मौजूदा दौर में जहाँ एक तरफ़ कोरोना महामारी, बाढ़ के पानी से तटीय इलाकों की स्थिति ठीक नहीं, महंगाई की मार का दूर-दूर तक कोई ज़िक्र नहीं, वहीं इसी बीच बिहार के विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. कोरोना महामारी के बीच बिहार का चुनाव होना ही राजनेताओं के लिए बड़ी ‘उपलब्धि’ है इस बात की कि उन्होंने जनता के मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझ रखा है लेकिन देखना ये दिलचस्प होगा कि बिहार की इस राजनीति में आखिर वे कौन से मुद्दे होंगे जिस पर बिहार के नागरिकों का अलग-अलग वर्ग अपने तरीके से वोट करेगा,यह जानने के लिए Twocircles.net के किशनगंज से संवाददाता नेहाल अहमद ने बिहार के पढ़े- लिखे युवाओं से बात की है।
किशनगंज की कोमल कशिश मास कम्युनिकेशन की छात्रा हैं. कहतीं हैं कि मैं पढ़ाई के दौर घर से दूर रही. 7 वर्ष होस्टल और बाकी के साल दिल्ली में रही. इस वर्ष 2020 में यह पिछले 11 वर्षों में यह पहला मौका है जब पिछले 10 महीने से मैं घर में हूँ. इसे मैं अपने लिए कोई अच्छा अवसर नहीं समझती. जब मैं एक अरसे पर नज़र डालती हूँ तो मुझे एक बात निराश करती है कि मेरा ज़िला बिहार में साक्षरता में बहुत पिछड़ा है. कई सांसद, विधायक को इसे सुधारने का मौका मिला लेकिन किसी ने शिक्षा को सीरियसली नहीं लिया. आज भी आंकड़ों में बहुत ज़्यादा परिवर्तन देखने को नहीं मिला है. मैं जवाहर नवोदय विद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय में अपने माता-पिता की वजह से अध्ययन कर सकी क्योंकि वो मेरे अध्ययन को लेकर सचेत थे और शिक्षा के महत्व को समझते थे लेकिन हर किसी को समान अवसर कई कारणों से नहीं मिलता. हमारे ज़िले के ज़्यादातर लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं. उनके पास ज़िंदगी के कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए पैसे नहीं है जिस वजह से वो शिक्षा जैसे दीर्घकालीन कार्यों के लिए वो पैसे नहीं लगा सकते. इन कठिनाइयों के पीछे सरकारी स्कूलों का ठीक तरह से न चलना भी बड़ा कारण है.
इसकी जड़ें मज़बूत नहीं है और कोई इसकी ज़िम्मेदारी नहीं लेना चाहता. यहाँ तक कि वो भी नहीं जो इससे संबंधित पदों पर सरकारी कर्मचारी के तौर पर बैठे हैं. मुझे इस स्थिति को देखकर सरकार के रवैये पर गुस्सा आता है और बड़ी निराशा होती है.
कटिहार निवासी मोहम्मद साजिद अली जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलीगढ़ के छात्र हैं उन्होंने कहा कि बिहार में कई तरह की चुनौतियों का सामना लोगों को करना पड़ता है. बिहार में किसानों, विद्यार्थियों एवं आम जन की कई समस्याएं हैं जिन पर बात होनी चाहिए और मुझे लगता है कि जनता इन सब मुद्दों को वोट देते वक़्त अपने ध्यान में रखेगी. खेती के लिए किसानों को कीटनाशकों की कमी, उर्वरकों की निम्न गुणवत्ता है. उचित मूल्य का तय न होना, मंडी का अभाव, जल जमाव एवं सुखाड़ की समस्यायें हैं. खेतों के चकबन्दीकरण की भी बहुत जरूरत है ताकि कई तरह की परेशानियों एवं विवादों से बचा जा सके.
बेगूसराय के दृष्टिबाधित विकलांग छात्र मोहम्मद ज़ाकिर आलम कहते हैं कि बिहार में विकलागों के अधिकारों की अनदेखी होती है. रोज़गार के अवसरों में आरक्षण के घपले को रोका जाये. कथित तौर पर उनका कहना है कि सामान्य अभ्यर्थी कई बार विकलांगों के सीट पर कब्जा जमा लेता है. महंगाई एवं भ्र्ष्टाचार पुराने मुद्दे हैं जिन पर नये तरीके से बात होनी चाहिये. पिछले विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी ने जिस नीतीश कुमार की सरकार पर ‘जंगलराज’ का आरोप लगाया था उस नरेंद्र मोदी के लिए इस बार नीतीश ‘सुशासन बाबू’ हो गए हैं. बिहार के राजकीय विश्वविद्यालयों का हाल बुरा है. सत्र को नियमित रूप से चलाकर खानापूर्ति बंद करना चाहिए. इस बात पर बल देते हुए व्व कहते हैं कि कॉलेज, ब्लॉक हर जगह के कर्मचारियों का वेतन वक़्त पर आ जाता है लेकिन वो शिक्षक जिनका काम समाज निर्माण का है उनका वेतन लंबित रहता है.नियमित रूप से उन्हें वेतन देना चाहिए ताकि वो जिन कार्यों के लिए हैं उन कार्यों पर ज़रूरी ध्यान दे सकें.
अररिया के याहया रहमानी कहते हैं कि सरकारी और निजी स्कूल का भेद मिट सा गया है. चिकित्सा के क्षेत्र की व्यवस्था पर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहते हैं कि निजी डॉक्टरों की फ़ीस बहुत ज़्यादा है जिसे एक आम आदमी के लिए वहन करना आसान नहीं होता जिस कारण उन्हें सरकारी अस्पतालों का रूख करना पड़ता है जहाँ उन्हें उच्च कोटि की लापरवाही दिखती है. कई बार गर्भवती महिलाओं को खुले में ही प्रसव के दौरान देखना आम बात हो गई है. खेती के लिए बिजली-पानी नहीं मिलता है. पानी में आयरन की समस्याओं से स्थानीय लोगों को बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. बिहार सरकार के ‘जल योजना’ का क्या हुआ ? उसकी क्या स्थिति है ये जगज़ाहिर है. जनप्रतिनिधियों की उदासीनता पर बल देते हुए वो अंत में कहते हैं कि यह कह अंत में रहा हूँ लेकिन ये सबसे बड़ी समस्या है कि सरकार चाहे किसी की भी हो, जनप्रतिनिधियों की ग़ैर-मौजूदी जनता को उदासीनता की तरफ़ ले जाती है. जनप्रतिनिधी हमेशा स्थानीय इलाके में नहीं रहते. उन समस्याओं से रूबरू नहीं होते. केवल पटना-दिल्ली में बैठकर वो ज़मीनी समस्याओं को कैसे सुलझायेंगे ? केवल चुनाव के समय जनप्रतिनिधियों की सक्रियता विशेष रूप से बढ़ जाती है जो पूरे कार्यकाल के अधिकांश वक़्त में नहीं दिखती.
मधेपुरा निवासी मृत्युंजय कुमार कहते हैं कि बिहार में रोज़गार के अवसरों की कमी है. नीतीश कुमार ने अपने 15 वर्षीय कार्यकाल में कितने कारखाने खोले और कितने बंद पड़े कारखानों का जीर्णोद्धार किया ? अपराध के मामले बिहार में कम नहीं है. आम आदमी सुरक्षित नहीं है. दबंगों से समाज पर आधिपत्य जमा रखा है. कई सर्वे व रैंकिंग में भी बिहार पीछे है. राजकीय विश्विद्यालय एवं उससे संबंधित कॉलेजों में कक्षाओं का संचालन न के बराबर है. कई बार शिक्षकों के ‘ज्ञान’ का प्रदर्शन हमें न्यूज़ चैनल में देख बड़ी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है जब शिक्षकों को ही उसका ठीक ढंग से ज्ञान नहीं होता. कई बार सोशल मीडिया पर वो हमें देखने को मिल जाता है. टॉपर घोटाला किसी से छुपा हुआ नहीं है.
दरभंगा के ओसामा हसन कहते हैं कि सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी और क्वालिटी एजुकेशन की खस्ता हालत है. प्रत्येक प्रखण्ड में +2 तक के स्कूल की सुविधा और 2 ब्लॉक पर एक डिग्री कॉलेज की सुविधा होनी चाहिए जो नहीं है ताकी स्टूडेंट्स को डिग्री तक के एजुकेशन के लिए जिला हेड क्वार्टर नहीं आना पड़े. दरभंगा शहर में स्वास्थ्य सेवाएं काफी महंगी हो गयी है, इस पर लगाम लगाने की आवश्यकता है. इस शहर में वाटर लॉगिंग का मसला है, बारिश होने पर शहर में आवागमन में दिक्कत होती है. बारिश के दिनों में दरभंगा मेडिकल कॉलेज के परिसर में पानी लगता है जिसकी वजह से मरीज़ और अटेंडेंट को काफ़ी परेशानियों का सामना करना होता है. दरभंगा के प्रत्येक ब्लॉक में एक रेफेरल अस्पताल की ज़रूरत है जिसमें सारी सुविधाएं मौजूद हों. ग्रामीण सड़कों का खस्ता हाल है.
पटना के अविनाश कुमार कहते हैं कि बिहार में भौतिक क्षमताओं का सर्वोत्तम उपयोग किया जाना चाहिए. लड़की, जुट व टिम्बर उद्योग स्थापित होने एवं खनिज के उपयोग से बिहार को समृद्ध बनाये जाने की दिशा में कदम उठाया जा सकता है. करीब 40 किलोमीटर गंगा का भाग एक ही ज़िला पटना से होकर गुज़रता है जिससे लघु-मध्यम व्यापारों जैससे मछुआरों के पेशे को बेहतर किया जा सकता है. खेती को बढ़ावा देकर बिलजी का उत्पादन सुचारू रूप से कर मजदूरों के पलायन को रोका जा सकता है. राजकीय विश्विद्यालय की स्थिति को बेहतर करने के लिए सत्र को नियमित कर अनियमितताओं को ख़त्म किया जाना चाहिए. इन विश्विद्यालयों को डिजिटल सुविधाओं से जोड़कर विद्यार्थियों की कई तरह की समस्याओं का ऑनलाइन निवारण कर मुख्य रूप से शिक्षा को बढ़ावा दिया जा सकता है. बाढ़ग्रसित इलाकों में रह रहे छात्रों के लिए उनके संबंधित संस्थानों में उनके राहत के लिए विशेष लचीले नियम का प्रावधान हो जिससे उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में नई कठिनाइयों का सामना न करना पड़े. बाढ़ की समस्याओं से निपटने एवं क्षति को कम करने की तरफ़ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के ज़रिये बढ़ा जा सकता है. इसके लिए आपदा प्रबंधन विभाग को नये सिरे से पहल करने की ज़रूरत है. बिहार में बाढ़ की समस्या कोई नई नहीं है.
फस्ट टाइम वोटर के तौर पर बलरामपुर विधानसभा (कटिहार) के नफ़ीस अकबर कहते हैं कि कुछ बेहतर कार्य हुआ ही नहीं है. बतौर युवा मैंने सोंचा जब कार्य हो ही नहीं रहा तो ऐसे लोगों को मैं किस आधार पर अपना नेता चुन लूं ? हमारे यहाँ सड़कों का बुरा हाल है. हर साल बाढ़ आती है जिससे घर के घर तबाह हो जाते हैं और लोग परेशान रहते हैं. योजना का लाभ निचले स्तर तक नहीं पहुंचता है और आसानी से बिना भ्र्ष्टाचार के ज़्यादातर काम नहीं हो पाता है.