नासिरूद्दीन
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों एक मजलिस की तीन तलाक़ पर अपना अहम फैसला दिया है. ‘बेबाक कलेक्टिव’ इस मामले में केस लड़ रही महिलाओं के पक्ष में खड़ा था. ‘बेबाक कलेक्टिव’ की नींव हसीना खान ने रखी है. इससे पहले वे सालों तक ‘आवाज़-ए-निस्वां’ नाम के संगठन के ज़रिए मुसलमान महिलाओं के हक़ में काम कर रही थीं. हमने इसी पसमंज़र में हसीना खान से बात की. यह बातचीत उनके काम, सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर उनकी राय, फ़ैसले के बाद आगे की योजना, मुसमलान महिलाओं की ज़िन्दगी के दूसरे मसायल पर फोकस करती है. यह वीडियो इंटरव्यू है. इसे देखें. सुनें. बेहतर लगे तो साझा करना नहीं भूलें.
इंटरव्यू की कुछ ख़ास बातें हम यहां पेश कर रहे हैं. बक़ौल हसीना खान,
‘एक मजलिस की तीन तलाक़ बंद होना, बहुत बड़ी बात है.
पहली बार महिलाओं का इतना बड़ा समूह कोर्ट गया. यह संघर्ष काफी अहम है. ऐतिहासिक लड़ाई है. ऐतिहासिक जीत है. ‘बेबाक कलेक्टिव’ का मानना था कि मुसलमान महिलाओं को संविधान के मुताबिक़ हक़ मिलना चाहिए. हम यह उस स्तर पर कोर्ट के अंदर बहस को ले जा पाने में कामयाब हुए. हम बहस को शरीअत बनाम ग़ैर-शरीअत नहीं बनाना चाहते थे. इस पूरी बहस के पीछे मुसलमान महिलाओं का लम्बा आंदोलन रहा है.
हालांकि, कोर्ट ने इस मामले में सरकार के दख़ल का रास्ता भी खोला है. हम देखेंगे कि सरकार क्या करती है.
हालांकि कोर्ट के पास बेहतर मौक़े थे. कोर्ट अगर और कुछ कहता तो शायद आगे के लिए रास्ते खुल जाते. कोर्ट ने अपने को सिर्फ़ तीन तलाक़ तक सीमित रखा है. इसीलिए यह फ़ैसला कई मायनों में परेशान करने वाला भी है. कोर्ट के लिए धर्म ही काफी अहम रहा है. कोर्ट अगर निजता के अधिकार की तरह कोई फ़ैसला देता तो शायद यह ऐतिहासिक फ़ैसला होता.
वैसे इसके बाद भी महिलाओं में खुशी है. एक मजलिस के तलाक़ का खौफ़ ख़त्म हुआ है. लोगों को जागरूक करना होगा. महिलाओं को बताना होगा. सरकारी एजेंसियों को इसके बारे में बताना होगा. उन्हें ज़िम्मेदार बनाना होगा. महिला आयोगों को बताना होगा. सरकार ने मुसलमान महिलाओं के साथ काफ़ी हमदर्दी जताई है. अब उनकी ज़िम्मेदारी है कि वे मुसलमान महिलाओं के लिए वे क्या कर रही हैं.
अगर कोई क़ानून बनाने का प्रस्ताव है तो उसमें हमारा हस्तक्षेप बहुत ज़रूरी है. हमें जेण्डर समानता की बात करनी होगी.’
हसीना खान से और जिन मुद्दों पर बात हुई, उसके जवाब वीडियो में देखे जा सकते हैं.
— बेबाक कलेक्टिव क्या है? सुप्रीम कोर्ट में एक मजलिस की तलाक़, बहु-विवाह, हलाला के मुक़दमे से जुड़ाव कैसे हुआ?
— मुसलमान महिलाओं के मुद्दे से जुड़ाव कैसे हुआ? उनके लिए यह राह कितनी मुश्किल/कितनी आसान थी? आपने मुसलमान महिलाओं की ज़िन्दगी की हक़ीक़त क्या देखी?
— कभी कोई हमला या चुप कराने की कोशिश का सामना करना पड़ा?
— सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर क्या राय है? मुसलमान महिलाओं के लिए यह फ़ैसला कितना अहम है? महिलाओं की तहरीक के लिहाज़ से यह फ़ैसला कितना अहम है?
— इस फ़ैसले को अमली-जामा पहनाने के लिए क्या करना चाहिए?
— एक मजलिस की तीन तलाक़ पर तो फैसला हुआ, लेकिन एक से ज्यादा शादी, हलाला या जेण्डर गैर-बराबरी के मुद्दे का क्या होगा? क्या फिर से कोर्ट जाएंगी या कुछ और रास्ता है?
— क्या महिला संगठन सरकार को वैकल्पिक कोड या क़ानून का कोई प्रस्ताव देने जा रहे हैं?
— इस मुहिम के पीछे महिला आंदोलन और खासतौर पर मुसलमान महिलाओं के आंदोलन का कोई रोल है?