आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net
देवबंद : औरंगाबाद के सय्यद मज़हर इस समय विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम, देवबंद में आकर्षण का केंद्र है.
एक महीने पहले ही वो यहाँ आये है मगर दारुल उलूम देवबंद में उनके बारे में इस वक़्त सबसे ज्यादा बात की जाती है. वो यहाँ छठी क्लास में पढ़ते है जहां मुसलमानो से जुड़े मसले मसाइल पढाये जाते है. पूरी क्लास में वो लगातार सबका ध्यान खींचते है. दारुल उलूम की इस क्लास में कुल 427 तलबा है मगर लाइम लाइट मे सिर्फ मज़हर रहते है.
एक बार कुल 105 तलबा पढ़ते है इसी तरह की कुल चार सेक्शन है. वो एक आम तलबा की है जैसे दूसरे है. मगर मज़हर आम नही है. वो 75 साल के एक रिटायर्ड प्रिंसिपल है.
उन्होंने अपनी सारी जिंदगी पढ़ने में खर्च है उनके चार उच्च शिक्षा ली है. उनकी इंजीनियर बेटी महाराष्ट्र टॉप कर चुकी है. उनके भाई महाराष्ट्र सरकार में शिक्षा विभाग में जॉइंट निदेशक पद से रिटायर हुए हैं. उनके दूसरे भाई अमेरिका में रहते है.
खुद मजहर ने भी एमएड ,एमएससी और कम्प्यूटर में परास्नातक होने के बाद शिक्षाविषय में पीएचडी की है. वो एक स्कूल में प्रधानचार्य पद से रिटायर होने के 10 साल बाद दारुल उलूम में क़ुरान और हदीस पढ़ने आये है. पिछले महीने 75 साल के तलबा सय्यद मज़हर ने यहां दाखिला लिया है. दाखिला उन्होंने सामान्य प्रक्रिया के तहत टेस्ट देकर लिया.
10 साल पहले रिटायर होने के बाद उन्होंने पंजूम तक कि पढ़ाई औरंगाबाद के स्थानीय मदरसे से की और छठी क्लास में विश्व की प्रतिष्टित धार्मिक शिक्षा की केंद्र संस्था दारुल उलूम में दाखिला के लिए आवेदन किया. यहाँ कुल 1400 बच्चो ने आवेदन किया था. जिनमे से इनका भी चुनाव हो गया. दारुल उलूम के नियम बहुत सख्त है इसलिए इनके साथ कोई ढील नही बरती गई.
दाखिले के इम्तेहान में पास होने के बाद इनको पहली बार क्लास में देखकर दूसरे तलबा हजरात ने उस्ताद ए मोहतरम समझ लिया. मगर मज़हर बताते है कि उस्ताद साहब ने मुझे खुद ही मेरा तआरुफ़ कराने का हुक्म दिया. पहले तो अज़ीब लगा मगर बाद सब ठीक हो गया. उनके साथ ही में पढ़ने वाले नेमतुल्लाह बताते है कि उन्हें लगा वो समाद के लिए आये हैं. यहाँ अक्सर पुराने तलबा अपनी इस्लाह के लिए आते रहते है इसे समाद कहते है. मगर जब पता चला तो ये हमारी साथ पढ़ेंगे तो दिल मे इनके लिए इज़्ज़त पैदा हुई. आज आपसे इनकी डिग्री पता चली यह तो इन्होंने बताया ही नही था.
सय्यद मज़हर साहब से यह पूछने पर कि उन्हें इस उम्र में दीनी तालीम हासिल करने की प्रेरणा कहाँ से मिली वो बताते है कि मैं इंजीनियर बनना चाहता था. सेलेक्शन भी हो गया था थोड़ा देर से पहुंचा उन्होंने दूसरा रख लिया. फिर मेरी बेटी शबाना ने लड़कियों की श्रेणी में टॉप किया. मैंने 1988 में कम्प्यूटर में परास्नातक किया था तब यह कोई करता था. मुझे विदेश से भी ऑफर मिले फिर में टीचर बन गया. बच्चो को साइंस पढ़ाता था. साइंस पढ़ाने वाले का दीनी तालीम हासिल करने की तरफ इंटरेस्ट कैसे पैदा हो गया पूछने पर मज़हर बताते है कि उन्होंने पढ़ा था कि मरने के बाद मुसलमान से पांच सवाल होंगे. तुमको जवानी दी थी…क्या किया? माल दिया कहाँ खर्च किया? इल्म दिया था क्या इस्तेमाल किया? मौत के बाद कि जिंदगी को बेहतर बनाने की चाहत ने मुझे यहां पढ़ने के प्रेरित किया.
मज़हर बताते है कि यहां तो मैं दूर हूँ, अनजान हूँ, औरंगाबाद में रिटायर होने के पांच साल बाद मैंने मदरसे में एडमिशन ले लिया. मेरे पोते-पोतियों के साथ खेलने वाले बच्चे मेरे साथ साथ पढ़ते थे. यह एक बयान न होने वाला अनुभव है फिलहाल में इस्लामिक ग्रामर पढ़ रहा हूं.