सुमन देवठिया
समय कोरोना महामारी पूरे देश मे फ़ैल रही है जिसकी चपेट मे भारत भी है, इस कोरोना ने ना केवल इंसान के स्वास्थ्य को प्रभावित किया है बल्कि इंसान के रोजगार, आजादी और पसंद को छीन लिया है।कोरोना ने लोगो की आजादी, रोजगार, स्वतंत्रता व पसंद को तो छीना ही है साथ मे इस का प्रभाव महिलाओं पर शारीरिक व मानसिक रूप से बहुत नकारात्मक पड़ा है, इस कोविड 19 के दौरान घरो मे होने वाली हिंसा के आँकडे भी बढे है, जिसकी पुष्टि WHO द्वारा जारी किये गये आँकडो और व्यक्त्व्य मे भी साफ़ तौर पर की है।
इन महिलाओं मे भी अगर दलित महिलाओ की बात करे तो ये दलित महिलाये शारीरिक हिंसा की शिकार तो हुई है ही लेकिन अन्य महिलाओ की तुलना मे मानसिक पीड़ा की शिकार ज्यादा हुई है, क्योंकि हमारे देश के श्रमिक व पलायनी परिवारो को देखा जाये तो हम पाएंगे कि इनमे सबसे ज्यादा दलित परिवार ही होते है, इन परिवारो को भी बारिकी से देखे तो पता चलता है कि सबसे ज्यादातर दलित महिलाये पुरुषों के साथ मजदूरी का काम करती है।
पलायनी परिवारो की मजदूरी असंगठित क्षेत्रो पर निर्भर रहती है जैसे ईंट-भट्टा, फ़ेक्ट्री, ठेकेदारी, रोजाना मजदूरी आदि रोजगार के साधन रहे है। इस कोरोना की वजह से इन्हें वापिस अपने घरों मे आना पड़ा है जहा पर उनके लिए ना कोई रोजगार है और ना ही रहने, खाने व पीने की व्यवस्था है।
राजस्थान की पूनम वर्मा सामाजिक कार्यकर्ता, दलित वीमेन फ़ाइट से बात करने पर पता चलता है कि “कोविड-19 की वजह से बेरोजगारी ज्यादा बढ़ गई है लोग आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं, महिलाओं के साथ शारिरिक व मानसिक प्रताड़ना भी बढ़ गयी है और इस कोरोना की वजह से शिक्षा भी प्रभावित हुई है जो पहले से ही दलित बच्चों मे कम साक्षरता का प्रतिशत रहा है,” आज भी पलायन किये हुये कुछ दलित परिवारो के पास अपने दस्तावेज पुरे नहीं है जिसकी वजह से भी उनको सरकारी योजनाओं का लाभ नही मिल पा रहा है।
राजस्थान की रहने वाली “सामुहिक दुष्क्रर्म की पिडित नाबालिग बालिका की माँ का कहना है कि पहले ही लोग हमारे साथ बहुत जातिगत भेदभाव करते थे और हमे मजदूरी देते हुये भी कतराते थे तो इस कोविड ने तो हमे और ज्यादा अछूत बना दिया है, अगर ओर लंबा यह कोविड 19 रहा तो कही मेरे समुदाय की महिलाये जो अपना जातिगत व्यवसाय छोड़ कर स्वाभिमानी रोजगार करने लगी थी ,मतलब हम खुली दिन दहाड़ी मजदूरी करने लगे थे तो कही इस कोरोना की वजह से हमे हमारा पैतृक व्यवसाय करने को मजबूर ना हो जाये।दलित महिलाओ के साथ काम करने पर हमारा यह भी अनुभव रहा है कि यह कोरोना दलित मजदूर महिलाओं को जातिगत व्यवसाय करने पर मजबूर कर रहा है।
इन सभी उदाहरणो से साबित होता है कि आज भी दलित महिलाओ को मजदूरी की परेशानी तो हुई है ही लेकिन उनकी, स्वतंत्रता, आजादी, पसंद और स्वाभिमान की हत्या इस कोरोना की आड़ मे प्रभावशाली लोगों ने व घरो की पुरुष सत्ता ने भी की है।
इस सच्चाई को हमे जान लेना चाहिए कि आज दलित महिलाये अपनी जाति, जेण्डर, गरीबी व कोविड 19 की वजह से कैसे अपनी जिंदगी को जी रही है, क्योंकि दलित महिलाये हमेशा जाति, जेण्डर, व आर्थिक आधार पर प्रताड़ित व प्रभावित होती है जिसके कारण उन पर ज्यादा अत्याचार बढ जाते है, ऐसी स्थिति मे कोविड 19 ने उनके जीवन यापन को ओर ज्यादा प्रभावित कर दिया है, दलित महिलाये ज्यादातर रोजाना की मजदूरी पर निर्भर रहती है और एक जिला व राज्य से दूसरे जिला व राज्यो मे मजदूरी की वजह से पलायन करना पड़ता है। इस कोविड 19 की वजह से मजदूरी बन्द होने के कारण उन्हें वापिस अपने मूल निवास पर आना पड़ा है जहा पर उनके लिए जीवन यापन करने के लिए कुछ भी रोजगार या सहायता नहीं है जिससे वो अपना गुजारा भत्ता कर जीवन को जी सके,
इस कोविड 19 ने दलित महिलाओ मे जो महिलाये विधवा, परित्यक्ता, एकल नारी, बुजुर्ग व विकलांग महिलाये है उनके जीवन बहुत ज्यादा प्रभावित हुये है, इस कोविड 19 के दौरान भी दलित महिलाओ के साथ जाति आधारित अपराध मे बलात्कार, हत्या जैसे जघन्य अपराध भी हुये है जिन्हे स्थानीय पुलिस ने गम्भीरतापूर्वक नहीं लिया है और पिडित न्याय के लिए दर दर भटक रहे है, कोविड 19 की के समय मे लोक डाउन के दौरान हुये दलित अत्याचारो की बात करे तो केवल सरकारी आँकडे बताते है कि वर्षवार माह मई तक वर्ष 2018 मे कुल 1938, वर्ष 2019 मे 2371 और वर्ष 2020 मे कुल 2529 दर्ज हुये है, इन प्रकरणो मे हत्या, दुष्र्क्रर्म जैसे गम्भीर अपराधो का आंकलन करे तो पता चलता है कि वर्ष 2018 के माह मई तक हत्या 32, वर्ष 2019 में 33 और वर्ष 2020 मई तक 23 मामले दर्ज हुये है इन कुल प्रकरणो मे वर्ष 2018 मे दुष्क्रर्म के 171 वर्ष 2019 मे 201 व वर्ष 2020 मे 186 मामले दुष्क्रर्म के दर्ज हुये है,
दलित महिला मानवाधिकार कार्यकर्ता जया कटारिया बताती है कि इस लोक डाउन के दौरान राजस्थान मे दलित समुदाय पर गम्भीर अपराध हुये है इन गम्भीर मामलो मे जोधपुर जिला के बासनी क्षेत्र मे दलित की हत्या, नागौर जिला के नान्वा क्षेत्र मे दलित व्यक्ति की हत्या , पाली जिला के रोहट थाना अंतर्गत दलित युवक की हत्या व टोन्क जिला की तहसील दूनी मे दलित मासुम बच्ची के साथ बलात्कार कर हत्या व निवाई तहसील मे बाल्मीकी समाज के बाल नहीं काटने का मामला व सवाई माधोपुर मे दलित समुदाय पर जानलेवा हमला करने के प्रकरण है इन प्रकरणो मे प्रभावी कार्यवाही नहीं होने की वजह से मानवाधिकार कार्यकर्ताओ का हस्तक्षेप रहा है जिससे पिडित लोगों को न्याय मिलने मे मदद मिली है, इस तरह से बहुत ऐसे प्रकरण है जिनकी अभी तक मुख्य मीडिया मे खबर नहीं आयी है जिसके कारण लोग उनकी मदद नहीं कर पा रहे है और ना ही लोग कार्यकर्ताओ तक पहुंच पा रहे है।
राजस्थान मे दलित परिवारो के पास जो लघु उधोग थे वह भी कोविड 19 की वजह से ख़त्म हो गये है क्योंकि इस कोविड 19 के डर व संक्रमित होने के डर से लोगों ने सामान लेना व खरीददारी करना बन्द कर दिया, सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं का लाभ भी इन परिवारो को पूर्णरूप से नहीं मिल पा रहा है, कुछ परिवार तो ऐसे भी है जिनको सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधा का भी नहीं पता है, इसलिए इस कोविड 19 की वजह से रोजगार नहीं है, जाति व जेण्डर आधारित अत्याचार हो रहे है लेकिन उनके पास कोई रोजगार का साधन व मदद के लिए लोग नहीं है, दलित महिला मानवाधिकार कार्यकर्ता मोहिनी बाई कहती है है कि इस लोकडाउन की वजह से मेरे टिफ़िन सेन्टर व केटरीन का काम ठप हो गया, मै इस कोविड से पहले अपना जीवन इस लधु व्यवसाय से गुजार रही थी जो अब इस कोविड ने छीन लिया है,हम दलित महिलाये इस परम्परागत आचरण और रीति को तोड़कर एक स्थायी निवास, आजादी व स्वाभिमान के साथ जीना चाहते है ताकि हम इस मानव जीवन को आसानी से जी सके, हम इस देश के श्रमिक है लेकिन अपनी रोजी रोटी को स्वाभिमान से पाना चाहते हैं वो चाहे सरकार हो या समाज हो, हमे लगता है कि इस सच्चाई को बाहर लाने के लिए सरकार या संस्थाओ को एक अध्ययन करना चाहिए ताकि इस अत्याचार, रोजगार व स्वास्थ्य की हकिकत उजागर हो सके।