Home Adivasis सवालों के प्रहार तले डेल्टा मेघवाल की मौत

सवालों के प्रहार तले डेल्टा मेघवाल की मौत

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

नोखा (राजस्थान) : राजस्थान के बीकानेर जिले के नोखा में स्थित ‘श्री जैन आदर्श कन्या शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालय’ के परिसर में हुई 17 वर्षीय डेल्टा मेघवाल की मौत ‘सामान्य मौत’ क़तई नहीं है. यह मौत अपने आप में एक रहस्य बन चुकी है. इस रहस्य के क़दम-क़दम पर सवालों का जाल है. सवाल जितने पैने हैं, उतने चौंकाने वाले भी और कुछ सवाल सोचने पर मजबूर कर देते हैं.

कॉलेज प्रशासन का कहना है कि बच्ची होली की छुट्टी पर घर गई हुई थी. 28 मार्च को 11 बजे वो हॉस्टल में आई. उस दिन हॉस्टल में डेल्टा के अलावा 3 और लड़कियां थीं. रात को क़रीब 12 बजे पता चला कि यह बच्ची अपने बिस्तर पर नहीं है. वार्डन ने जब इसे ढूंढ़ा तो यह पीटीआई (फिजीकल ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर) विजेन्द्र सिंह जाट के कमरे में पाई गई. वार्डन ने इस संस्था द्वारा चलाए जा रहे स्कूल के प्राधानाचार्य प्रज्ञा प्रतीक शुक्ल की मौजूदगी में इन दोनों से इस ग़लती पर एक माफ़ीनामा लिखवाया कि आगे असली ग़लती नहीं होगी. फिर 29 की सुबह पौने छह बजे हॉस्टल की एक शिक्षिका लीला ने वार्डन को सूचना दी कि डेल्टा मेघवाल फिर गायब है. खोज-बीन करने पर लगभग 11 बजे उसका शव कॉलेज परिसर में मौजूद कुंड में तैरता हुआ मिला.

इस कॉलेज के प्रिसिंपल डॉ. राजेन्द्र श्रीमाली के मुताबिक़ विजेन्द्र सिंह हमारे कॉलेज का पीटीआई नहीं, बल्कि हमारी संस्था संचालित श्री जैन आदर्श निकेतन सीनियर सेकेन्ड्री स्कूल का पीटीआई है.

डॉ. राजेन्द्र श्रीमाली TwoCircles.net के साथ एक खास बातचीत में यह भी बताते हैं कि पीटीआई विजेन्द्र सिंह, वार्डेन प्रिया शुक्ला और इनके पति व प्राधानाचार्य प्रज्ञा प्रतीक शुक्ल तीनों पहले चुरू ज़िला के सरदार शहर तहसील के एक ही स्कूल में नौकरी करते थे.

डॉ. राजेन्द्र श्रीमाली यह भी बताते हैं कि वार्डन ने न तो अभिभावकों को सूचित किया. न पुलिस को और न मुझे… मुझे इस घटना की जानकारी दिन के 12 बजे मिली.

लेकिन डेल्टा मेघवाल के परिवार से जुड़े लोग कॉलेज प्रशासन के इस कहानी को झूठा बताते हैं. उनका कहना है कि डेल्टा के साथ दुष्कर्म करके उसकी हत्या की गई है और उसे पानी में फेंक दिया गया है ताकि मामला आत्महत्या का नज़र आए.

इन लोगों का यह भी सवाल है कि रात में यदि ऐसी घटना घटी भी तो इसकी सूचना अभिभावकों को सुबह में क्यों नहीं दी गई? एक नाबालिग़ के साथ दुष्कर्म करने वाले इस पीटीआई को पुलिस के हवाले क्यों नहीं किया गया? रात में लड़की से माफ़ानामा क्यों लिखवाया गया? दोनों माफ़ीनामा प्राधानाचार्य प्रज्ञा प्रतीक शुक्ल ने क्यों लिखा है? और रात के समय प्राधानाचार्य प्रज्ञा प्रतीक शुक्ल लड़कियों के हॉस्टल में क्या कर रहे थे? पीटीआई को हॉस्टल में परिसर में कमरा क्यों दिया गया है? ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब यदि गंभीरता से ढ़ूंढा जाए तो जवाब पाना काफी मुश्किल होगा.

इसके अलावा ऐसे अनगिनत सवाल हैं जो कई गंभीर सवालों को जन्म देते हैं. डेल्टा मेघवाल के लाश को जब कुंड से निकाला गया तो उसके शरीर पर ऐसे कई चोटों के निशान पाए गए, जो खुद से आत्महत्या करने में नहीं हो सकता. इसके अलावा लोगों द्वारा उसकी ली गई तस्वीरों में मूंह से झाग व खून निकला हुआ साफ़ दिखाई दे रहा है.

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नोखा के डॉ. भीमाराम के मुताबिक़ पोस्टमार्टम रिपोर्ट यह बता रही है कि मृतका के फेफड़ों में पानी नहीं मिला, जो यह साबित करता है कि डेल्टा मेघवाल ने टंकी में कूदकर आत्महत्या नहीं की, बल्कि उसे मारकर अंदर फेंका गया है.

डॉक्टर साहब यह भी बताते हैं कि डेल्टा के शरीर पर छातियों के पास ज़ख्म थे, जो शायद दांत के निशान थे. हाथों के रगड़ और केहुनी पर चोट के निशान भी मौजूद थे, जो पानी में कूद कर जान देने पर नहीं होना चाहिए.

उनके मुताबिक़ चौकीदार का कहना है कि डेल्टा को पूरे कॉलेज परिसर में तलाश किया गया. लेकिन जब कुंड का ढक्कन हटाया गया तो अंदर डेल्टा की लाश तैर रही थी. तो आप ही बताईए कि इस कुंड का ढक्कन क्या कूदने के बाद खुद ही मृतका ने बंद कर लिए?

इस बीच अचानक फिर से पोस्टमार्टम करने वाले मेडिकल बोर्ड के डॉक्टर्स में अपने एक रि-ओपीनियन में कहा है कि –‘छात्रा की मौत पानी में डूबने से हो सकती है.’

इधर पुलिस का भी दावा है कि अब तक के मूल्यांकन, कॉल डिटेल ऐनालासिस व समूची पूछताछ से पता चला है कि डेल्टा मेघवाल की पानी में डूबने की वजह से ही मौत हुई है.

डॉक्टर के इस रि-ओपीनियन और पुलिस के इस हड़बड़ी पर भी लोगों के कई सवाल हैं कि आखिर डॉक्टरों को रि-ओपीनियन देने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है. अगर वास्तव में ज़रूरत है तो रि-ओपीनियन देने के बजाए रि-पोस्टमार्टम करा लिया जाए.

लोगों को इस बात से भी हैरानी है कि पुलिस बग़ैर फॉरेंसिक जांच की रिपोर्ट आए यह साबित करने पर क्यों तुली हुई है कि डेल्टा की मौत कुंड में कूदने की वजह से ही हुई है.

इस संबंध में जानकारी लेने के लिए हम नोखा पुलिस थाना भी गए, जहां मेरी मुलाक़ात थानाध्यक्ष पूजा यादव व डीएसपी भवानी सिंह से हुई. लेकिन इन्होंने इस मामले के संबंध में बात करने से यह कहते हुए मना कर दिया कि इस मामले के जांच अधिकारी सतनाम सिंह जी हैं.

गौरतलब रहे कि इस मामले की एफ़आईआर (संख्या -146/16) नोखा पुलिस थाने में दर्ज है. स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस प्रशासन ने आरोपियों को गिरफ़्तार करने के लिए 7 दिन का समय मांगा था, तीन लोगों की गिरफ़्तारी हो चुकी है, लेकिन अभी तक इस कॉलेज के मालिक ईश्वरचंद वैद को गिरफ़्तार नहीं किया गया है. ईश्वरचंद वैद की गिरफ़्तारी और कॉलेज की मान्यता रद्द करने की मांग को लेकर सैकड़ों की तादाद में यहां लोग अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं. इनकी यह भी मांग है कि इस घटना की जांच सीबीआई से करवाई जाए, क्योंकि स्थानीय पुलिस व मीडिया अरबपति ईश्वरचंद वैद से मिली हुई है.

इस बीच हमारी मुलाक़ात इसी कॉलेज में काम कर चुके नोखा के घासी राम से हुई. उनका दावा है कि पानी के जिस कुंड में डेल्टा के कूद कर जान देने की बात हो रही है, वो कुंड पहले से ख़राब थी. उसमें पानी ठहर नहीं रहा था. इसके मरम्मती के लिए घासी राम को कहा गया था, जिसके बदले घासी राम ने 11 हज़ार रूपये मांगे थे. लेकिन कॉलेज इस काम के लिए उन्हें 9 हज़ार देने को कह रहा था. फिलहाल पुलिस ने जांच के मद्देनज़र इस कुंड को सील कर दिया है. ऐसे सवाल यह पैदा होता है कि अगर घासी राम की बात सच है तो फिर कुंड में इतना पानी आया कहां से?

वहीं सुत्र बताते हैं कि इस कॉलेज में 35 सीसीटीवी कैमरा भी लगे हुए थे. लेकिन इनमें से ज़्यादातर कैमरे ख़राब है. ज़्यादातर कैमरे स्कूल में लगे थे. हॉस्टल की ओर कैमरा नहीं लगाया था. पुलिस इन कैमरों में फुटेज को भी खंगाल रही है.

इसके अलावा सुत्र बताते हैं कि पुलिस ने डेल्टा के मोबाईल के डेटा की जांच-पड़ताल की, लेकिन अब तक कुछ भी महत्वपूर्ण जानकारी नहीं मिल सकी है.

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नोखा के स्थानीय लोगों के मुताबिक़ सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आख़िर कॉलेज प्रशासन व पुलिस को इतनी भी क्या जल्दी थी कि वो डेल्टा की लाश को एम्बूलेंस में ले जाने के बजाए बगैर वीडियोग्राफ़ी और किसी को सूचित किए उसे नगरपालिका के मृत पशुओं को ढ़ोने वाले टैक्ट्रर-ट्रॉली में बग़ैर उसके बदन पर कपड़ा डाले अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल में भी लाश को फ्रिज़र में रखने के बजाए ऐसे एक कोने में डाल दिया गया. कहीं ऐसा तो नहीं है कि पुलिस चाहती थी कि तमाम सबूत ख़त्म कर दिए जाएं.

इन सबके बीच लोगों का यह भी आरोप है कि डेल्टा मेघवाल जैसी बेहद प्रतिभाशाली छात्रा के मौत के बाद भी कॉलेज प्रशासन ने उसको कोई श्रद्धांजलि नहीं दी. न मौन और न छुट्टी… बल्कि तमाम मानवीय मूल्यों को ताक पर रखकर कॉलेज बदस्तूर पहले के ही भांति चल रहा है, जैसे इस कॉलेज में कुछ हुआ ही नहीं.

इन सवालों का जवाब तलाशना बेहद ही ज़रूरी है. ये सवाल एक लड़की की अकाल मौत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक न्याय की अकाल मौत की तस्वीर भी छिपी हुई है. ये तस्वीर विचलित करने वाली है. समय रहते इस गुत्थी को यदि सुलझाया नहीं गया तो भविष्य में कितने बेगुनाह जानें इसकी फंदों में लिपट कर दम तोड़ने पर मजबूर होंगी.

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