स्टाफ रिपोर्टर।Twocircles.net
दिल्ली के साकेत अदालत ने कुतुब मीनार परिसर में पूजा शुरू करने का अनुरोध वाली एक याचिका को ख़ारिज कर दिया है। अदालत ने अयोध्या भूमि विवाद मामले के फैसले का जिक्र करते हुए इस याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा कि वर्तमान और भविष्य में शांति भंग करने के लिए पिछली गलतियों को आधार नहीं बनाया जा सकता है। अदालत ने यह फैसला जैन देवता तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव और हिंदू देवता भगवान विष्णु की ओर से दायर याचिका में सुनाया है।
अदालत में दायर याचिका में कहा गया कि दिल्ली पर साल 1192 तक प्रसिद्ध हिंदू राजाओं का शासन था, जब मुहम्मद गोरी ने 1192 ईस्वी में युद्ध में राजा पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण किया और उन्हें हराया था। याचिका में दावा किया गया कि मुहम्मद गोरी की सेना में जनरल रहे कुतुबद्दीन ऐबक ने 27 मंदिरों को आंशिक रूप से ध्वस्त कर उनकी सामग्री का पुन: उपयोग करके कुतुबमीनार परिसर के अंदर कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण कराया था।
याचिका में कहा गया है कि प्रमुख देवता तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव और प्रमुख देवता भगवान विष्णु, भगवान गणेश, भगवान शिव, देवी गौरी, भगवान सूर्य, भगवान हनुमान सहित 27 मंदिरों के पीठासीन देवताओं की क्षेत्र में कथित मंदिर परिसर में पुन: प्राण प्रतिष्ठा करने और पूजा करने का अधिकार मिले। साथ ही अधिवक्ता विष्णु एस जैन के इस याचिका में में ट्रस्ट अधिनियम 1882 के अनुसार, केंद्र सरकार को एक ट्रस्ट बनाने और कुतुब क्षेत्र में स्थित मंदिर परिसर का प्रबंधन और प्रशासन उसे सौंपने के लिए अनिवार्य निषेधाज्ञा जारी करने का अनुरोध किया गया था।
दिल्ली की साकेत अदालत ने कहा कि मुकदमा पूजा स्थल अधिनियम 1991 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है और अदालत ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 (ए) के तहत याचिका खारिज कर दी। याचिका ख़ारिज करते हुए जस्टिस नेहा शर्मा ने कहा कि भारत का सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इतिहास रहा है। इस पर कई राजवंशों का शासन रहा है। हालांकि, दोनों पक्षों में से किसी ने भी इस बात से इनकार नहीं किया कि अतीत में गलतियां की गई थीं, लेकिन इस तरह की गलतियां हमारे वर्तमान और भविष्य की शांति को भंग करने का आधार नहीं हो सकती हैं।
जस्टिस नेहा शर्मा ने कहा कि हमारे देश का एक समृद्ध इतिहास रहा है और इसने चुनौतीपूर्ण समय देखा है। फिर भी इतिहास को समान रूप से स्वीकार करना होगा। क्या हमारे इतिहास से अच्छे हिस्से को बरकरार रखा जा सकता है और बुरे हिस्से को मिटाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जब किसी संरचना को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया गया है और यह सरकार के स्वामित्व में है, तो वादी यह मांग नहीं कर सकते हैं कि ऐसी जगह पर पूजा का स्थान बनाकर धार्मिक कार्य किए जाएं।
जस्टिस नेहा शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए अयोध्या भूमि विवाद पर फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि हम अपने इतिहास से परिचित हैं और राष्ट्र को इसका सामना करने की आवश्यकता है। अतीत के घावों को भरने के लिए कानून को अपने हाथ में लेने वाले लोगों द्वारा ऐतिहासिक गलतियों का समाधान नहीं किया जा सकता है। यह याचिका हरिशंकर जैन की ओर से पिछले वर्ष भगवान ऋषभ देव और हिंदू देवता भगवान विष्णु के नाम से दाखिल की गई थी।