TwoCircles.net Staff Reporter
नई दिल्ली : बाबरी मस्जिद विध्वंस के 25 साल पुराने मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि, ‘विवादित बाबरी मस्जिद को तोड़ने की साज़िश के आरोप में 13 भाजपा व वीएचपी नेताओं पर मुक़दमा चलेगा.’ इन 13 भाजपा व वीएचपी नेताओं में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, विनय कटियार और केंद्रीय मंत्री उमा भारती शामिल हैं. ये फैसला न्यायाधीश पीसी घोष और न्यायाधीश रोहिंटन नरीमन की संयुक्त पीठ ने सीबीआई की अपील पर सुनाया है.
बताते चलें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 20 मई 2010 को भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी (आपराधिक साजिश) हटा दिया था. इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा नेताओं के खिलाफ़ साज़िश के आरोपों को खारिज करने के बाद सीबीआई ने शीर्ष अदालत का दरवाज़ा खटखटाया और कोर्ट में कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के साजिश की धारा को हटाने के फैसले को रद्द करते हुए बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत 13 नेताओं के खिलाफ़ आपराधिक साज़िश का ट्रायल चलना चाहिए. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने 7 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था.
यहां यह भी स्पष्ट रहे कि सीबीआई की ओर से पेश वकील नीरज किशन कौल ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि रायबरेली की कोर्ट में चल रहे मामले को भी लखनऊ की स्पेशल कोर्ट में ट्रांसफर कर ज्वाइंट ट्रायल होना चाहिए. 6 अप्रैल को इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश नरीमन ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मामले के कई आरोपी पहले ही मर चुके हैं और ऐसे ही देरी होती रही तो कुछ और कम हो जाएंगे. इस दौरान आडवाणी के वकील के के वेणुगोपाल ने मुक़दमा ट्रांसफर करने का पुरजोर विरोध किया था. उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ऐसे केस ट्रांसफर नहीं कर सकती है. रायबरेली में मजिस्ट्रेट कोर्ट है, जबकि लखनऊ में सेशन कोर्ट इस मामले को सुन रहा है.
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई के दौरान के कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करके रायबरेली में चल रहे मामले को लखनऊ की विशेष अदालत में ट्रांसफर कर सकती है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पहले ही काफी देरी हो चुकी है. लिहाजा वह यह सुनिश्चित करेगी कि इस मामले की सुनवाई अगले 2 साल में पूरी हो और प्रतिदिन इसकी सुनवाई हो.
गौरतलब रहे कि साल 1992 में बाबरी मस्जिद गिराने को लेकर दो मामले दर्ज किये गये थे. एक मामला (केस नंबर 197) कारसेवकों के खिलाफ़ था और दूसरा (केस नंबर 198) मंच पर मौजूद नेताओं के खिलाफ़. केस नंबर 197 के लिए हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से इजाज़त लेकर ट्रायल के लिए लखनऊ में दो स्पेशल कोर्ट का गठन किया गया, जबकि 198 का मामला रायबरेली में चलाया गया. केस नंबर 197 की जांच का काम सीबीआइ को सौंपा गया और 198 की जांच यूपी सीआइडी ने की थी. केस नंबर 198 के तहत रायबरेली में चल रहे मामले में नेताओं पर धारा 120बी नहीं लगायी गयी थी. बाद में आपराधिक साज़िश की धारा जोड़ने की कोर्ट में अर्जी लगायी, तो कोर्ट ने इसकी इजाज़त दे दी.