भारतीय जनता पार्टी भले मुस्लिम महिलाओ की हितैषी बनने का एलान करे और तलाक़ और हलाला जैसे मुद्दों लड़ाई लड़ने की बात करे लेकिन बात जब मुस्लिम महिलाओ के प्रतिनिधित्व की आती हैं तो वो आँखे मूँद लेती हैं.
ताज़ा उदहारण हैं उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सरकार द्वारा गठित राज्य महिला आयोग का. जिसमे 27 सदस्यों में एक भी मुसलमान नहीं हैं. वहीँ पिछली समाजवादी पार्टी सरकार में राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष एक मुस्लिम महिला थी.
राज्य महिला आयोग की शक्तियों में किसी वाद का विचारण करने के लिए सिविल न्यायालय को प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार हैं जैसे सम्मन करना, दस्तावेज मंगाना, लोक अभिलेख प्राप्त करना, साक्ष्यों और अभिलेखों के परीक्षण के लिए कमीशन जारी करना आदि.
यह एक ऐसा समय है जब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में महिलाओ के प्रति अत्याचार लगातार बढ़ते जा रहे है.देवरिया,प्रतापगढ़ और हरदोई में महिला आश्रमों में से महिलाये गायब हुई है. प्रदेश में अनुमानित तौर पर मीडिया की छपी खबरों के अनुसार हर दिन 52बलात्कार हो रहे है और खुद सत्ताधारी पार्टी के लोग सवालो के घेरे में है.इसके अलावा महिला उत्पीडन की घटनाएं चरम पर है.
बात बस इतनी नही है समाजवादी पार्टी आगरा की स्थानीय नेता और पूर्व आयोग सदस्य रोली तिवारी मिश्रा ने तो सरकार निष्पक्षता की मंशा पर ही सवाल उठा दिए है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखे एक पत्र में रोली ने लिखा है कि ”एक तरफ तो सरकार तीन तलाक,हलाला जैसे मुद्दों पर मुस्लिम महिलाओ की सवेंदना बटोरने में जुटी है जबकि दूसरी तरफ राज्य महिला आयोग में एक भी मुस्लिम महिला को जगह नही दी गई है. क्या 4 करोड़ की आबादी वाले मुसलमानों में उन्हें एक भी काबिल मुस्लिम महिला नही मिली ?आयोग में कुल सदस्यों की संख्या25 है जबकि अध्यक्ष व् दो उपाध्यक्ष भी है.
रोली तिवारी के अनुसार भाजपा के लोग मुस्लिम महिलाओ के अधिकारों के लिए लड़ने फर्जी बात करते है अब महिला आयोग के गठन में उनके उनका नजरिया साफ़ दिखाई दे जाता है.गोरतलब है कि उत्तर प्रदेश में 16 महीने बाद महिला आयोग का गठन हुआ है रोली के अनुसार इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार महिलाओ के प्रति कितनी अधिक सवेदनशील है.
इसी तरह के सवाल आयोग में दलित प्रतिनिधित्व को लेकर भी है।आयोग की नवनियुक्त अध्यक्ष विमला बाथम मानती है कि महिलाओ पर अत्याचारों की घटना में बढ़ोतरी हुई हैं. मगर वो कहती है कि मुस्लिम सदस्य न होने से आयोग के कामकाज पर कोई फर्क नही पड़ेगा.वो मानती है की आयोग का गठन देर से हुआ है मगर आयोग अपने काम में तेजी लायेगा.
राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष जरीना उस्मानी कहती है वैसे तो आयोग के कामकाज पर जाति और साम्प्रदयिक कारणों से कोई फर्क नही पड़ता मगर मुस्लिम मामलो का एक एक्सपर्ट जरुर होना चाहिए.इसकी वजह यह है की तलाक हलाला जैसे मामलो पर सरकार रूचि ले रही है और इससे जुड़े मामलों की शिकायत भी आ रही है अब ऐसे लोग कैसे सुनवाई कर पाएंगे जो उनके बारे में जानकारी ही नही रखते.वैसे भी आयोग में दलित और मुस्लिम महिलाओ की शिकायत सबसे ज्यादा आती है इसलिए उनके अपने समाज से कोई होता है तो समझौता कराने में मदद मिलती है.
देवरिया के माँ विन्ध्यावास्नी आश्रय स्थल में हुई शर्मनाक घटना के बाद प्रतापगढ़ और हरदोई में भी आश्रयस्थल से महिलाओ के गायब होने की सुचना है विमला बाथम के अनुसार इसके लिए उन्होंने एक टीम बना दी है जो हर एक शेल्टर होम की जांच करेगी.
गोरतलब है की फरवरी में आयोग की पूर्व अध्यक्षा जरीना उस्मानी का कार्यकाल खत्म हो गया था तब से महिला आयोग का कामकाज रफ़्तार नही पकड़ रहा था.
नए महिला आयोग में रश्मि जायसवाल,शशिबाला भारती,मनोरमा शुक्ला,कुमुद श्रीवास्तव ,सुनीता बंसल,उषारानी गौतम,अनीता सचान,अनामिका चौधरी,निर्मला दीक्षित,रामसखी कठेरिया,मीना चोबे,पूनम कपूर,निर्मला दिवेदी,संगीता तिवारी,शशि मौर्या,सुमन सिंह,अवनि सिंह,राखी त्यागी,मीना कुमारी,कंचन जायसवाल,प्रभा गुप्ता को बनाया गया है जबकि प्रियाम्दा तोमर, अनीता सिंह,सुमन चतुवेदी,इंद्रवास सिंह का कायर्काल बढाया गया है. आयोग में दो उपाध्यक्ष सहित अब कुल संख्या 27 हो गई है. इनमें से चार सदस्यों का कार्यकाल बढ़ाया गया है.एक सदस्य अवनी सिंह नूरपुर के पूर्व विधायक लोकेंद्र सिंह की पत्नी है.
मुजफ्फरनगर की दलित नेत्री संतोष देवी कहती है इन नाम को पढ़कर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि किन लोगो को प्रतिनिधित्व दिया गया है.मुस्लिमो के साथ-साथ दलितों को भी नजरंदाज कर दिया गया है.
आयोग की नई अध्यक्ष विमला बाथम नोएडा से विद्यायक रही है वो कहती है”दलित और मुस्लिम महिला भी हमारे ही समाज का हिस्सा है हम उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे”.
प्रदेश में महिलाओं के उत्पीड़न सम्बन्धी शिकायतों के निदान, विकास की प्रकिया में सरकार को सलाह देने तथा उनके सशक्तिकरण हेतु आवश्यक कदम उठाने के उद्देश्य को लेकर 2002 में महिला आयोग का गठन किया गया था. वर्ष 2004 में आयोग के कियाकलापों को कानूनी आधार प्रदान करने के लिए उ0प्र0 राज्य महिला आयोग अधिनियम 2004 अस्तित्व में आया. तत्पश्चात पुन: जून 2007 में अधिनियम में कुछ संशोधन कर आयोग का पुनर्गठन किया गया. पुन: दिनांक 26 अप्रैल 2013 को अधिनियम में आवश्यक संशोधन कर आयोग का पुनर्गठन किया गया.