फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net
परिवार के साथ ईद मनाने को लेकर परदेस में काम करने वाले लोग अपने घर वापस आने लगे है. दिल्ली, मुंबई, हरियाणा, लुधियाना, राजस्थान, सऊदी, आदि जगहों से हर रोज स्टेशन से लोग उतरना शुरू कर दिए है. बाहर में रहने वाले लोग खास तौर पर ईद में घर का प्लान बनाते है ताकि साथ मिल कर अपने वतन, अपनी लोगों के साथ ईद मनाई जाए. वहीं एक तरफ आने वाले ईद को ले बाजार गुलजार होने लगा है तो दूसरी तरफ बाज़ारों में चांदरात और ईद की रौनक भी तेज़ हो गई है.
सऊदी में एक निजी कंपनी में काम कर रहे इदरीस अंसारी कहते हैं, ईद ही एक ऐसा पर्व है जिसमे हम सभी लोगों से मुकालात होती है. इसलिए ऑफिस से खास तौर पर छुट्टी ले कर ज़रूर आते हैं.
27 वर्षीय इकराम अहमद दिल्ली में इजीनियर हैं, उनका मानना है की देश में कुछ वर्षों से भले ही साम्प्रदायिक विवाद बढ़ा हो लेकिन आज भी हिन्दू पडोसी और दोस्त ईद पर उतने ही खुलूस से मिलते हैं. इकराम का कहना है जिंदगी में इंसान के अकीदे को बेहद अहम माना गया है। शायद, इसीलिए त्योहारों की रवायत शुरू हुई होगी.
14 साल की सबा को ईद का पूरे साल इंतजार रहता है. दिल्ली में अपने अम्मी अब्बू से साथ रहने वाली सबा साल में सिर्फ ईद के मौके पर ही ददिहाल आती हैं जहाँ अपने दादा-दादी और कजन के साथ फेस्टिवल सेलिब्रेट करती हैं.
सबा बताती हैं, ईद उनके लिए बहुत ही ख़ास है इस मौके पर उन्हें अपने पुरे परिवार से मिलने का मौका मिलता है. इस बार उन्होंने चूड़ियों की बहुत सी खरीदारी की है उनके मुताबिक ईद पर नए फैशन की चूड़ियां मार्किट में आती हैं. सबा आगे बताती हैं की दिल्ली में कोई घर पर सेवइयां खाने के लिए अपने घर की तरह नहीं बुलाता. दिल्ली में बचपन से रहने के बाद भी इतनी बेतकल्लुफ़ी नहीं कि बिना बुलाए चले जाएँ.
इस बार चाँद को लेकर दो दिन ईद पर सोशल मीडिया पर काफी बहस बाजी चली. लेकिन आखरी वक़्त में शनिवार यानी कल के दिन चाँद देखने के बाद ईद मुकर्रर किया गया.
इस मामले में राजस्थान में मेडिकल डिपार्टमेंट में कार्यरत जावेद हुदा कहते है कल मैं ट्रैन में था और बार बार ये ही सोच रहा था अगर आज चाँद दिखने का अयलान हो गया तो ईद ट्रैन में ही करनी पड़ेगी.
दो ईद होने वाली बात पर जावेद कहते हैं, हर मुसलमान चांद इत्मिनान से देख ले और एक ईद हो जिससे आपसी माहौल खुशनुमा बना रहे और मोहब्बत कायम रहे और उनको भी जवाब मिल जाए जो क्यास लगाये बैठे हैं कि दो ईद होगी. दो ईद होने वाली बात पर आगे जावेद कहते हैं, हर मुसलमान चांद इत्मिनान से देख ले और एक ईद हो जिससे आपसी माहौल खुशनुमा बना रहे और मोहब्बत कायम रहे और उनको भी जवाब मिल जाए जो क्यास लगाये बैठे हैं कि दो ईद होगी.
समशाद आलम दिल्ली में निजी कम्पनी में काम करते हैं. वो बताते हैं दो दिन पहले तक आने अपने शहर आने की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी. कई दिनों से घर जाने की तैयारी कर रहे थे, नये कपडे खरीदे, जूते खरीदे, घरवालों के लिए भी सामान खरीदा, लेकिन सारे अरमान धरे रह गये. टिकट कन्फर्म नहीं था लेकिन आखरी वक़्त में बिना टिकट ही घर आने का फैसला किया और ट्रैन के फर्श पर बैठ कर आएं. ईद अपनों के साथ मानाने की बात की कुछ और है. अपनों के बिना ईद बे रौनक लगती है.
ईद पर तैयारिओं के बीच आसमान छूती महंगाई और GST की मार से खरीदार अपनी अपनी जेब टटोलने लगे. इस मामले में नूर नगर पटना के आबिद अंसारी बेकरी की दुकान चलते हैं, कहते हैं, इस बार मार्किट में खरीदारी की रौनक कम पड़ती दिखी है, पहले के मुकाबले इस साल दुकानदारी भी कम रही वरना पुरे रमज़ान बेकरी पर भिंड होती थी.
आबिद कहते हैं पहले गुरबत थी, लेकिन खुलूस था, जबकि आज हैसियतदार की ईद बन कर रह गई है. पहले बड़ा इमामबाड़ा से लेकर मस्जिद तक ईद पर बाजार लगती थी. लेकिन आज पहले जैसा कुछ नहीं रहा. मंगाई की मार से दो-तीन सालों में नाम मात्र ही बाजार लगता है.