अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
मोतिहारी (बिहार) : ‘6 महीने गुज़र गए, लेकिन सरकार व प्रशासन ने कुछ नहीं किया. अब अगर मेरी मांग पूरी नहीं की गई तो जिस तरह मेरा पति आत्मदाह कर लिया चीनी मिल गेट पर, उसी तरह मैं भी अपने चारों बच्चों के साथ आत्मदाह कर लूंगी.’
ये कहना है आज से ठीक 6 महीने पहले 10 अप्रैल 2017 को मोतिहारी में आत्मदाह कर चुके सूरज बैठा की पत्नी, माया देवी का.
बताते चलें कि सूरज बैठा अपने दोस्त व लेबर यूनियन के प्रमुख नेता नरेश श्रीवास्तव के साथ 15 साल पहले बंद हुई मोतिहारी शुगर मिल के मज़दूरों की तनख़्वाह और गन्ना किसानों की बक़ाया राशि के लिए आंदोलन कर रहे थे. लंबे संघर्ष के बावजूद जब मिल प्रबंधन और प्रशासन ने उनकी मांग पर गंभीरता नहीं दिखाई तो दोनों नेताओं ने ख़ुद को आग लगाकर ख़त्म कर लिया था.
आपकी मांग क्या है? इस सवाल के जवाब में माया देवी का कहना है कि, सबसे पहले किसानों-मज़दूरों का बक़ाया मिले. मुझे जो पेंशन व एक बच्चे को नौकरी का वादा किया गया, वो वादा पूरा किया जाए.
वो आगे बताती हैं कि, ‘मेरे पति को चीनी मिल के मालिक ने कलकत्ता बुलाकर 10 करोड़ रूपये का लालच दिया था, लेकिन वो बिके नहीं. वो अपने लिए नहीं लड़े, बल्कि किसानों-मज़दूरों के लिए लड़ते रहे. अब मैं भी उनकी लड़ाई आगे बढ़ाना चाहती हूं.’
माया देवी स्थानीय मीडिया से काफ़ी नाराज़ हैं. वो बताती हैं कि, ‘सरकार ने 8 लाख रूपये मुवाअज़ा देने का ऐलान किया था, लेकिन सिर्फ़ 4 लाख 12 हज़ार 500 रूपये ही मिले हैं. लेकिन अख़बारों ने छाप दिया कि माया देवी को 8 लाख का मुवाअज़ा मिल गया. पेंशन भी शुरू कर दिया गया और एक बच्चे को नौकरी भी दे दी गई, जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ है. न कोई बक़ाया मिला है, न पेंशन या नौकरी. पता नहीं, ये मीडिया वाले कितने में बिकते हैं.’
इंसाफ को लेकर नाउम्मीद
वहीं नरेश श्रीवास्तव की पत्नी पूर्णिमा कुमारी बताती हैं कि, इतनी बड़ी घटना हो जाने के बाद भी न तो सरकार का ध्यान इस तरफ़ है और न ही प्रशासन कुछ कर रहा है. प्रशासन व सरकार के रवैये से ऐसा लग रहा है कि वो उद्योगपति के हाथों बिक चुकी है. अगर नहीं बिकी होती तो इस मामले में ज़रूर कोई न कोई कार्रवाई हुई होती.
वो बताती हैं कि, ‘चीनी मिल गेट पर मूर्ति बनना था, लेकिन वो आज तक नहीं बना. डीएम मिलने के लिए वक़्त नहीं दे रहे हैं. और चीनी मिल की ज़मीन पर भू-माफ़ियाओं का क़ब्ज़ा है. इसमें दो भाजपा नेता प्रमोद कुमार व कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह भी शामिल हैं.’ हालांकि यहां स्पष्ट रहे कि अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है कि इन दोनों नेताओं की कोई संलिप्तता है.
पूर्णिमा इंसाफ़ को लेकर अब नाउम्मीद हो चुकी हैं. वो कहती हैं कि, 6 महीनों में तो कुछ नहीं हुआ, अब आगे क्या उम्मीद करें. नरेश श्रीवास्तव से लोगों को सबक़ लेना चाहिए कि इतनी गरीबी में रहकर भी वो बिके नहीं. जबकि उन्हें हर तरह से लालच दिया गया.
आदेश के बाद भी नहीं हो सकी सीबीआई जांच
नरेश श्रीवास्तव व सूरज बैठा के मौत के बाद उनके आन्दोलनकारी साथी इस पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग कर रहे थे. इनकी मांग को देखते हुए बिहार सरकार ने जून महीने में इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा कर दी. इसकी पुष्टि खुद TwoCircles.net के साथ बातचीत में गृह सचिव आमिर सुबहानी ने भी की थी. उन्होंने साफ़ कहा था कि सीबीआई की तरफ़ से इस मामले को स्वीकृती मिलते ही इसकी जांच शुरू हो जाएगी.
लेकिन अभी तक इस मामले में सीबीआई जांच की बात तो दूर कोई भी अधिकारी इन दोनों के घर झांकने तक को नहीं गया.
नरेश श्रीवास्तव की पत्नी पूर्णिमा का आरोप है कि, इस मामले में दो भाजपा नेता प्रमोद कुमार व कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह भी शामिल हैं. यही नेता सीबीआई जांच नहीं होने दे रहे हैं.
क्यों नहीं होने दे रहे हैं? इस सवाल के जवाब में उनका कहना है कि, ‘मालिक से कुछ सेटिंग है.’ माया देवी का भी कहना है कि, चीनी मिल की ज़मीने नेताओं के संरक्षण में बेची जा रही हैं.
माया देवी कहती हैं कि, सरकार ने बस झूठमूठ का ऐलान कर दिया कि सीबीआई जांच होगी, लेकिन अभी तक तो कोई अधिकारी हमें पूछने तक को नहीं आया.
इस मामले की सीबीआई जांच को लेकर मोतिहारी व पटना में कई धरना-प्रदर्शन हो चुके हैं. समाजसेवी स्वामी अग्निवेश के नेतृत्व में ‘सत्याग्रह धरना’ भी आयोजित किया गया, लेकिन सरकार पर इसका अभी तक कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा है.
भाकपा के पूर्व सुगौली विधायक रामाश्रय सिंह का कहना है कि, बिहार सरकार इस पूरे मामले में गुमराह करने की कोशिश कर रही है. सरकार ने तो ये केस सीबीआई को सुपुर्द ही नहीं किया. अगर सरकार इस मामले को सीबीआई को सौंपती तो सीबीआई जांच अवश्य करती.
इस मामले में दर्ज एफ़आईआर को ख़त्म कराने के लिए अर्ज़ी
बताते चलें कि इस पूरे मामले में सर्वप्रथम दो एफ़आईआर दर्ज की गई है. वहीं तीसरा मामला खुद इस चीनी मिल के मालिक विमल कुमार नोपानी ने पटना हाई कोर्ट में बिहार सरकार एवं उनके अधिकारियों के ख़िलाफ़ इन दोनों एफ़आईआर को ख़त्म करने के लिए दर्ज कराई गई है.
स्पष्ट रहे कि पहली एफ़आईआर स्थानीय सीओ के बयान पर दर्ज की गई है, जो विधी–व्यवस्था, हंगामा प्रदर्शन जैसे अन्य मामलों से जुड़ी हुई है. वहीं दूसरी एफ़आईआर नरेश श्रीवास्तव की पत्नी के बयान पर दर्ज की गई है, जिसमें हनुमान चीनी मिल के मालिक विमल कुमार नोपानी और मैनेजर आर.पी. सिंह समेत अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया है.
क्यों ज़रूरी है इस मामले में सीबीआई जांच
नरेश श्रीवास्तव के छोटे भाई सुधीर कुमार कहते हैं कि, ‘इस पूरे मामले की सीबीआई जांच इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि इस मामले में कई नेता, विधायक व मंत्री संलिप्त हैं. मेरे भाई दो लड़ाई लड़ रहे थे. एक तरफ़ तो किसानों-मज़दूरों के बक़ाया राशि के लिए, वहीं दूसरा चीनी मिल की ज़मीन पर रजिस्ट्री हाईकोर्ट के रोक के बावजूद नेताओं के संरक्षण में लगातार दखल दहानी कराई जा रही थी. नरेश श्रीवास्तव ने इसकी शिकायत प्रशासन से भी की थी. खुद डीएम उनके साथ आकर इसकी ज़मीन को देखें थे. अगर उसी समय सही से जांच होती तो उनमें कई नेता फंसते. लेकिन जांच हुई नहीं, और इधर भाई भी ख़त्म हो गए.’
वो आगे कहते हैं कि, हम तीनों भाईयों को कोई लालच नहीं है. हम सिर्फ़ इतना चाहते हैं कि जो लड़ाई नरेश श्रीवास्तव की थी, वो अब पूरी होनी चाहिए. किसानों-मज़दूरों का बक़ाया भुगतान चीनी मिल से सरकार को करवाना ही होगा और फिर हाईकोर्ट के रोक के बावजूद ज़मीन की जो दख़ल दहानी हुई है. इस मामले की भी जांच होनी चाहिए. क्योंकि स्थानीय नेताओं के संरक्षण में ज़मीन पर क़ब्ज़ा अभी भी जारी है.
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