शाहनवाज़ मलिक व अफ़रोज़ आलम साहिल
20 अप्रैल की सुबह एक बार फिर क्राइम रिपोर्टरों की मानों लॉटरी निकल आई थी. वजह यूपी पुलिस के एंटी टेररिज़्म स्क्वायड समेत पांच राज्यों की पुलिस के संयुक्त ऑपरेशन में एक ‘टेरर मॉड्यूल’ का ख़ुलासा थी. यह ख़बर ब्रेक की थी न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने, जिसके फ़ौरन बाद टीवी के क्राइम रिपोर्टर ‘देश में फैले आतंकी नेटवर्क’ पर कथा-कीर्तन करते हुए स्क्रीन पर देखे गए. क्राइम रिपोर्टर के लिए इस तरह के ऑपरेशन ‘मौक़े’ होते हैं, जहां वो बेहतरीन करतब दिखाते हुए संपादक की नज़र में अपने प्वाइंट्स बनाते हैं.
क्राइम रिपोर्टर जो ख़ुद को हमेशा ओवरलोडेड मोड में पेश करते हैं, उन्हें भनक तक नहीं होती कि हमारी पुलिस फिलहाल किस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है. वो हरकत में तब आते हैं, जब एजेंसियां ख़ुद इसका ख़ुलासा करती हैं. ऑपरेशन के बारे में उन्हें उतना ही पता चल पाता है जितना कि पुलिस उन तक पहुंचाना चाहती है. अफ़सरों के इस ‘एहसान’ पर क्राइम रिपोर्टर इस हद तक दबाव होता है कि वो कभी उसके दावों पर सवाल खड़ा नहीं करता. वो इतने में ही ख़ुश रहता है कि अफ़सर उसे ख़ुद इनपुट वॉट्सएप करता है.
संजीदा पत्रकार जो इस बीट पर काम करते हैं, अक्सर उनकी रिपोर्ट्स से पुलिस की कहानी शक़ के दायरे में आ पाती है. रूटीन क्राइम रिपोर्टर ये काम नहीं करते. अंग्रेज़ी चैनल टाइम्स नाऊ ने यूपी एटीएस के ऑपरेशन पर महज़ दो घंटे बाद फोन-लाइन पर रक्षा विशेषज्ञ को जोड़ लिया था, जहां इस ऑपरेशन पर अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट के रेटरिक्स दोहराए जा रहे थे. कवरेज के नाम पर दहशत क्रिएट करने की वही कोशिश हुई जो हमेशा की जाती रही है. संजीदा पत्रकार टेरर ऑपरेशन पर किसी भी न्यूज़ चैनल के एंकर के सवाल और रिपोर्टर के जवाब सुनने पर अपना सिर ज़रूर दीवार पर मारने की कोशिश करते होंगे.
हालांकि इसमें अनोखी बात कुछ नहीं है. हम आदी हैं न्यूज़ चैनलों की स्क्रीन पर ऐसे तमाशे देखने के. आम लोगों को मूर्ख बनाने के लिए ऐसी कवरेज डोज़ का काम करती हैं. 2014 के बाद से यह डोज़ बढ़ाई जा रही है. जो मूर्ख नहीं बनना चाहते, न्यूज़ एंकरों और क्राइम रिपोर्टरों के एक-एक शब्द अब कोड़े की तरह उनकी पीठ पर पड़ते हैं.
20 अप्रैल को हुए ऑपरेशन की कवरेज क्या बताती है? यही कि यूपी एटीएस के अफ़सरों ने जो बयान जारी किया, क्राइम रिपोर्टरों ने उसे कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया. एजेंसी ने किसी भी बयान में पकड़े गए लड़कों का संबंध किसी आतंकी संगठन से नहीं जोड़ा, लेकिन क्राइम रिपोर्टर उन्हें इस्लामिक स्टेट और खुरासान मॉड्यूल का आतंकी बताते रहे. यूपी पुलिस ने चार लोगों को गिरफ़्तार करने के अलावा छह लड़कों को हिरासत में लिया था और जिन्हें अगले दिन पूछताछ के बाद रिहा कर दिया था, लेकिन प्रभात ख़बर अख़बार ने 10 आतंकवादी गिरफ़्तार होने की हेडिंग लगाई. सभी टीवी चैनल, अख़बार और वेबसाइट्स ने उन्हें संदिग्ध आतंकवादी क़रार दिया.
शायद ऐसा भी पहली बार हुआ जब पुलिस के इस ऑपरेशन पर सवाल उठाती ख़बरें पूरी तरह ग़ायब रहीं. किसी भी क्राइम रिपोर्टर ने दूसरे पक्ष को अपनी रिपोर्ट में शामिल नहीं किया. जिनकी इक्का-दुक्का रिपोर्टों में आरोपियों के घर वालों के बयान है, उनमें सवाल जैसा कुछ नहीं है. आरोपियों के बारे में महज़ सूचनाएं हैं. इंडियन एक्सप्रेस अख़बार जो हमेशा ऐसे मामलों में पड़ताल करती रिपोर्टों के लिए जाना जाता है, उसके लखनऊ ब्यूरो के रिपोर्टर मनीष साहू ने तीन दिन तक अपनी रिपोर्ट में सिर्फ एटीएस का बयान छापा. मसलन वो कहां-कहां धमाका करना चाहते थे, उनके निशाने पर कौन बड़ी हस्तियां थीं, उनकी क्या-क्या तैयारी हो चुकी थी. जैसे कि अदालत उन्हें दोषी क़रार दे चुकी है.
इस ऑपरेशन की कवरेज से पता चलता है कि क्राइम रिपोर्टर अब कामचोर, लापरवाह और पेशे के प्रति पूरी तरह ग़ैर-ज़िम्मेदार हो गए हैं, सांप्रदायिक तो वो हमेशा से रहे हैं. आतंक के आरोप में मुसलमान लड़कों के पकड़े जाने पर पड़ताल करती ख़बरें मीडिया के हर माध्यम से ग़ायब हैं. यूपी चुनाव के अंतिम चरण के मतदान के ठीक एक दिन पहले लखनऊ में जिस सैफ़ुल्लाह का एनकाउंटर हुआ, उस मामले में भी द हिंदू के क्राइम रिपोर्टर शुभोमोय सिकदर की एक रिपोर्ट के अलावा कुछ भी अलग पढ़ने को नहीं मिला. हर तरफ़ वही चल रहा था जो पुलिस चलवाना चाह रही थी. इस तरह की ख़बरें भी प्लांट की गईं कि सैफ़ुल्लाह के पिता ने अपने ‘आतंकी बेटे’ की लाश लेने से इनकार कर दिया था.
हाल ही में जब सरोजनी नगर धमाकों में दो कश्मीरी लड़कों को बाइज़्ज़त रिहा किया गया और फ़ैसले से यह पता चला कि उन्हें दिल्ली पुलिस ने ग़लत तरीक़े से फ्रेम किया गया था, तब भी किसी क्राइम रिपोर्टर ने पुलिस को परेशान करने वाली ख़बरें नहीं लिखीं. उलटा इस तरह की ख़बरें प्रसारित की गईं कि सबूतों के अभाव में वो बच निकले जबकि ऐसा कुछ नहीं था.
ऐसे में क्या यह ज़रूरी नहीं है कि जब मुस्लिम लड़कों को आतंक के आरोप में उठाए जाने के मामले में पुलिस की भूमिका और मंशा बार-बार सवालों के घेरे में आ रही है तो पड़ताल करती ख़बरों पर ज़ोर दिया जाना चाहिए और उनकी संख्या बढ़ाई जानी चाहिए? या हमे यह मान लेना चाहिए कि इस पेशे में अब रीढ़ वाले ऐसे क्राइम रिपोर्टर नहीं रहे जो पुलिस की पेशानी पर बल डालने वाली ख़बरें लिख सकें?
अभी कुछ साल पहले तक ऐसे हालत नहीं थे. अगर ख़बरें पुलिस के दावों पर लिखी जाती थीं तो उस पर सवाल उठाती हुई रिपोर्ट्स भी पढ़ने को मिलती थीं. मगर अब पड़ताल की बजाए ख़बरें प्लांट हो रही हैं. छह महीने से गायब जेएनयू छात्र नजीब अहमद के बारे में टाइम्स ऑफ इंडिया के क्राइम रिपोर्टर राजशेखर झा ने उसका संबंध इस्लामिक स्टेट से जोड़ने वाली ख़बर प्लांट करने की, लेकिन हंगामा होने पर दिल्ली पुलिस ने अगले दिन ख़ुद को उस रिपोर्ट से अलग कर लिया. नजीब मामले में कोई क्राइम रिपोर्टर उन कड़ियों को जोड़ती हुई रिपोर्ट लिखने में नाकाम रहा जो इस केस के सच के क़रीब पहुंचा सके. क्राइम रिपोर्टरों इतने गए-गुज़रे कभी नहीं थे.
बिहार से हुई गिरफ़्तारी पर वहां के अख़बारों की कवरेज
यूपी एटीएस के ऑपरेशन में एक गिरफ़्तारी पश्चिम चम्पारण के साठी के बेलवा गांव से हुई थी. इसके बाद से यहां के अख़बार कई दिन तक तरह-तरह की ख़बर क्रिएट करते रहे. बिहार के क्राइम रिपोर्टरों की कवरेज से ऐसा लगता है कि जैसे सबकुछ अदालत से साबित हो चुका है. क्राइम रिपोर्टर ही पुलिस हैं और उनके पास ही सारा सच है.
किसी ज़माने में अपने कंटेंट और विश्वसनीयता के लिए मशहूर रहे अख़बार प्रभात ख़बर ने आरोपी एहतशामुल हक़ की गिरफ़्तारी की ख़बर पर हेडिंग लगाई, ‘साठी से आतंकी गिरफ़्तार.’ ख़बर में लिखा है कि आइएसआइएस के आतंकी को यूपी एटीएस व बेतिया पुलिस ने संयुक्त रूप से छापेमारी कर गिरफ़्तार कर लिया और बार-बार लिखा गया है कि एहतशामुल हक़ के तार आइएसआइएस से जुड़े हैं.
इसी ख़बर में दावा किया गया है कि आरोपी की 24 अप्रैल को नरकटियागंज रेलवे जंक्शन को उड़ाने की योजना थी. उसने सभी तैयारी कर ली थी. विस्फोटक भी जुटा लिए थे. आतंकी के पास कई संदिग्ध इलेक्ट्रॉनिक सामान बरामद हुआ है. लेकिन साठी के थाना अध्यक्ष ने दावा किया कि एटीएस एहतशाम के घर से सिर्फ़ तीन मोबाईल, एक लैपटॉप और एक टैबलेट बरामद करके अपने साथ ले गई है. विस्फोटक जैसा कुछ नहीं मिला है.
अंदर के पेज़ 5 पर स्टोरी इस हेडिंग के साथ है, ‘कहीं बेतिया में आइएसआइएस माड्यूल तो नहीं!’ इस ख़बर में आरोपी की मां व उसके भाई और एक छोटी-सी बच्ची की तस्वीर छापी गई है और कैप्शन है, ‘आतंकी की मां व अन्य परिजन’
दूसरी तस्वीर का कैप्शन है —‘बंद कमरे में पूछताछ करती एटीएस की टीम’ मगर रिपोर्टर जिस तस्वीर को बंद कमरा बता रहा था, वह थाने का बरामदे है, जहां लोग बैठकर आपस में बातचीत करते हैं. इस ख़बर के मास्ट-हेड में दहशत शब्द को लाल रंग में छापा गया है और आगे लिखा गया है कि देश के बड़े शहरों की जगह अब गांवों में भी आतंकी संगठन आइएसआइएस से प्रभावित हो रहे हैं युवक.
ख़बर में साफ लिखा गया है कि आइएसआइएस ने अपना पांव छोटे शहरों व गांवों पर भी केंद्रित किया है. उसका माड्यूल पश्चिम चम्पारण ज़िले में साठी थाना क्षेत्र के बेलवा गांव तक पहुंच गया है. खुलेआम यह लिखा गया है कि धर्म व इस्लाम की रक्षा को लेकर बेलवा गांव का सीधा-साधा एहतशामुल हक़ आतंकी बन देशद्रोही गतिविधियों में शामिल हो गया.
आगे यह भी लिखा गया कि आइएसआइएस के नए प्यादे एहतशामुल की गिरफ़्तारी के बाद बेतिया पुलिस भी दहशत में है. एहतशामुल दुनिया के सबसे ख़तरनाक आतंकी मसूद अज़हर से वो काफी प्रभावित था. यू-ट्यूब पर मौजूद मसूद के वक्तव्यों को काफी सुनता है. आतंकी मसूद अज़हर के भाषणों से प्रेरित होकर उसने आतंकी संगठनों से संपर्क साधा और आइएसआइएस से जुड़ गया.
इस ख़बर को पढ़ने रिपोर्टर की बेवकूफ़ी का पता चलता है. वो लिखता है, ‘एहतशामुल हक़ गांव में बहुत कम ही दिखता था. वो कभी गांव में भी आता था तो ज़्यादा लोगों से उसका मेल-जोल नहीं रहता था. वो घर से अगर निकलता था तो कहीं बाहर जाने के लिए ही निकलता था.’ जबकि उसके घर व गांव वालों का कहना है कि वो पिछले 6-7 महीने से घर पर ही था. पांचों वक़्त की नमाज़ मस्जिद में ही जाकर पढ़ता था. लोगों से काफी मेलजोल था. वो ज़्यादातर वक़्त अपने खेत में काम करता था.
दैनिक जागरण की ख़बर का शीर्षक है, ‘बेलवा गांव में भी एक संदिग्ध गिरफ़्तार, एक हिरासत में’ जबकि सच्चाई यह है कि किसी को भी हिरासत में नहीं लिया गया. इस ख़बर में भी यह बताने की कोशिश की गई है कि एहतशाम आतंकी सरगना मसूद अज़हर की बातों से प्रभावित रहा है और एटीएस को सूचना मिली थी कि विध्वसंक कार्रवाई की साज़िश रची जा रही है.
अंदर के पेज पर हेडिंग है, ‘एहतेशामुल की गिरफ्तारी से फैली सनसनी, खुफिया तंत्र हुआ अलर्ट’ इस ख़बर की सब-हेडिंग है आइएस के खौफ़नाक इरादों को लेकर सहमा चम्पारण, गांव-कस्बों तक दहशत में जी रहे हैं लोग… इस ख़बर में यह चिंता भी जताई गई है कि अन्य कितने लोगों को यह कट्टरवादी संगठन अपने संपर्क में लाया होगा? उसके मंसूबे क्या थे? इन इलाक़ों में बढ़ रही ऐसी गतिविधियों पर नकेल कैसे लगेगी?
दैनिक हिन्दुस्तान ने भी एहतशामुल हक़ को पहले पन्ने पर संदिग्ध ही लिखा है. अन्दर के पृष्ठों पर भी संदिग्ध शब्द का ही इस्तेमाल किया गया है. इस अख़बार ने बताया है कि एहतशाम सऊदी अरब रहा है. दैनिक जागरण ने भी यही बताया है, जबकि प्रभात ख़बर की माने तो वो ओमान में रहा है.
आज अख़बार ने इस संबंध में अंदर के पन्ने पर छोटी-सी ख़बर छापी है और ख़बर में आइएसआइएस का सदस्य बताया है.
(शाहनवाज़ मलिक बतौर असिस्टेंट एडिटर कैच न्यूज़ से जुड़े हुए हैं.)