यूसुफ़ अंसारी, Twocircles.net
नई दिल्ली। ‘तेरे ग़ुरूर को जलाएगी वो आग हूं, आकर देख मुझे, मैं शाहीन बाग़ हूं… जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं? यहां हैं, यहां हैं, यहां हैं।‘ दुनियाभर में विरोध का प्रतीक बन चुके दिल्ली के शाहीन बाग़ धरने की जगह इसी तरह की शेर-ओ-शायरी लिखे पोस्टर लगे हैं। शाहीन बाग़ वही जगह है, जहां पिछले 40 दिन से नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहा है।
शाहीन बाग़ में यह प्रदर्शन 15 दिसंबर से शुरू हुआ था। आज इसका चालीसवां दिन है। अक्सर ऐसे आंदोलनो मे वक़्त के साथ लोगों का जोश ठंडा पड़ने लगता है। भीड़ कम होने लगती है। लेकिन यहां उल्टा है। हर दिन के साथ प्रदर्शन में शामिल होने वालों की तादाद बढ़ रही है। लोगों का जोश भी कम होने के बजाए बढ़ रहा है। twocircles.net ने कई दिन यहां सुबह, शाम और रात के पूरा माहौल का जायज़ा लिया। पेश है धरना स्थल की ग्राउंड रिपोर्ट-
शाहीन बाग़ में धरने के की यह जगह कालिंदी कुंज और जसोला विहार-शाहीन बाग़ मेट्रो स्टेशन के बीच है। दोनों ही मेट्रो स्टेशन से यह जगह क़रीब एक किलोमीटर दूर है। पैदल आना पड़ता है। हमारी टीम ने यहां सुबह, दोपहर, शाम और रात को जाकर जायज़ा लिया। मेट्रो स्टेशन से उतरते ही लोग CAA, NPR और NRC के ख़िलाफ़ नारे लगाते हुए मिल जाते हैं। रास्ते में आपको धरने में जाने वाले भी मिलेंगे और धरने से वापसी करते हुए लोग भी। अक्सर लोग तीन से पांच के ग्रुप में होते हैं। युवा, बुज़ुर्ग, महिला या बच्चे नज़र आते हैं। मकानों के ऊपर और गलियों दुकानों में लगे तिरंगे खुद-ब-ख़ुद आपको शाहीन बाग़ में धरने की जगह तक ले जाते हैं।
शेर–ओ–शायरी और नारेबाज़ी का माहौल
धरने की जगह पर क़रीब 50 मीटर लंबाई का टेंट लगा है। इसे चारों तरफ से बंद किया गया है। ऊपर से छत भी बनाई गई है। बारिश में भी महिलाएं यहां बैठी रहती हैं। यहीं एक छोटा-सा मंच है। यहां बारी-बारी से लोग अपनी बात रखते हैं। इस मंच पर पुरुष कम, महिलाएं और बच्चे ज़्यादा होते हैं। कुछ स्थानीय लोग मंच से लगातार बारी-बारी भाषण करते रहते हैं। कोई बड़ा नेता या मशहूर हस्ती आती है तो उसे मंच दे दिया जाते हैं। बीच-बीच में बच्चों की टोलियां मंच पर चढ़कर नारे बाज़ी करती हैं। बच्चों को नारेबज़ी में खूब मज़ा आता है।
यहां कोई सीएए और एनआरसी पर ख़ुद की लिखी कविता या शायरी पढ़ता है तो कोई किसी मशहूर शायर की नज़्म या ग़ज़ल सुनाता है। ज़्यादातर लोग फैज़ की मशहूर नज़्म ‘हम देखेंगे’ पढ़ते हैं। किसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृहमंत्री अमित शाह पर पूरा गाना रच दिया है। मशहूर शायरों और आज़ादी की लड़ाई में गाए गए गीत और नारे भी मंच पर लगते रहते हैं। टेंट के इर्द-गिर्द बड़ी संख्या में महिलाएं और पुरुष खड़े रहते हैं। ये लोग मंच पर बोल रहे बच्चों या लोगों की बाते सुनते हैं और ताली बजाकर, इनकी हौसला अफ़ज़ाई भी करते रहते हैं।
पंडाल के बाहर प्रदर्शन के अलग-अलग तरीक़े दिखाई दिए। छोटे-बड़े समूहों में लोग या तो हबीब जालिब का लिखा ‘मैं नहीं मानता, मैं नहीं जानता’ गा रहे होते हैं तो कहीं ‘मोदी तेरी तानाशाही, नहीं चलेगी-नहीं चलेगी’ जैसे नारे लगा रहे होते हैं। कहीं छोटे बच्चे आज़ादी के नारे लगा रहे होते हैं। चार छोटी बच्चियों का समूह अक्सर ‘हम जेल मे ईद मनाएंगे, हम कागज़ नहीं दिखाएंगे’ नारे लगाता हुआ दिख जाता है। बीच-बीच में यह झुंड अचानक ही एकजुट होकर उसी आधा किमी के क्षेत्र में एक छोटी-सी रैली का रूप भी ले लेता है। इस दौरान इनका जोश दोगुना हो जाता है।
पोस्टर–बैनर बनाने के मुकम्मल इंतज़ाम
धरन की जहग पर पोस्टर, बैनर और प्लेकार्ड बनाने का मुकम्मल इंतेज़ाम हैं। इसके लिए एक तम्बू बना है। यहां लड़के और लड़किया लगातार पोस्टर बनाते रहते हैं। कोई भी यहां बैठकतर पोस्टर बना सकता है। बैनर लबना सकता है। नारे लिख सकता है। पैदल पारपथ फुटऑवर ब्रिज पर भी प्रदर्शनकारियों का क़ब्ज़ा है। ब्रिज पर भी सारा सामान रखा हुआ है। जिसे जैसा पोस्टर बनाना हो, यहां बैठकर बना सकता है। यहां पोस्टर सामग्री जुटा रहे एक शख्स ने बताया कि रोजाना पांच सौ से हज़ार लोग अपने हिसाब से पोस्टर बनाते हैं। उन्हें जो लिखना होता है, वो लिखते हैं।
पोस्टर के लिए जरूरी चीजें कौन उपलब्ध कराता है, इस पर वे बताते हैं कि कोई काग़ज़, कपड़ा दे देता है तो कोई दूसरी चीजें सौंप देता है। इसी तरह पूरी सामग्री इकट्ठा होती है। ये पोस्टर कहीं लोगों के हाथ में दिखाई देते हैं तो कहीं फुटऑवर ब्रिज पर टंगे दिखते हैं। शाहीन बाग की दीवारें नारों से पटी पड़ी हैं तो सड़कों पर भी तरह तरह की पेंटिंग्स के साथ एनआरसी और सीएए का विरोध किया जा रहा है। किसी जगह इन पोस्टरों के साथ ही कुछ किताबों का संग्रह भी दिख जाएगा।
भारत का नक्शा, इंडिया गेट और डिटेंशन सेंटर का मॉडल
धरने की जगह के पास भारत का एक 35 फीट ऊंचा नक्शा बनाया गया है। इसे क़रीब ढाई टन के लोहे से बनाया गया है। इस पर एक तरफ़ हिंदी में तो दूसरी तरफ अंग्रेज़ी में लिखा है, ‘हम भारत के लोग CAA, NPR और NRC को ख़ारिज करते हैं।’ इस नक्शे के एक ओर पूरे समय मशाल जलती रहती है। दूसरी ओर महंगाई को दिखाने के लिए एक बड़ी-सी थाली में प्याज रख दिए गए हैं।
यहीं पर इंडिया गेट का लकड़ी का मॉडल बनाया गया है। इस पर नागरिकता संशोंधन क़ानून का विरोध करने वाले के नाम बतौर शहीद लिखे गए हैं। सड़क के दूसरी तरफ डिटेंशन कैम्प के मॉडल भी बना हुए हैं। लोग डिटेंशन सेंटर में खड़े होकर सेल्फी लेते हैं। फोटो खिचवाते हैं। कुछ लोग इंडिया गेट के सामने मोमबत्ती लेकर बैठे हुए हैं। इसी तरह अलग-अलग समूहों में ये लोग सड़कों पर मोमबत्तियां जलाकर बैठे हैं।
सिख चला रहे हैं लंगर, परोसा जा रहा खाना, कहीं गाड़ी से बांटी जा रही बिरयानी; सिख समुदाय के कुछ लोगों ने यहां लंगर शुरू किया है। रात को खाना परोसा जाता है। बीच-बीच में बिरयानी से भरी गाड़ियां भी शाहीन बाग़ में आ जाती हैं। ये खाना कहां से आता है किसी को कुछ पता नहीं। बस आ जाता है। जब हमारी टीम वहां थी तो हमने देखा कि वहां प्रदर्शन में आए एकर शख्स ने किसी को फोन करके बिरयानी की पांच देग़ भिजवाने को कहा। सिख समुदाय का समर्थन यहां लगातर मिल रहा है। एक दिन पंजाब के मोगा से क़रीब एक हज़ार लोगों का जत्था यहां आया। पूरे दिन आंदोलन के अपना समर्थन दिया। साथ ही लंगर लगाकर सभी को खाना खिलाया और चाय पिलाई।
फ्री मेडिकल कैंप भी
मंच से पीछे फ्री मेडिकल कैम्प भी लगाया गया है। यहां मेडिकल चेकअप के साथ-साथ चोट लगने या छोटी-मोटी बीमारी के लिए दवाओं का भी इंतजाम है। वॉलेंटियर आबिद शेख़ बताते हैं कि खाने-पीने की व्यवस्था लोग खुद ही कर रहे हैं। जिसे जो लगता है वो आकर यहां लोगों को खिलाने लगता है। सिख समुदाय के लोगों ने लंगर चालू कर दिया। हिंदू-मुस्लिम भाई भी समय-समय पर खाने से भरी गाड़ियां लेकर आ जाते हैं। प्रदर्शन को खत्म करने के लिए भी नए-नए तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं, लेकिन जो भी यहां से एक बार आता है, वो समझ जाता है कि कितने अच्छे से और शांति से यहां लोग प्रदर्शन कर रहे हैं।
चेहरों पर तिरंगे से रंगने के का क्रेज़
शाहीन बाग़ के प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे लोगों ने अपने चेहरे पर तिरंगा रंगने का ज़बरदस्त क्रेज़ है। लोगों के चेहरों पर भगवा, सफेद और हरा रंग पोत रहे एक वालंटियर ने बताया, ‘सुबह से शाम तक तो चेहरे पर तिरंगा बनवाने के लिए कम भीड़ होती है, लेकिन रात के वक़्त तो लाइन ही नहीं टूटती। हम लोग थक जाते हैं तो कोई और रंगों की डब्बी संभाल लेता हैं। 15-20 लोगों की टीम है। कभी-कभी ये भी कम पड़ जाती है।‘
कैसे हो रहा है इस पूरे विरोध प्रदर्शन का प्रबंधन?
वॉलेंटियर टीम के सदस्य आबिद शेख़ कहते हैं कि सभी लोगों के आपसी तालमेल के साथ ये प्रदर्शन आगे बढ़ रहा है। जिसे मंच से अपनी बात रखना है, वो रखता है। बाकी लोगों को जहां जगह मिलती है, वहां वे पोस्टर-बैनर, गाना-बजाना आदि के जरिए विरोध प्रदर्शन करते हैं। हमें कुछ चीजों का ध्यान रखना होता है। जैसे- मंच से कुछ ऐसी बातें न निकले कि बवाल खड़ा हो, रोड पर जो समूह अपने-अपने अंदाज में प्रदर्शन कर रहे हैं, वे भी किसी तरह से गलत ट्रैक पर न जाएं। वैसे ऐसा हुआ नहीं है, क्योंकि यहां कोई अराजक तत्व नहीं हैं। अगर हमें कोई अराजक तत्व जैसा कुछ दिखता भी है तो लोग उसे प्रदर्शन वाले इलाके से बाहर कर देते हैं।