जीतने में बेहद रूचि रखती है, लेकिन रोचक बात तो यह है कि भाजपा इस मंडल की एक अन्य सीट, चुनार पर बढ़त बनाने की ओर है, पर इस सीट नहीं. बीते दो चुनावों से इस सीट पर सपा बनाम बसपा की लड़ाई चली आ रही है. सपा के कैलाशनाथ चौरसिया तीन बार से विधायक हैं. और भाजपा ने आखिरी बार यह सीट 1996 में जीती थी.
इस सीट पर भाजपा ने विन्ध्याचल के निवासी रत्नाकर मिश्रा को टिकट दिया है. सपा ने अपना टिकट कैलाशनाथ चौरसिया पर बरकरार रखा है.
रत्नाकर मिश्रा को टिकट मिलने के पीछे के कारण बहुत सारे हैं. पहले तो यही कारण है कि रत्नाकर मिश्रा विन्ध्याचल मंदिर से जुड़े परिचित पंडा परिवार से जुड़े हुए हैं. अकेले विन्ध्याचल में उनके पांच होटल हैं, और इसके साथ उनके पास एक देसी शराब का ठेका भी है. इलाके में यह अफवाह आम है कि रत्नाकर मिश्रा को टिकट पैसों के बदले दिया गया है, लेकिन उनके समर्थक और पार्टी से जुड़े कार्यकर्ता इस बात को सिरे नकार जाते हैं. यह भी एक कारण है कि रत्नाकर मिश्रा को टिकट इसलिए दिया गया है क्योंकि वे लम्बे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं, लेकिन बात यह भी है कि यदि टिकट बंटवारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इतनी चलती तो इतने नामालूम व्यक्ति को टिकट न दिया जाता. आखिर में जो सबसे मजबूत कारण सामने आता है, वह ये कि भाजपा द्वारा रत्नाकर मिश्रा को टिकट दिया जाना उनके रुबाब, संघ से जुड़ाव और एक हद तक रसूखदार होने से जुड़ा हुआ है.
विन्ध्याचल में जनरल स्टोर चलाने वाले धीरज जायसवाल बताते हैं, ‘पहले रंगनाथ मिश्रा विधायकी लड़ते थे तो हम जानते थे कि जिले का बड़ा नेता है, जिले का क्या, प्रदेश का भी बड़ा नेता है. लेकिन अभी रत्नाकर मिश्रा खड़े हैं तो समझ में ही नहीं आ रहा है कि टिकट काहे दिए. हम लोग तो इनको सीधे तरीके से जानते ही नहीं हैं. जो तरीका जानते हैं, वो बताकर हम समस्या मोल नहीं लेना चाहते.’
न बताकर धीरज जायसवाल लगभग बात को साफ़ कर देते हैं लेकिन मौलिक और लिख सकने लायक स्थिति में आने के लिए हम आगे चाय की दुकान पर मिले राजू सिंह पटेल से बात करते हैं. 35 वर्षीय राजू सिंह पटेल बताते हैं, ‘रत्नाकर मिश्रा का ज्यादातर मामला भौकाली है. कलफदार कुर्त्ता पहनकर उनका घूमना रहता है, लगभग दबंग के तरह. यही सब वजह से लोग उनको ज्यादा पसंद नहीं करते हैं.’
विन्ध्याचल और मीरजापुर शहर के बीच की दूरी 5 किलोमीटर के आसपास है. लेकिन भाजपा के घोषित प्रत्याशी को भी मीरजापुर शहर के लोगों ने इक्का-दुक्का बार ही देखा है. मीरजापुर शहर के लोगों की मानें तो मौजूदा विधानसभा चुनावों में रत्नाकर मिश्रा को कोई नहीं जानता. अनुप्रिया पटेल यहां से सांसद हैं. ऐसे में भाजपा और सहयोगी दलों में से कोई भाजपा के प्रत्याशी के लिए वोट नहीं मांग पा रहे हैं.
83 वर्षीय तीरथराज शुक्ला, जिन्होंने मीरजापुर की राजनीति को बेहद करीब से देखा है, कहते हैं, ‘रत्नाकर मिश्रा को टिकट क्यों मिला है, आप इलाके में घूमकर पूछ लीजिए. उनका पूरा आभामंडल भी यहां का ब्राह्मण वोट उनको नहीं दिला पाएगा.’
सही भी है. विन्ध्याचल में ब्राह्मण वोट बहुतायत में है. यहां का हिसाब लोकसभा चुनावों के दौरान ऐसा रहा है कि ब्राह्मण के साथ-साथ बनिया समुदाय का वोट भी ब्राह्मण प्रत्याशी के लिए जाता रहा है. लेकिन इस बार बनिया समुदाय का वोट भी सपा प्रत्याशी कैलाशनाथ चौरसिया की ओर जा रहा है. ऊपर बात कर रहे धीरज जायसवाल कहते हैं, ‘हम खुद अनुप्रिया जी को वोट किए थे क्योंकि यहां बहुत हल्ला था कि मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने से बहुत फायदा होगा. लेकिन ऐसा होता तो दिख नहीं रहा है. इसलिए इस बार हम लोगों का वोट कैलाश जी को जाएगा.’
कैलाशनाथ चौरसिया लम्बे समय से विधायक हैं और कम से कम मीरजापुर शहर में उनके कराए कुछ काम दिख जाते हैं. सड़कें फिर भी बदहाल हैं, लोग कहते हैं कि बिजली भी बहुत मजबूत नहीं है. लेकिन वोटरों को इस बात से ज्यादा संतुष्टि है कि कैलाशनाथ चौरसिया अक्सर लोगों के बीच मिल जाते हैं और लोगों को वोट करने के लिए इससे बड़ा कोई आधार नहीं चाहिए. चूंकि कैलाशनाथ चौरसिया बेसिक शिक्षा और बाल विकास एवं पुष्टाहार मंत्री के पद पर राज्यमंत्री पद को भी पोस चुके हैं और लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के खिलाफ बनारस से चुनाव लड़कर अपना कद ऊंचा कर चुके हैं, इसलिए उन्हें और भी मजबूती हासिल हुई है.
कैलाशनाथ चौरसिया का विवादों से भी नाता रहा है. आरटीओ से बदसलूकी से लेकर डीडीओ से वसूली करने तक उनका नाम सुर्ख़ियों में मौजूद रहा है लेकिन वे अखिलेश यादव के फिर भी करीबी हैं, इसलिए उम्मीदवार भी हैं.
बसपा ने इस बार नए प्रत्याशी के रूप में मोहम्मद परवेज़ खान को उतारा है. परवेज़ खान का मीरजापुर से कोई सीधा रिश्ता नहीं रहा है, वे पास के जिले भदोही केरहवासी हैं. और उनका कालीन का काम है. मीरजापुर से उनका सम्बन्ध बस इतना है कि उनके फर्म नेमन कारपेट्स का दफ्तर मीरजापुर में भी है. दुर्भाग्यपूर्ण रूप से उन्हें इलाके में कोई नहीं जानता है. ज़मीन पर उनका कोई जनसंपर्क भी नहीं दिखता है. मीरजापुर के मुस्लिमबहुल इलाकों में भी उनके नामलेवा कम हैं. 24 वर्षीय मोहम्मद इलियास बताते हैं, ‘हम लोग तो साइकिल पर कैलाशनाथ का और भाजपा में कोई मिश्रा जी हैं, उनका नाम ही सुन रहे हैं. बाकी कोई आया है कि नहीं अभी समझ नहीं आ रहा है.’ लेकिन मीरजापुर के बाहरी हिस्सों में मौजूद लोग मोहम्मद परवेज़ खान को जानते हैं, चुनाव आते-आते हो सकता है कि इस जान-पहचान में थोड़ा इजाफा हो.
बीते विधानसभा चुनावों में कैलाश नाथ चौरसिया ने 69,099 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी, जबकि मीरजापुर के ही साथ-साथ प्रदेश की राजनीति में जाने-पहचाने नाम रंगनाथ मिश्रा बसपा के टिकट पर 46,800 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे. 2014 में लोकसभा चुनावों के बाद रंगनाथ मिश्रा ने भाजपा का दामन थाम लिया और अब फिर से बसपा में हैं. इस बार वे भदोही से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.