TwoCircles.net Staff Reporter
पटना : ‘देश में पिछले तीस वर्षों में स्वच्छता कार्यक्रमों के नाम कई बार बदले हैं, लेकिन सफाई नाम मात्र की हुई है. दरअसल, हमारे स्वच्छता अभियान विवेक से नहीं, हमारे श्रम से चलाए जाते हैं. अपने शरीर को और मल को जल और थल के साथ जोड़कर ही किसी स्वच्छता अभियान को सफल बनाया जा सकता है. मल को जल में मिलाकर नहीं.’
ये बातें पर्यावरणविद् और सामाजिक पत्रकार सुपान जोशी से आज कहीं. वे जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में ‘‘स्वच्छता बनाम शुचिता’ विषय पर आयोजित वार्ता में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे.
जोशी ने लद्दाख के ‘छागर’ शौचालय और तमिलनाडू के ‘इकोसैन’ आधुनिक शौचालय की चर्चा करते हुये कहा कि, हमारा शरीर मिट्टी की उपज को ग्रहण करता है. इसलिए इसका अवशिष्ट पदार्थ मिट्टी में ही मिलना चाहिए. आज हमारे मल–मूत्र जल–स्रोतों में मिल रहे हैं, जो प्रदूषण का बड़ा कारण हैं. हरेक घरों में शौचालय बन जाने मात्र से ही स्वच्छता नहीं आ जाने वाली. हमारा स्वभाव और चित्त पेट में मौजूद जीवाणुओं से तय होता है.
उन्होंने कहा कि, नदियों की सफ़ाई कर करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं, लेकिन प्रदूषण स्तर बढ़ता ही जा रहा है. हर शहर के भूजल में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ गई है, जो मल से पानी में जाते हैं.
जोशी ने उपाय सुझाते हुए कहा कि, हमें अपने लोग, अपनी मिट्टी और अपने पानी को अपनेपन की आंख से देखना होगा.
एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया कि, घरों में जैसे–जैसे आरओ आने लगे हैं, हमारे जल स्रोत और दूषित होने लगे हैं. पर्यावरण को और स्वच्छता को समझने के लिए बहुत बुद्धिजीवी होने, ज्ञानी होने या पर्यावरण विज्ञान की ज़रूरत नहीं है. हमारे समाज के लोग वर्षों से और पीढ़ियों से प्रकृति से तारतम्य बिठाकर जीवन जीते आए हैं. जब समाज अपढ़ भी था, तब भी कम से कम जल, धरती, वायु की चिंता करने में सक्षम था. और समय के अनुसार नई तकनीक व प्रणाली विकसित करते रहा है. आज जैसे–जैसे ज्यादा पढ़ते जा रहे हैं, कथित तौर पर ज्ञानी होते जा रहे हैं, धनवान होते जा रहे हैं, वैसे–वैसे प्रकृति को ख़तरनाक मुहाने पर ले जा रहे हैं.
इस अवसर पर पर्यावरण एवं जल प्रबंधन से संबद्ध प्रो. अशोक घोष ने कहा कि 2030 आते–आते भारत के कई हिस्सों में पानी का संकट हो जाएगा. हमें अपनी जीवन शैली बदलने की ज़रूरत है.
अध्यक्षीय भाषण में प्रो. पूर्णिमा सिंह ने कहा कि जीवन में सुख–सुविधा के कारण हम प्रकृति और पर्यावरण से दूर होते जा रहे हैं. मल से जल का संयोग हानिकारक है. संकट से उबरने के लिए हमें पर्यावरण से जुड़ना होगा.
इसके पहले संस्थान के निदेशक श्रीकांत ने विषय प्रवेश कराया. कार्यक्रम का संचालन वीणा सिंह ने किया और धन्यवाद ज्ञापन अजय कुमार त्रिवेदी ने किया. इस अवसर पर शहर के कई पर्यावरणविद् मौजूद थे.