आकिल हुसैन।Twocircles.net
वाराणसी की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मामले में मस्जिद परिसर की पुरातात्विक जाँच कराने के आदेश जारी किया है। मस्जिद कमेटी और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वे कोर्ट के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे। जाँच कराने के आदेश जारी किया है।
यह आदेश वाराणसी फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज आशुतोष तिवारी ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ़ इंडिया को सर्वे कराने के दिए हैं। इसके अनुसार पुरातात्विक सर्वेक्षण 5 सदस्यीय पुरातत्व टीम करेंगी जिसमें से दो सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय से होंगे। सर्वेक्षण की मांग को लेकर विजय कुमार रस्तोगी की तरफ से याचिका दायर की गई थी।
वाराणसी की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र के ज़रिए पुरातत्व विभाग की पाँच सदस्यीय टीम बनाकर पूरे मस्जिद परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने इस मामले में
5 विशेषज्ञों की टीम बनाने के आदेश दिए हैं जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय के भी 2 लोग शामिल होंगे। कोर्ट के आदेश के अनुसार एएसआई की कमेटी जांच करेगी कि क्या मौजूदा ढांचा किसी इमारत को तोड़कर बना है या फिर इमारत में कुछ जोड़कर मौजूदा ढांचा बना है। मौजूदा ढांचा किस शैली का बना है और कितना पुराना है इस बात की भी जांच करेगा। सर्वेक्षण मस्जिद की एक बीघा 9 बिस्वा जमीन पर होगा।
10 दिसंबर 2019 को प्राचीन मूर्ति ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के लिए एक याचिका कोर्ट में दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि मंदिर के अवशेष मस्जिद परिसर में मौजूद हैं। साथ ही याचिका में यह भी दावा किया था कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वेश्वर मंदिर का एक अंश है। वहीं ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी ने प्रतिवाद दाखिल करते हुए कहा था कि मस्जिद उस जगह पर हमेशा से कायम हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर कमेटी की ओर से यह मामला सन् 1991 से चल रहा है।पंडित सोमनाथ व्यास, संस्कृत के प्रोफेसर डॉ रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने कोर्ट में मुकदमा दायर किया था जिसमें से सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा का निधन हो चुका है। दायर याचिका में कहा गया था कि मंदिर अनंतकाल से है और 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। अकबर के शासन के दौरान भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। याचिकाकर्ता का दावा है कि 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब के फरमान पर ‘स्वयंभू भगवान विशेश्वर’ का मंदिर गिरा दिया और उसके स्थान पर मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल करते हुए मस्जिद का निर्माण किया गया।
इस मामले में 2019 में बनारस की दीवानी कोर्ट में स्थानीय अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने मंदिर कमेटी की ओर से याचिका दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद आ सर्वेक्षण कराने की मांग करी थी जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद की ओर से अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की ओर से प्रतिवाद दाखिल किया गया था। कोर्ट द्वारा दिए मस्जिद के सर्वेक्षण के आदेश को अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने हाईकोर्ट में चुनौती देने की बात कही है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता असद हयात ने Two circles.net से बात करते हुए कहा कि बनारस ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का बनारस जिला न्यायालय का आदेश दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा अभी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सुनवाई के उपरांत फैसला सुरक्षित था और निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक थी। मस्जिद कमेटी ने निचली अदालत के समक्ष हाई कोर्ट के आदेश प्रस्तुत किये थे मगर सभी कुछ अनदेखा करते हुए निचली अदालत का आया फैसला हैं।
असद हयात ने बताया कि Places of worship act 1991 के अनुसार जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी , वही क़ायम रहेगी। इस कानून की रोशनी में बनारस कोर्ट का आदेश बिना क्षेत्राधिकार है और बेबुनियाद हैं। जब कानून ही किसी दीवानी वाद को चलाने की इजाज़त नहीं देता तो फिर अदालत उसको जबरन और मनमाने तरीके से नहीं चला सकती हैं।